नई दिल्ली। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) भारतीय स्टेट बैंक (SBI), एक्सिस बैंक और आईडीबीआई बैंक की ट्रस्टी यूनिट्स की जांच शुरू कर रहा है। यह जांच शुल्क को लेकर संदिग्ध मिलीभगत के आरोपों के बाद की जा रही है। इससे आने वाले दिनों में कानूनी लड़ाई छिड़ने की संभावना है। नियमों के मुताबिक, कर्ज जुटाने वाली कंपनियों को निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए एक तथाकथित डिबेंचर ट्रस्टी की नियुक्ति करनी होती है।
ट्रस्टी ऋण जारी करने वाली कंपनियों से फीस लेकर उन पर निगरानी करते हैं। एसबीआई, एक्सिस ट्रस्टी और आईडीबीआई ट्रस्टी जांच के दायरे में हैं। यह तीनों ऋण प्रतिभूतियों के लिए ट्रस्टी सेवाएं प्रदान करके अरबों डॉलर कमाती हैं। सीसीआई ने दिसंबर में एक आदेश में कहा कि ट्रस्टीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने पिछले साल ऋण जुटाने वाली कंपनियों की सहायता के लिए शुल्क में वृद्धि की और सदस्यों को तय कीमत से नीचे जाने से रोका।
मुंबई की कोर्ट में दी गई चुनौती
ट्रस्टीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया में तीनों बैंक संस्थापक सदस्य हैं। एसोसिएशन ने मुंबई की एक कोर्ट में इसे चुनौती दी है जो एंटीट्रस्ट जांच निर्देश को रद्द करने की मांग की है। इसे अवैध भी बताया है। एंटीट्रस्ट की जांच और अदालत में होने वाली सुनवाई ट्रस्टियों के संचालन या कामकाज के तरीके को प्रभावित कर भारत के लगभग 500 बिलियन डॉलर के कॉर्पोरेट ऋण बाजार पर प्रभाव डाल सकता है।
इस तरह के निर्णय से प्रतिस्पर्धा पर असर होता है, फायदे का तीन गुना जुर्माना लग सकता है
गिरोह का पता लगने से प्रत्येक साल में ट्रस्टियों द्वारा निर्धारित शुल्क से हुए लाभ का तीन गुना तक का जुर्माना हो सकता है या फिर वार्षिक राजस्व का 10 गुना जुर्माना हो सकता है। इसमें से जो भी ज्यादा हो उसको लागू किया जा सकता है। एंटीट्रस्ट मामला सोने के एवज में कर्ज देने वाली कंपनी मुथूट फाइनेंस की शिकायत के बाद शुरू हुआ।
पिछले साल अगस्त में जब कंपनी कर्ज जुटाना चाहती थी तो मुथूट को जो प्रस्ताव मिला था, उसकी लागत पहले की तुलना में 300 फीसदी अधिक थी। दस्तावेजों से पता चला है कि जब मुथूट ने विरोध किया, तो आईडीबीआई ने ईमेल में कहा कि नई लागत ट्रस्टी एसोसिएशन द्वारा तय की जाती है। सीसीआई ने जांच का आदेश देते हुए कहा कि एसोसिएशन द्वारा इस तरह के सामूहिक निर्णय लिए जाने से बाजारों में प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है।
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