नई दिल्ली । अमेरिका (America)के जवाबी टैरिफ(retaliatory tariff) ने वैश्विक व्यापार(Global Trade) की गणनाओं(Calculations) को झकझोर दिया है। इसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ता दिख रहा है। अमेरिका के खरीदार अब उन उत्पादों पर भी 15-20% की छूट की मांग कर रहे हैं जिनके ऑर्डर टैरिफ बढ़ने से पहले ही दे दिए गए थे। इससे भारतीय निर्यातकों में हड़कंप मच गया है और कई ऑर्डर होल्ड पर चले गए हैं। अमेरिकी खरीदारों ने हाल ही में बढ़ाई गई टैरिफ (शुल्क) दरों के कारण भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से अपने ऑर्डर पर 15-20% की छूट की मांग शुरू कर दी है। यह मांग उन ऑर्डरों के लिए है जो पहले से ही दिए जा चुके थे, लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नए टैरिफ नियमों के बाद स्थिति बदल गई है। इस बदलाव ने भारतीय निर्यातकों के सामने अनिश्चितता और आर्थिक दबाव पैदा कर दिया है।
ऑर्डर पर रोक और लागत का दबाव
अमेरिकी खरीदारों ने कई उत्पादों के लिए ऑर्डर को होल्ड पर डाल दिया है और भारतीय निर्यातकों पर अतिरिक्त लागत को साझा करने या पूरी तरह से वहन करने का दबाव डाला जा रहा है। विशेष रूप से छोटे और मध्यम स्तर के निर्यातक इस स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। बड़े खुदरा विक्रेता, जिनके पास वैश्विक संचालन के लिए लंबा कॉन्ट्रैक्ट हैं, वे अभी भी अपनी सोर्सिंग योजनाओं में बदलाव नहीं कर रहे हैं, लेकिन छोटे निर्यातकों के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो रहा है। कपड़ा, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों में मांग में कमी की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि ये क्षेत्र अमेरिकी उपभोक्ताओं की ऐच्छिक खरीदारी पर निर्भर करते हैं।
एक अखबार ने क्लोदिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CMAI) के चीफ मेंटर राहुल मेहता के हवाले से लिखा, “ग्राउंड पर निर्यातकों और खरीदारों के बीच काफी भ्रम की स्थिति है। कई अमेरिकी खरीदार मौजूदा और शिपमेंट में जा रहे ऑर्डरों पर अतिरिक्त लागत साझा करने या पूरी तरह से निर्यातकों द्वारा वहन किए जाने की मांग कर रहे हैं।”
डिमांड में गिरावट की चिंता
सबसे बड़ी चिंता डिमांड डिस्ट्रक्शन की है, खासकर टेक्सटाइल और जेम्स एंड ज्वेलरी जैसे सेक्टर में, जहां खरीदारी आमतौर पर अपनी इच्छा पर निर्भर होती है। अमेरिकी उपभोक्ता इन चीजों की खरीदारी टाल सकते हैं, जिससे नए ऑर्डरों की गति धीमी हो सकती है। एक निर्यातक ने कहा, “अमेरिकी खरीदारों, खासकर छोटे व्यवसायों पर पैसों का दबाव बढ़ेगा क्योंकि उन्हें अचानक अधिक कस्टम ड्यूटी चुकानी होगी।”
कीमतों की फिर से गणना कर रहे फैशन ब्रांड
ग्लोबल फैशन ब्रांड्स भी अपनी रणनीतियों की पुन: समीक्षा कर रहे हैं। कई अमेरिकी खरीदारों ने भारतीय सप्लायर्स से कीमतों में समायोजन या छूट देने की मांग की है ताकि टैरिफ वृद्धि का असर कम किया जा सके। कुछ भारतीय निर्यातकों और अमेरिकी खरीदारों के बीच अतिरिक्त टैरिफ का बोझ आपस में बांटने के सौदे हो रहे हैं।
बाजार में अनिश्चितता, शिपमेंट में देरी
रिपोर्ट के मुताबिक, एक प्रमुख गारमेंट निर्यातक ने कहा, “हमारे कुछ खरीदार अगले हफ्ते बातचीत शुरू करेंगे। संकेत मिल रहे हैं कि वे विक्रेता, खरीदार और उपभोक्ता के बीच लागत को तीन भागों में बांटने का सुझाव देंगे। लेकिन हमारे कारोबार में मार्जिन पहले ही इतने कम हैं कि छूट देना मुश्किल है।” फिलहाल जमीनी स्तर पर फैक्ट्रियां अपनी शेड्यूलिंग में बदलाव कर रही हैं- कई शिपमेंट में देरी हो रही है, और कंपनियां बड़े स्तर पर खरीद या विस्तार की योजनाएं फिलहाल रोक सकती हैं। अगले एक महीने तक अमेरिका से नए ऑर्डर रुक सकते हैं। खरीदार ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति अपना रहे हैं।
भारत अब भी ग्लोबल रिटेलर्स के लिए विकल्प
ग्लोबल रिटेलर्स चिंतित हैं और रणनीतिक बदलाव कर रहे हैं, लेकिन भारत उनकी सोर्सिंग मैप पर बना हुआ है। भारतीय भागीदारों के साथ समाधान निकालने की कोशिश हो रही है। अभी तक कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा है, लेकिन रणनीतिक पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। भारत पर असर जरूर पड़ा है, लेकिन वियतनाम और बांग्लादेश जैसे प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भारत को अभी भी बढ़त हासिल है।
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