नदिया । तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) ने पश्चिम बंगाल के शांतिपुर में (In Shantipur West Bengal) महिलाओं के लिए इफ्तार का आयोजन किया (Organized Iftar for Women) ।
पश्चिम बंगाल के शांतिपुर में इस बार इफ्तार की एक अनोखी पहल देखने को मिली, जहां पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी विशेष रूप से इफ्तार का आयोजन किया गया। तृणमूल कांग्रेस एससी ओबीसी सेल के नेतृत्व में आयोजित इस इफ्तार में सैकड़ों मुस्लिम महिला-पुरुषों ने भाग लिया, जो आमतौर पर ऐसे आयोजनों में कम नजर आते हैं। अब तक अधिकांश इफ्तार आयोजनों में पुरुषों की भागीदारी ही देखने को मिलती थी, जबकि महिलाएं घर पर ही परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करती थीं, लेकिन इस बार तृणमूल कांग्रेस की इस नई पहल के तहत, महिलाओं के लिए अलग से इफ्तार का प्रबंध किया गया, जिससे वे भी इस धार्मिक आयोजन का हिस्सा बन सकें।
शांतिपुर पंचायत समिति की प्रमुख प्रिया सरकार गोस्वामी ने इसे एक “सकारात्मक और समावेशी कदम” बताया। उन्होंने कहा कि आमतौर पर महिलाएं उपवास तो रखती हैं, लेकिन उन्हें सामूहिक इफ्तार में भाग लेने का अवसर नहीं मिलता। यह पहल उन्हें एक साथ लाने का एक शानदार तरीका है। कार्यक्रम में शांतिपुर नगर पालिका के उप मेयर कौशिक प्रमाणिक, ब्लॉक तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष सुब्रत सरकार, संगठन के जिला अध्यक्ष असीम मंडल, तृणमूल कार्यकर्ता और अन्य गणमान्य लोग भी मौजूद थे। सभी ने इस आयोजन को धार्मिक सौहार्द और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने वाला बताया।
मनोज सरकार, जो शांतिपुर नगर तृणमूल एससी ओबीसी सेल के अध्यक्ष हैं, ने कहा,”धर्म और त्योहार किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं होते। हम सब मिलकर हर पर्व को मनाते हैं, चाहे वह दुर्गा पूजा हो, जगद्धात्री पूजा हो, क्रिसमस हो या ईद।” ममता बनर्जी की समावेशी सोच का असरबंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हमेशा ही विभिन्न समुदायों के बीच सौहार्द और एकता को प्राथमिकता दी है। इस इफ्तार आयोजन को भी उसी सोच का विस्तार माना जा रहा है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देकर धार्मिक और सामाजिक समरसता को मजबूत करने का प्रयास किया गया है।
शांतिपुर में यह इफ्तार आयोजन एक नई सोच और बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। न केवल मुस्लिम महिलाएं बल्कि अन्य समुदायों के लोग भी इस आयोजन से जुड़कर आपसी भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। यह पहल बताती है कि जब धर्म, संस्कृति और समर्पण एक साथ आते हैं, तो समाज में नई परंपराएं जन्म लेती हैं, जो समरसता को और अधिक सशक्त बनाती हैं।
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