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कारगिल विजय दिवस के शहीदों को नमन

July 26, 2024

– प्रेम कुमार धूमल

देश में राष्ट्रभक्ति का गज़ब का माहौल था ऐसा लगता था सारा भारत एक है, देश की एकता, अखण्डता, सर्वभौमिकता बचाये रखने के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार था । कारगिल का संघर्ष क्या शुरू हुआ ऐसा लगा जैसे सारा राष्ट्र और राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक देष के लिये कोई भी कुर्बानी देने को तैयार था । विश्व के इतिहास में पहली बार हुआ जब देशाभक्ति से ओत-प्रोत विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के प्रधानमन्त्री, अटल जी सभी चुनौतियों, चेतावनियों और व्यक्तिगत सुरक्षा के खतरों को नज़र अन्दाज करते हुये 2 जुलाई 1999 को सीमा पर तैनात युद्वरत सैनिकों की पीठ थपथपाने के लिये स्वयं सीमा पर जा पहुंचे । आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्रधानमन्त्री को अपने साथ सीमा पर खड़ा देखकर सैनिकों का साहस तो सातवें आसमान पर पहुंचना स्वभाविक था ।


5 जुलाई 1999 को कारगिल के युद्व क्षेत्र में जाने के बाद श्रीनगर के सैनिक अस्पताल में उपचाराधीन घायल सैनिकों को दैनिक उपयोग का आवश्यक सामान दे रहे थे, एक जवान चादर ओढ़े हुये लेटा था उसने सामान पकड़ा नहीं, हमने विस्तर के साईड टेबल पर सामान रखा और आगे बढ़ने लगे तभी डॉक्टर ने कहा कि माईन ब्लास्ट में इस वीर सैनिक के दोनों हाथ और दोनों पैर चले गये थे । हम फिर मुड़े और पूछा, ‘‘बहुत दर्द होता होगा’’, सैनिक ने उतर दिया, ’’कल शाम से नहीं हो रहा है’’ । हमने पूछा क्या कोई (पेन किलर) दर्द निवारक दवाई ली या टीका लगा ? उसने उतर दिया ‘‘नहीं, कल शाम (4 जुलाई को) टाईगर हिल वापस ले लिया और तिरंगा फहरा दिया, मेरा दर्द चला गया । राष्टभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को शत शत नमन ।

आजकल एक और विवाद मीडिया में देखने को मिला यहां शहीद की नौजवान विधवा ने मरणोपरान्त मिलने वाले सम्मान को शहीद के मॉं-बाप के साथ सांझा करना उचित नहीं समझा । ऐसी समस्यायें आप्रेशन विजय के बाद भी आई थीं, अधिकतर विधवायें नवविवाहिता थीं और उनका पुनर्विवाह होना स्वभाविक और न्यायोचित भी था परन्तु बजुर्ग मॉं-बाप का सहारा भी तो शहीद जवान ही होता था इसलिये पुनर्विवाह के समय प्रदेश और केन्द्र सरकार की ओर से मिली सारी की सारी अनुदान राषि, पैट्रोल पम्प या गैस एजैन्सी आदि सभी को साथ ले जाना मॉं-बाप के साथ अन्याय था क्योंकि अधिकतर मामलों में गरीब मॉं-बाप ने अपना पेट काट कर बेटे को पाला पोसा होता था और बुढ़ापे में नौजवान बेटे की शहादत और बहु का सब कुछ अपने साथ ले जाना उनके लिये दोहरा अघात होता था । इसलिये हमने प्रदेश कैबिनेट की बैठक में सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये निर्णय लिया कि अगर तो पुनर्विवाह उसी परिवार में होता है तो सभी कुछ वैसे ही रहेगा लेकिन यदि वीर नारी कहीं दूसरी जगह शादी करती है तो सरकार की ओर से मिली राषि दो हिस्सों बांट दी जायेगी । आधी राषि उस युद्व विधवा को और आधी राषि बूढ़े मॉं-बाप को दी जायेगी और यदि शहीद के बच्चे षिक्षा ग्रहण कर रहे हों और मॉं तथा दादा-दादी से अलग रहते हों तो राषि तीन भागों में बांटी जायेगी और एक तिहाई बच्चों को दी जायेगी । इस निर्णय से सभी की समस्या का समाधान हो गया ।

राष्ट्रभक्ति के साथ साथ एक दूसरे के प्रति सम्बेदनशीलता के भी कई उदाहरण देखने को मिले, शािमला जिले का एक अनुसूचित जाति से सम्बन्ध रखने वाला जवान शहीद हुआ था, घर की अर्थिक स्थिति भी कमजोर थी । जब हमने अनुग्रह राषि उन्हें दी तो उस गरीब परिवार ने कहा हमें आधी राषि ही दीजिए, अभी युद्व चल रहा है और शहीद हो रहे हैं और आपको कई और परिवारों की सहायता करनी है, हमें आधी राशाि दे दो बाकि किसी और परिवार के काम आ जायेगी । शहीद की शहादत को तो नमन था ही पर गरीब परिवार की सम्बेदनशीलता और दूसरों के प्रति समर्पण की भावना से हम सभी द्रवित हो गये और उन्हें धन्यवाद देते हुये हमने कहा कि राषि आपके लिये ही है और आवश्यकता होगी तो लोग योगदान दे ही रहे हैं ।

पालमपुर में तो जहां एक ओर प्रथम परमवीर चक्र विजेता, मेजर सोमनाथ शर्मा वहीं कारगिल युद्व के नायक कै0 विक्रम बतरा, परमवीर चक्र विजेता का भी घर है, उस दिन हम कै0 विक्रम बतरा के पार्थिव शरीर का इन्तजार कर रहे थे वहीं पर कारगिल युद्व के प्रथम शहीद कै0 सौरभ कालिया की माता जी, विजय कालिया और कै0 विक्रम बतरा की माता जी साथ साथ बैठी थीं । विजय कालिया श्रीमति बतरा को ढांढस बंधा रही थीं, एक महान मां दूसरी महान माता को साहस बंधा रही थी, शायद यही जीवन है ।

इसी प्रकार जिला बिलासपुर की एक बहादुर मां, कौषल्या देवी जी जब मिली तो अन्होंने कहा, ’’धूमल जी कल मंगल सिंह की अर्थी को डेढ किलो मीटर मैंने कंधा दिया’’। मैंने पहली बार सुना कि शहीद की मॉं ने अपने शहीद सुपुत्र की अर्थी को कंधा दिया हो । शहीद की शहादत और मॉं की हिम्मत को सलाम ।

सोलन जिला मुख्यालय में चपरासी के पद पर नियुक्त एक व्यक्ति का सैनिक बेटा शहीद हो गया, अन्तिम संस्कार में भाग लेने के बाद हम उसके घर ढांढस बंधाने के लिये गये । शहीद की मॉं ने कहा मेरा बेटा देश के काम आ गया, दूसरा बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है यह भी पढ़कर फौज में भर्ती होगा और देश की सेवा करेगा।

जिला हमीरपुर के बमसन क्षेत्र में पहाड़ी के ऊपर एक बगलू गांव है यहां से राज कुमार सुपुत्र खजान सिंह शहीद हुये थे । चढ़ाई चढ़ते मैं सोच रहा था कि शहीद के बजुर्ग पिता जी से कैसे बात करूंगा । मैं उनके आंगन में पहुंच गया और इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, खजान सिंह बोले, ‘‘धूमल साहब, बेटे तो पैदा ही इसलिये किये जाते हैं कि पढ़ें, लिखें और बड़े होकर फौज में भर्ती हों और देश की रक्षा करें । उन्होंने अपने दोनो पोते मुझे मिलाये और कहा ये भी पढ़कर फौज में भर्ती होंगे और देश की सेवा करेंगे । उन्होंने मुझे कहा आप दिल्ली जायेंगे तो प्रधानमन्त्री, वाजपेयी जी को कहना कि जवानों की यदि कमी हो तो 82 वर्ष का हबलदार खजान सिंह आज भी हथियार उठाकर देष की रक्षा करने के लिये तैयार है ।

शहीदों का आदम्य साहस, परिवारों का सम्पूर्ण समर्पण, अटल जी का दृढ़निष्चयी नेतृत्व सदियों तक देष के लिये प्रेरणा रहेगा ।

5 जुलाई को जब अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने आदरणीय अटल जी को फोन करके कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ इनके पास पहुंच गये हैं और अटल जी से आग्रह किया कि वे भी युद्व विराम की घोषणा कर दें और अमेरिका आ जायें ताकि समस्या का सर्वमान्य हल निकाला जा सके ।

उस ऐतिहासिक क्षण में श्रद्वेय अटल बिहारी वाजपेयी का यह कथन ’’जब तक एक भी घुसपैठिया कारगिल में है, तब तक न युद्व विराम होगा और न मैं देश छोड़कर कहीं जाऊंगा’’ इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा ।

प्रधानमन्त्री के इस दृढ़संकल्प को देखते हुये सारे राष्ट्र में एक नई ऊर्जा आ गई और सैनिकों में यह संकल्प और दृढ़ हो गया और भारत की वीर सेना ने निर्णायक विजय प्राप्त की ।

कारगिल से वापसी पर हम प्रभु अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास उतरे, दर्षन किये और संयोग से टाईगर हिल विजय प्राप्त करने वाले जवान भी उसी समय गुफा में दर्षन करने के लिये आये हमने उन से चर्चा की और नरेन्द्र मोदी जी ने तो उनके हथियार लेकर उन हथियारों के बारे में जानकारी भी ली ।

यह उचित ही है कि 26 जुलाई को प्रतिवर्ष हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं और उन शहीदों को श्रद्वासुमन अर्पित करते हैं । ठीक ही कहा है ’’शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही निशां होगा’’।

(लेखक हिमाचल के पूर्व मुख्यमन्त्री रहे हैं व कारगिल युद्व के समय मुख्यमन्त्री थे।)

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