अंग्रेजों की गुलामी से आजादी (Freedom from British slavery) दिलाने के लिए देश के कई वीर योद्धाओं ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका (vital role) निभाते हुए अपनी जान न्यौछावर कर दी. वहीं, छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर (Bastar, tribal dominated area of Chhattisgarh) में भी आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन (Bhumkal movement against British rule) की शुरुआत की थी. यह आंदोलन बस्तर के वीर आदिवासी नायको के बलिदान को लेकर याद किया जाता है, जिन्होंने आजादी और अपने जल जंगल जमीन की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के गोला बारूद का सामना तीर धनुष और अपने पारंपरिक हथियारों से किया था अंग्रेजों को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया था.
देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियों ने बस्तर में संघर्ष का शंखनाद करने के लिए ही भूमकाल की शुरुआत की थी. भूमकाल का मतलब है जमीन से जुड़े लोगों का आंदोलन, जिसे बचाने के लिए बस्तर के वीर योद्धाओं ने अपनी प्राण की आहुति दे दी थी और आज भी इस आंदोलन और इसके योद्धाओं को याद कर हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाया जाता है. बस्तर के इस आंदोलन में बस्तर के हजारों आदिवासियों ने अपने जल जंगल और जमीन के लिए एक युद्ध लड़ा था. आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत और अपने शोषक वर्ग के खिलाफ जंग छेड़ दिया और अपने पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों के गोला बारूद का सामना किया था.
लड़ाई के दौरान कई आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. आदिवासियों ने अपने पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों से संघर्ष करते उनके बंदूकों का सामना किया. हालांकि इस युद्ध की वजह से बस्तर के आदिवासियों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा था, लेकिन अंग्रेजों के दांत खट्टे करने में यह आंदोलन काफी सफल रहा और कुछ हद तक अंग्रेज इस आंदोलन के बाद बैक फुट पर भी रहे. सुभाष पांडे बताते हैं कि धुर्वा समाज के प्रमुख शहीद गुंडाधुर ने बस्तर के आदिवासियों को शोषक वर्ग से निजात दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी और इस दौरान वह शहीद हो गए. भूमकाल में ही बस्तर रियासत के तत्कालीन राजा प्रवीणचंद्र भंजदेव की अंग्रेजों ने हत्या कर दी थी.
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बस्तर के जानकार सतीश जैन ने बताया कि बस्तर के लोग हर साल भूमकाल दिवस मनाते हैं. 10 फरवरी सन 1910 में बस्तर के आदिवासियों ने अपने जल जंगल जमीन को शोषक वर्ग और अंग्रेजों के हाथों में जाते देख और अंग्रेज हुकूमत की बेड़ियों से तंग आकर भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी. उन्होंने बताया कि यहां आंदोलन आदिवासियों के स्वाभिमान आदिवासियों के जल जंगल जमीन और आदिवासियों की स्वतंत्रता की लड़ाई थी. इस समय आदिवासियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लिया वे अंग्रेजों के सामने झुके नहीं और पूरे आदिवासी समाज को जोड़ने का भी काम किया.
इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत का डटकर सामना भी किया. इस आंदोलन में केवल अमर शहीद गुंडाधुर ही नहीं बल्कि शहीद गेंद सिंह, शहीद वीर नारायण सिंह और बस्तर के अन्य वीर योद्धाओं ने अंग्रेजो के खिलाफ भूमकाल आंदोलन का बिगुल फूंका. इस आंदोलन में अंग्रेजों को बैकफुट पर लाने में सफल भी हुए, जानकार सतीश जैन बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष की शंखनाद भूमकाल आंदोलन से हुई थी.
इसके बाद यह संघर्ष जारी रहा और आखिरकार अंग्रेजों को आदिवासियों के जल जंगल जमीन छोड़कर जाना पड़ा. इस वजह से बस्तर में भूमकाल आंदोलन का काफी महत्व है और हर साल 10 फरवरी को सर्व आदिवासी समाज और बस्तर राज परिवार भूमकाल दिवस मनाते आ रहे हैं और आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वीर योद्धाओं के बलिदान को याद करते हैं.
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