भोपाल। मप्र में उपचुनाव का घमासान अंतिम दौर में पहुंच गया है। दोनों पार्टियों के नेताओं ने चुनावी क्षेत्रों में पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा जहां फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है, वहीं कांग्रेस आक्रामक तरीके से प्रचार कर रही है। प्रचार के अंतिम चरण में भाजपा का पूरा फोकस कमजोर सीटों पर है। जिन सीटों के संदर्भ में निगेटिव फीडबैक मिले हैं, भाजपा ने वहां शीर्ष नेताओं के साथ ही संघ के पदाधिकारियों को तैनात कर दिया है। भाजपा को मिले फीडबैक के अनुसार, अभी मामला फिफ्टी-फिफ्टी का बना हुआ है। आने वाले दिनों में स्थिति को मजबूत करने के लिए पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। पार्टी ने कमजोर सीटों पर अपना पूरा जोर लगा दिया है।
15 सीटों पर तैनात हुए संघ पदाधिकारी
भाजपा को मिले फीडबैक कि अनुसार, पार्टी को अशोकनगर, मुंगावली, भांडेर, ग्वालियर पूर्व, मुरैना, दिमनी, जौरा, सांवेर, आगर, नेपानगर, मांधाता, ब्यावरा, मलहरा, पोहरी और करैरा विधानसभा सीट पर जबरदस्त चुनौती मिल रही है। इसलिए यहां जीत के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इन सीटों पर निगेटिव फीडबैक मिलने के बाद अब यहां वरिष्ठ पार्टी नेताओं को मैदान में उतार दिया गया है। इतना ही नहीं, संघ से जुड़े नेताओं ने भी दोनों विधानसभा सीटों पर कमान संभाल ली है। कुछ दिन पहले भाजपा को फीडबैक मिला था कि यहां पर पार्टी प्रत्याशियों की स्थिति ठीक नहीं है। इसलिए अब यहां पर रणनीति में बदलाव किया गया है और पार्टी के शीर्ष नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार दिया है। चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी भी संघ और पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने संभाल ली है। कमजोर सीटों पर कई नेता इस समय प्रचार कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, उमा भारती इन सीटों पर सभाएं कर रही हैं इसके अलावा शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया अपने बेटे अक्षय भंसाली के साथ प्रचार में लगी हैं। गुना-शिवपुरी के सांसद केपी यादव भी अब प्रचार में दिख रहे हैं। पोहरी में सांसद केपी यादव ने अपनी जाति के वोटरों के साथ संवाद कर पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील की। इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने से उनकी नाराजगी की खबरें सामने आईं थी, लेकिन अब वे लगातार पार्टी का प्रचार कर रहे हैं। अशोकनगर व मुंगावली में वह मोर्चा संभाले हुए हैं। कुल मिलाकर अब भाजपा हर हाल में उन कमियोंं को दूर करना चाहती है जो अभी प्रचार में दिख रही हैं।
कम मतदान की संभावना से बढ़ी धड़कनें
उपचुनाव को लेकर पहले से ही भाजपा व कांग्रेस कम मतदान की संभावना के चलते परेशान थीं, ऐसे में कोरोना ने उनका संकट और बढ़ा दिया है। यही वजह है कि निर्वाचन आयोग के साथ ही प्रदेश में चुनाव लडऩे वाली सभी प्रमुख पार्टियों के नेताओं को अधिक मतदान कराने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल कम मतदान होने की वजह से कई बार चुनावी समीकरण बनते बिगड़ते रहे हैं। दरअसल कम मतदान का आंकलन वर्ष 2014 से लेकर 2018 के बीच हुए उपचुनावों के आंकड़ों से साफ तौर पर किया जा सकता है। इसी तरह से उपचुनाव में नोटा का भी असर कम ही रहता है। अगर बीते समय में हुए उपचुनावों के आकंड़ों को देखें तो पता चलता है कि आम चुनाव की तुलना में उपचुनाव के दौरान नोटा के आंकड़े महज एक चौथाई तक ही सीमित रह गए हैं। इनमें मुंगावली में हुआ उपचुनाव जरूर अपवाद बना हुआ है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राघाौगढ़ में वर्ष 2014 में हुए उपचुनाव में 67.55 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि इसके पहले आम चुनाव में मतदान 76.54 फीसदी रहा। इसी साल बहोरीबंद में उपचुनाव में 72.94 फीसदी मतदान हुआ था , जबकि आम चुनाव में 80.34 फीसदी मतदान किया गया था। उधर आगर में भी इसी साल उपचुनाव हुआ था, वहां पर भी उपचुनाव में 70.03 फीसदी और आम चुनाव में 82.60 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। लगभग यही स्थिति इसके बाद 2015 में देवास व गरोठ में, 2016 में नेपानगर घोड़ाडोगंरी और मैहर में , 2017 में चित्रकूट बांधवगढ़ और अटेर में जबकि 2018 में कोलारस में भी रह चुकी है। इसमें अपवाद मुंगावली सीट जरुर है , जहां पर 2018 में हुए उपचुनाव में 76.99 फीसदी मतदान हुआ था , जबकि आम चुनाव में यहां पर इससे करीब दो फीसदी कम 74.80 फीसदी मतदान हुआ था।
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