कल यानि 24 अप्रैल को है प्रदोष व्रत, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष (Pradosh Vat) वत पड़ता है । इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ रहा है इसलिए इस शनि प्रदोष व्रत भी कहतें हैं । मान्यता है कि यह व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने रखा था। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्ति मिल गई थी। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती (Mata Parvati) की संपूर्ण विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत का प्रभाव काफी खास माना गया इस बार त्रयोदशी (Trayodashi) पर ध्रुव योग बन रहा है। ऐसे में इस व्रत का महत्व (Importance) और भी ज्यादा बढ़ जाता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत की पूजा विधि।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
वैसे तो सभी प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम होते हैं, लेकिन शनि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व (Special importance) होता है। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से नि:संतान लोगों को या फिर नवदंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि प्रदोष (Shani Pradosh) व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
इस तरह करें प्रदोष व्रत की पूजा:
इस दिन सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। फिर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल पर आसन बिछाएं और बैठ जाएं। फिर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या प्रतिमा को एक चौकी पर स्थापित करें। फिर उन्हें चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप, दक्षिणा और नैवेद्य अर्पित करें। महिलाओं को मां पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान अर्पित करना चाहिए। ऐसा करना बेहद ही शुभ माना जाता है।
ध्यान रहे कि पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगरबत्ती और फल होना चाहिए। ये सभी विष्णु जी (Vishnu ji) को बेहद ही प्रिय होते हैं। फिर माता पार्वती और भगवान शिव की आरती करें। शिव चालीसा (Shiva Chalisa) और मंत्रों का भी पाठ करें।
नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
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