मैं पल दो पल का शायर हूं…
आज साहिर लुधियानवी भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके दिल से निकले अल्फाज आज भी अलग-अलग आवाजों में हमें सुनाई देते हैं, तभी शायद साहिर ने लिखा था…मैं पल दो पल का शायर हूं…पल दो पल मेरी कहानी है…। ऐसे ही सैकड़ों गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते है।
आज ही के दिन 25 अक्टूबर 1980 को आपने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। हिन्दी फिल्मों में साहिर का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने दिल छूते गीतों से ऐसा पुख्ता पुल खड़ा किया, जो सिनेमा और साहित्य को जोड़ता है। साहिर से पहले तक ज्यादातर फिल्मी गीतकार तुकबंदी तक सीमित थे। साहिर ने बताया कि शब्दों की ताकत क्या होती है और गीतों में जज्बात कैसे सजाए जाते हैं। 8 मार्च 1921 को लुधियाना में आपका जन्म हुआ था जमींदार पिता जिन्होंने 11 शादियां कीं ने उनका नाम अब्दुल रखा था, लेकिन उन्होंने अपने लिए साहिर उपनाम चुना। यह अरबी जुबान का शब्द है, जिसका मतलब है जादूगर। ये रात ये चांदनी फिर कहां, ठंडी हवाएं लहराके आएं, अभी न जाओ छोड़कर, जिंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात, जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा और हम इंतजार करेंगे सहित उनके सैकड़ों गाने जादू से कम नहीं हैं। साहिर ताउम्र कुवांरे रहे, लेकिन उनका बाबुल की दुआएं लेती जा हर पुत्री के पिता के दिल की आवाज है।
साहिर को यह मिलें सम्मान और पुरस्कार
साहिर लुधियानवी को 1963 में फिल्म ताजमहल के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। 1976 में उन्हें एक बार फिर फिल्म कभी कभी के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 8 मार्च 2013 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया। इसके अलावा देशभर के अनेक मंचों से साहिर साहब को सम्मानों से नवाजा गया।
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