हर मनुष्य में जन्म से गुरु की शक्ति मौजूद होती है जो हमारे पेट अर्थात भवसागर में स्थित रहती है..जब हमारे अंदर कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है तो गुरु की शक्ति भी जागृत हो जाती है और परिणाम में हमारे हाथों में शीतल चैतन्य लहरियाँ आती हैं एवं हम स्वयं के गुरु बन जाते हैं..सहजयोग की शुरुआत श्रीमाताजी निर्मला देवी द्वारा 5 मई 1970 को की गई थी और यह आध्यात्मिक घटना पूरे विश्व के मनुष्यों को आत्म साक्षात्कार देने के लिए है..जन्म से ही हमारे अंदर ईश्वरीय कुण्डलिनी शक्ति होती है जो किसी सद्गुरु के सामीप्य में आने से जागृत हो सकती है लेकिन आज देखने में आया है कि कलियुग के अंदर धर्म के नाम पर कई गुरु पैसा बना रहे हैं और झूठ-मूठ साधकों को भरमाकर उनकी शक्ति को खराब कर रहे हैं..बड़ी संख्या में अगुरुओं ने देश-विदेश में अपने आश्रम खोल लिये हैं और बड़े-बड़े महलनुमा भवन बना लिए हैं तथा प्रापर्टी बना ली है और अपने शिष्यों तथा साधकों से पैसा लेते हैं, जबकि आत्म साक्षात्कार पाने के लिए कोई पैसा नहीं देना होता और सच्चे गुरु की यह पहचान होती है कि वह अपने शिष्य से या साधक से कोई पैसा नहीं लेता है..श्रीमाताजी का कहना है कि गुरु वह होता है जो साहिब अर्थात परमात्मा से आपको मिला दे..
सहजयोग में यही होता है..पहले साधकों को अंदर के नाडिय़ों का संतुलन कराया जाता है और इसके बाद शक्ति का जागरण श्रीमाताजी के फोटो के सामने बैठने से हो जाता है..क्योंकि यह आदिशक्ति का फोटो है और इसमें सभी शक्तियाँ हैं..आत्म साक्षात्कार पाने की पहली पहचान यह है कि साधक के सिर के ऊपर तालू भाग में वाइब्रेशन आते हैं तथा हाथ की हथेली और उंगलियों की पोरों पर भी शीतल लहरियाँ आती हैं..प्रतिदिन ध्यान करने से यह शक्ति बढ़ती रहती है और कुछ ही समय में साधक गुरु तत्व को पा लेता है तथा अपनी चक्रों की अनुभूति अपने हाथ की अंगुलियों पर महसूस करता है..तथा अपने चक्रों को चैतन्य शक्ति से शुद्ध करता है..सहजयोग विश्व के अनेक देशों में चल रहा है और यह पूरी तरह नि:शुल्क है..योग का मतलब है परमात्मा की निराकार शक्ति से जुडऩा ना कि कोई एक्सरसाइज या प्राणायाम और यह कार्य वही गुरु कर सकता है जो इसका अधिकारी हो..या जो अवतरण हो..श्रीमाताजी का जन्म भारत के छिंदवाड़ा में हुआ और उन्होंने लाखों लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया..आज सहजयोग में बड़ी संख्या में साधक आत्म साक्षात्कार पाकर स्वयं तो सुख का जीवन जी ही रहे हैं साथ ही अन्य लोगों की कुंडलिनी शक्ति भी जागृत कर रहे हैं..सहजयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें शरीर स्वस्थ हो जाता है तथा मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति भी अच्छी हो जाती है और साथ ही व्यक्ति अगुरु और कुगुरुओं से अपनी रक्षा भी करता है।
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