उज्जैन । तीन दशक पहले तक उज्जैन में कई कपड़ा मिलें थी जिनमें 15 हजार से ज्यादा मिल मजदूर दिन रात काम करते थे और मिलों की चिमनियों से चौबीस घंटे धुआं उठता दिखाई देता था। इन्हें बंद हुए अब 30 साल बीत गए हैं। तभी से एक भी नया उद्योग यहाँ शुरु नहीं हो पाया है। मिले बंद होने के बाद बेरोजगार हुए मजदूर आज भी अपने हक की राशि शासन से माँग रहे हैं। दूसरी ओर उद्योगविहीन शहर में बेरोजगार मजदूर आज रविवार को छुट्टी वाले दिन भी सुबह से दिहाड़ी की तलाश में खड़े दिखाई दिए।
साढ़े तीन दशक पहले तक धर्मनगरी उज्जैन धार्मिक और पर्यटन नगर के साथ-साथ उद्योग की नगरी भी कहा जाता था। क्योंकि यहाँ नेशनल टेक्स टाईल्स कार्पोरेशन लिमिटेड की इंदौर टेक्स टाईल्स, हीरा मिल सहित बिनोद विमल मिल जैसे बड़े कपड़ा कारखाने संचालित हुआ करते थे। इन मिलों में 24 घंटे में 8-8 घंटे की तीन पालियों में 15 हजार से ज्यादा मजदूर काम करते थे। उस दौरान मिल में मजदूरों को महीने में दो बार भुगतान होता था। इसमें महीने की 15 तारीख को मजदूरों को खर्ची मिलती थी और महीना पूरा होने पर 1 तारीख के दिन पगार मिलती थी। इन मिलों में काम करने वाले 15 हजार से ज्यादा मजदूरों की मेहनत और मशक्कत से लगभग 1 लाख लोगों के पेट पलते थे। परंतु 90 का दशक शुरु होने के पहले से एक-एक कर यह मिलें कांगे्रस शासन के कार्यकाल में बंद होती चली गई और हजारों मजदूर बेरोजगार होते गए। इंदौर टेक्सटाईल्स मिल मजदूरों का भुगतान भी पूरा नहीं हो पाया। आज भी इस मिल में काम करने वाले सैकड़ों मजदूरों की बकाया भुगतान की राशि मिल बंद होने के बाद रिकार्ड गुम हो जाने के कारण नहीं मिल पाई है। इधर बिनोद विमल मिल के मजदूर सालों से अपने बकाया भुगतान की लड़ाई कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मिल मजदूरों का भुगतान राज्य सरकार नहीं कर रही है और हाल ही में भुगतान की समय-सीमा 6 महीने बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। इधर पिछले 66 दिनों से भुगतान की मांग को लेकर धरना दे रहे बिनोद विमल मिल के मजदूरों ने आखिर में गर्मी और लू से थक हारकर आज मजदूर दिवस से धरना स्थगित करने का निर्णय लिया है।
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