नई दिल्ली. प्रदोष व्रत(Pradosh Vrat) हर महीने 2 बार आता है. ये व्रत हर महीने के दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि के दिन रखते हैं. इस बार चैत्र महीने का प्रदोष व्रत 29 अप्रैल यानी आज है. आज के दिन भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल प्राप्त होता है. दिन के अनुसार प्रदोष व्रत के नाम भी बदल जाते हैं. जैसे अगर किसी दिन सोमवार को प्रदोष व्रत पड़े तो उसे सोम प्रदोष व्रत(som pradosh fast) कहते हैं. वहीं जो प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है उसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है.
भौम प्रदोष व्रत पूजन विधि (Bhaum pradosh vrat pujan vidhi)
प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शिव(Lord Shiva) की पूजा होती है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं, क्योंकि यह व्रत उनको काफी पसंद है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा (worship) की जाती है, जिसमें उन्हें धतूरा और फूल अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद शाम को फिर से भगवान की पूजन अर्चना की जाती है. इस दिन प्रदोष व्रत की कथा भी सुनी जाती है. वहीं, भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से भी विशेष लाभ प्राप्त होता है.
प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat katha)
स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है. एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है? दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया.
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे विधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थीं. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया. राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया.
कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है, वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और
(नोट: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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