नई दिल्ली (New Delhi) । पाकिस्तान (Pakistan) में 8 फरवरी, 2024 को 14 वां आम चुनाव (General election) होना है. 24 करोड़ की आबादी वाला देश मतदान (vote) के लिए तैयार है. इस बीच, 13 जनवरी को इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) पार्टी को ‘बल्ला’ चुनाव चिह्न देने से इनकार करने के पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसकी विश्वसनीयता पर नए संदेह पैदा कर दिए हैं, अब चुनाव भी सेना के साया में हो रहा है. लेकिन पाकिस्तान चुनाव के लिए पंजाब प्रांत काफी अहम है. पाकिस्तान में पंजाब उसी तरह से अहम है, जैसा भारत में सत्ता तक पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश अहम माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि जिसकी पंजाब पर पकड़ होती है. पाकिस्तान में उसकी सरकार बनती है.
पाकिस्तान के चार प्रांत पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैर पख्तुनख्वा हैं. पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली की कुल सीटों की संख्या 342 हैं. इसमें से सबसे ज्यादा सीटें 141 पंजाब से हैं. इसे पंजाब का सत्ता का द्वार कहा जाता है. जबकि सभी से 272 सांसद चुने जाते हैं. इनमें 60 सीट महिलाओं के लिए और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए रिजर्व हैं.
साल 2018 के चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-एइंसाफ (PTI) ने यहां से कुल 67 सीटों पर जीत हासिल की थी और सरकार बनाई थी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप के तहत फिलहाल वह जेल में हैं और अब फिर चुनाव हो रहे हैं. चुनाव में सैन्य प्रभाव साफ दिख रहा है.
पंजाब प्रांत पाकिस्तान की सत्ता के लिए क्यों है अहम?
दूसरी तरफ, नवाज शरीफ की पार्टी PML-N को साल 2018 के चुनाव में कुल 64 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार पंजाब समेत पूरे पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-एइंसाफ संकट में है. उनके कई नेता निर्दल होकर चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि इमरान खान समेत पीटीआई के कई बड़े नेता जेल कैद हैं. इस कारण नवाज शरीफ को बढ़त दिख रही है. नवाज शरीफ लाहौर की नेशनल असेंबली सीट-130 से खुद मैदान में हैं. यहां पीएमएलएन का दबदबा दिख रहा है.
ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जिस पार्टी जो ज्यादा सीटें जीतती है. केंद्र में उसकी सरकार बनती है. बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी की स्थिति पंजाब में ठीक नहीं है. पंजाब की एक सीट पर ही लड़ रहे हैं. इस तरह से सिंध प्रांत में कुल 61 सीटें हैं. यह पीपीपी का गढ़ है. पीपीपी की यहां प्रांतीय सरकार है. पीएमएल-एन मुताहिदा कौमी मूवमेंट के साथ गठबंधन में चुनाव मैदान में है. इनके अलावा खैबर पख्तुन्ख्वा मेंनेशनल असेंबली की 45 एवं बलूचिस्तान में 16 कुल सीटें हैं.
किसी प्रधानमंत्री ने नहीं पूरा किया है कार्यकाल
आखिरी बार जुलाई 2018 में हुए चुनावों में यह पहली बार नहीं है कि चुनावों में देरी हुई है. 1977 में जिया उल हक के मार्शल लॉ के बाद ’90 दिनों के बाद चुनाव’ का आश्वासन देने के बावजूद समय सीमा बढ़ती रही. न ही वे पूरी तरह से ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ रहे हैं, हर बार मतदान और मतगणना चरणों में अनियमितताओं के आरोप सामने आते रहते हैं.
हालांकि यह पहली बार नहीं है. 76 साल बाद आज तक पाकिस्तान में एक भी प्रधानमंत्री ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल समाप्त नहीं किया है. सैन्य शासन का दबदबा रहा है और लोकतंत्र के बावजूद सेना हावी रही है. 1956 से 1971 तक, 1977 से 1988 एवं फिर 1999 से 2008 तक पाकिस्तान पर सेना का कब्जा रहा है.
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