उज्जैन। गफलत में रही शिवराज सरकार को अब आनन-फानन पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में उतरना पड़ रहा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की है, मगर राहत मिलने की उम्मीद कम है, जिसके चलते अब दोनों चुनाव एक साथ ही राज्य निर्वाचन आयोग करवाने जा रहा है। उज्जैन नगर निगम में भी बीते दो साल से अधिक समय से प्रशासक काल ही चल रहा है और इस बार जनता की बजाय पार्षदों के जरिए ही महापौर का चुनाव होना है। इस बार महापौर बनने वालों को पार्षदी का चुनाव लडऩा पड़ेगा। इसके पूर्व तक शासन ने जो संशोधन किए थे उसके चलते जनता द्वारा ही महापौर का सीधा चुनाव होता था और 54 वार्डों के पार्षद अलग-अलग चुने जाते रहे। कमलनाथ सरकार ने महापौर का चुनाव जनता की बजाय पार्षदों के जरिए करवा दिया, क्योंकि कांग्रेस के पास ऐसा एक भी दमदार उम्मीद नहीं है जो सीधे चुनकर आ सके।
मगर अब चूंकि पार्षदों के जरिए महापौर का चुनाव होना है, जिसके चलते दोनों ही दलों को ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारने होंगे जो पार्षद का चुनाव जीतने के बाद महापौर पद संभाल सकें और शहर विकास में अपनी भूमिका निभा सके। हालांकि कांग्रेस के पास कई सशक्त उम्मीदवार है। दूसरी तरफ भाजपा में महापौर उम्मीदवारों की भीड़ है। चूंकि महापौर का भी आरक्षण इस बार नहीं है और किसी भी वर्ग का व्यक्ति महापौर बन सकता है। हालांकि इसके लिए भाजपा और कांग्रेस के महापौर पद के दावेदारों को पार्षदी का चुनाव अनिवार्य रूप से लडऩा होगा। पूर्व परिषद में भी कांग्रेस के मात्र 14 ही पार्षद चुनकर आए थे और भाजपा पार्षदों का ही दो तिहाई से अधिक बहुमत रहा। यही स्थिति इस बार रहेगी, जिसके चलते कांग्रेस की तुलना में भाजपा की स्थिति कई गुना बेहतर है। नगर निगम के जरिए शहर में जो कई तमाम विकास कार्य हुए हैं उसका भी लाभ भाजपा को मिल सकता है, तो दूसरी तरफ राज्य से लेकर केन्द्र में उसकी सरकार है ही। इधर कांग्रेस का मानना है कि महंगाई जैसे मुद्दों के चलते जनता में आक्रोश भी है और उसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। मगर दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि बीते 15 सालों से निगम में भाजपा की ही परिषद बनती आई है, जिसने शहर की कायापलट भी कर दी और इस बार भी भाजपा का ही महापौर और दो तिहाई से अधिक पार्षद चुनाव जीतकर आएंगे। तमाम दावेदारों ने अपने आकाओं की परिक्रमा शुरू कर दी है।
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