भोपाल। प्रदेश में करीब ढाई लाख अयापकों को भविष्य चार विभागों की फाइलों में उलझकर रह गया है। इन चार विभागों के कारण इन अध्यापकों का समयमान वेतन और क्रमोन्नति का मामला अटका पड़ा है। ऐसे में अध्यापक अपने हक के लिए कभी इस विभाग तो कभी उस विभाग की फेरी लगा रहे हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश में करीब ढाई लाख ऐसे अध्यापक हैं। जिन्हें मिलने वाले समयमान और दिवंगतों के आश्रितों को अनुकंपा का लाभ चार विभागों में उलझ गया है। अध्यापकों के मुताबिक यह पूरी प्रक्रिया सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन है, पर सकारात्मक पहल नहीं हो पा रही है। प्रदेश में वर्ष 1998 से भर्ती कोई दो लाख अध्यापक ऐसे हैं, जिन्हें 20 साल बाद द्वितीय समयमान एवं 24 साल की सेवा उपरांत क्रमोन्नति का लाभ मिलना है। प्रदेश में स्कूलों का नियंत्रण शिक्षा के अलावा जनजातीय कार्य विभाग कर रहा है। इन दोनों विभागों से सामान्य प्रशासन को प्रस्ताव जाते हैं, जो महींनों यहां धूल फांक रहे हैं। बड़ी मशक्कत के बाद अगर यहां से फाइल का अनुमोदन होकर वित्त विभाग में पहुंचता है। तो वहां राशि खर्च पर बात अटक जाती है।
मंत्री को गुमराह कर रहे अधिकारी
आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के अध्यक्ष भरत पटेल कहते हैं कि स्कूल शिक्षा के अलावा सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री इंदर सिंह परमार है। वह सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री होने के नाते जनजाति और स्कूल शिक्षा की समस्याओं का निराकरण आसानी से कर सकते हैं, उन्हें अधिकारी खुलकर गुमराह कर रहे हैं। इस कारण आदेश में नहीं हैं। विलंब हो रहा तो आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। उधर आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के बैनर तले अपनी सुविधाओं के लिए लड़ रहे अध्यापक हजारों कारों में सवार होकर तिरंगा यात्रा लाएंगे। आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के जिला शाखा अध्यक्ष मनीष शर्मा का कहना है कि 13 सितम्बर को यह यात्रा राजधानी के हर क्षेत्र से शहर में प्रवेश करेंगी। उनका कहना है कि मांगों के लिए यह रचनात्मक आंदोलन करना जरूरी हो गया है। क्योंकि जनजातीय और स्कूल शिक्षा विभाग में अधिकारी अध्यापकों की सुविधाओं के प्रति गंभीर रही है।
अनुकंपा के 50 हजार प्रकरण लंबित
इसी प्रकार अनुकंपा के 50 हजार प्रकरण लंबित पड़े हैं। जनजातीय विभाग में 2100 ग्रेड-पे में प्रयोगशाला सहायक के पद पर दिवंगत अध्यापकों के योग्य आश्रितों को अनुकंपा दी गई है, जबकि स्कूल शिक्षा विभाग में 2400 के ग्रेड-पे पर दी जा रही है। पटेल का कहना है कि पावर ट्रांसफर के चक्कर में सुविधाएं उलझ रही हैं। नियम के मुताबिक उच्च माध्यमिक शिक्षक का नियोक्ता अधिकारी आयुक्त होता है। जबकि माध्यमिक के लिए जेडी और प्राथमिक शिक्षक के लिए डीईओ नियोक्ताकर्ता अधिकारी है। पटेल का आरोप है कि संचालनालय आयुक्त अपनी जवाबदारियों से बचते हुए अपने अधिकार जेडी को को सौंप रहे हैं। यही कारण है कि अनुकंपा सहित अन्य सुविधाएं उलझ रही हैं। जबकि इस विषय में सामान्य प्रशासन विभाग को ध्यान देना चाहिए।
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