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    बापू के बिना गुजर गए तीन साल, मगर अभी भी भरोसा नहीं होता… हम सबकी यादों में हमेशा रहेंगे महेन्द्र बापना

  • February 11, 2023

    इंदौर, राजेश ज्वेल। बीते 36 सालों से इंदौर की पत्रकारिता (Journalism of Indore) से जुड़े रहने के अनुभवों और यादों की किताब के पन्ने अगर पलटने बैठूं (roll over) तो जो चंद नाम जेहन में उभरते हैं , उनमें से एक प्रमुख नाम महेन्द्र बापना (Mahendra Bapna) यानी जगत प्रिय बापू का हमेशा रहेगा… चार साल गुजर गए बापू के बिना, मगर अभी भी भरोसा नहीं होता है कि वह सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं… आज उनकी चौथी पुण्यतिथि पर बापू से जुड़ी कई यादें जेहन में तैरने लगीं और वैसे भी हम सबकी यादों में हमेशा ही रचे-बसे रहेंगे महेन्द्र बापना…!

    ये नाम वैसे तो किसी परिचय का मोहताज नहीं है… इंदौर की रग-रग से अगर बापू परिचित थे तो शहर के चप्पे-चप्पे पर उनकी पत्रकारिता के हस्ताक्षर अमिट है… हमारे अग्निबाण के पर्याय बापू थे ही, वहीं शहर की भी वे एक जरुरत बन गए थे…हर छोटी-बड़ी घटनाओं पर उनकी पैनी नजर रहती थी… लाइव मैदानी रिपोर्टिंग के तो वे उस्ताद थे ही… वही उनके संपर्कों का दायरा भी अत्यंत विशाल था.. आज की पीढ़ी के जो पत्रकार हैं , उनके पास संदर्भ नाम पर शून्य बटा सन्नाटा है और जो सामने वाले ने दे दिया, उसे ज्यो का त्यों परोस देते हैं… लिहाज़ा बापू जैसे खांटी और मैदानी पत्रकार अब बचे भी नहीं हैं, जिनके पास ताजी सूचनाओं की तो कोई कमी नहीं रहती थीं… वहीं उससे जुड़ी संदर्भित बातें , साक्ष्य भी खूब थे , ये सब खूबियां उनकी लाइव रिपोर्टिंग में परिलक्षित भी होती थी… क्राइम रिपोर्टिंग में भी उन्होंने एक मिसाल कायम की वही राजनीति के साथ अन्य विषयों में भी पारंगत रहे…


    उनके साथ एक लम्बा अरसा अग्निबाण में ही सिटी रिपोर्टिंग करते हुए मेरा भी गुजरा और कई तरह की खट्टी-मि_ी यादें शुमार रही है… वैसे तो शहर की हर घटना या खबर के कवरेज की ललक उनमें अंतिम दम तक रही और वे इस प्रयास में भी रहते थे कि हर जगह मौजूद रहें… सुबह से देर रात तक उनकी दिनचर्या लगभग सालों से एक समान ही रही, जिसमें उम्र और स्वास्थ्य भी अधिक असर नहीं डाल सके… शादी समारोह हो या अंतिम संस्कार-उठावना, वहां तो बापू की अनिवार्य उपस्थिति रहती ही थी… तो दूसरी तरफ़ पत्रकार साथियों की मदद को भी वे सदैव तत्पर रहते और कब किसकी मदद किस तरह हो सकती है, उसका पूरा अनुभव उनको था और शहर के तमाम मीडियाकर्मी ये बात स्वीकार भी करते हैं… अग्निबाण परिवार में तो कभी बापू की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकतीं , क्योंकि इस अखबार के साथ उनका 35 साल का नाता रहा और वे खुद इस अखबार का एक जरुरी हिस्सा हो गए थे… अग्निबाण ने लाइव मैदानी रिपोर्टिंग से लेकर खबरों को ब्रैक करने के मामले में जो कीर्तिमान बनाए उसमें महेन्द्र बापना के योगदान को कतई कमतर नहीं आंका जा सकता… अभी विगत 17 जनवरी को मुझे भी अग्निबाण से जुड़े पूरे 25 साल हो गए हैं और इस यात्रा के दौरान मेरा और बापू का 22 सालों का साथ रहा … कई महत्वपूर्ण आयोजन, निगम बजट से लेकर अन्य मसलों की रिपोर्टिंग का जिम्मा वे मुझे सौंप देते.. मोबाइल पर अभी भी ऐसे ही उनके कुछ व्हाट्सएप मैसेज पड़े हैं, जिसमें लिखा है – ज्वेल जी, ये आयोजन या कवरेज आप देख लेना… !

    वाकई बापू की कोई जोड़ नहीं थी… वे समय से पहले चले गए और अपने पीछे पत्रकारिता की एक परंपरा और विरासत छोड़ गए जो नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए किसी पाठ्य पुस्तक से कम नहीं है… हालांकि आज के दौर में पत्रकारिता और अगर सिटी रिपोर्टिंग की बात की जाए तो पहले की तुलना में काफी आसान हो गई है… मोबाइल पर ही फोटो सहित तमाम जानकारियां व्हाट्सएप-ईमेल या अन्य प्लेटफॉर्म के जरिए मिल जाती है… वरना पहले शहर भर की खाक छानना पड़ती थी और मामूली सी खबर के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था क्योंकि साधन -संसाधन भी कम थे … वही कोई अंदर की जानकारी निकालने के लिए भी मज़बूत सूत्र के अलावा उस विषय की तगड़ी पकड़ भी जरुरी थी आजकल तो व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी पर हर कोई खुद को किसी पत्रकार से कम नहीं समझता और सोशल मीडिया पर भी पत्रकारों की बाढ़ आ गई है, बावजूद इसके की साधनों के साथ संपर्क प्रक्रिया और खबरों का संकलन आसान हो गया है, फिर भी बापू जैसे असल मैदानी रिपोर्टर की जरुरत और कमी महसूस होती है … बहरहाल जिस जगह आज ही के मनहूस दिन 2019 में बापू का एक्सीडेंट हुआ था उस पिपल्याहाना चौराहा का नाम आज से महेन्द्र बापना (बापू) चौराहा किया जा रहा है… इंदौर नगर निगम सहित उन तमाम साथियों का साधुवाद, जिन्होंने इस नेक काम में अपनी सक्रियता दिखाई और बापू की याद को चिरस्थाई बनाने में योगदान दिया…समय यूं ही बीतता जाएगा, मगर बापू की यादों के गुलाब हमेशा ताजा रहेंगे..! परवीन शाकिर का ये शेर इस मौक़े पर याद आ रहा है ..
    कल उसकी आंख ने क्या
    जिंदा गुफ्तगू की थी…
    गुमान तक ना हुआ वो
    बिछडऩे वाला है…

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