भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना काल में ग्लूकोमा यानि काला मोतिया के रोगी तेजी से बढ़े हैं। भोपाल में तो कोरोना संक्रमण काल के दौरान ग्लूकोमा के करीब चार प्रतिशत मरीज बढ़ गए हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना काल में स्टेराइड का ज्यादा सेवन बताई जा रही है। हाल ये है कि वक्त पर इसकी जांच और उचित इलाज न कराया जाए तो करीब 3 प्रतिशत मरीजों में दृष्टिहीनता भी हो सकती है।
कोरोना काल में शहर में ग्लूकोमा के मरीजों की संख्या में करीब चार प्रतिशत का इजाफा हुआ है। संक्रमण की चपेट में आए लोगों का स्टेराइड का अधिक सेवन करना इसकी अहम वजह है। वर्तमान में नेत्र संंबंधित समस्या से जूझने वालों में करीब पांच प्रतिशत मरीज ग्लूकोमा के होते हैं।
युवाओं में भी ग्लूकोमा की शिकायत
एक शोध के अनुसार ग्लूकोमा जहां पहले 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को होता था, वहीं अब 35 वर्ष के युवाओं में भी इसकी शिकायत सामने आ रही है। 40 की उम्र पार कर चुके हर चार में से एक युवा को ग्लूकोमा का खतरा रहता है। नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार शहर में इसके मरीज तेजी से बढ़े हैं। इसके प्रमुख कारणों में बिगड़ी जीवनशैली, वंशानुगत समस्या और लंबे समय तक आंखों में स्टेराइड युक्त दवा डालने के साथ ही स्टेराइड का अधिक सेवन भी है। कोरोना संक्रमण की चपेट में आने वाले मरीजों को स्टेराइड दिया गया था। इन मरीजों में जिन्हें पहले से आंखों से संबंधित समस्या थी या जिनके घरों में पहले से किसी को ग्लूकोमा था, उन्हें ग्लूकोमा की शिकायत बढ़ गई।
क्यों खतरनाक है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा देश और प्रदेश में अंधत्व का एक प्रमुख कारण है। शुरुआती दौर में इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। भारत में ग्लूकोमा के मरीजों की संख्या ज्यादा है। 40 की उम्र के बाद हर चार में से एक को ग्लूकोमा होने की आशंका रहती है। अनियमित जीवनशैली इसकी बड़ी वजह है। स्टेराइड खाने की अपेक्षा आइ ड्राप ज्यादा क्षति पहुंचा सकता है। चिकित्सकीय सलाह के बगैर आइ ड्राप बिल्कुल न डालें। इससे बचने के लिए वर्ष में एक बार आंखों की जांच जरूर कराएं।
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