नुक। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की समस्या हमारी उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से गंभीर होती जा रही है. तभी तो दुनिया तेजी से डूबने की ओर बढ़ रही है और हमें पता तक नहीं चल रहा है. दरअसल, एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक दशक में ग्रीनलैंड (Greenland) में 3.5 ट्रिलियन टन बर्फ पिघल (3.5 trillion tons of ice melted) गई, जिस कारण समंदर का जल स्तर एक सेंटीमीटर तक बढ़ गया. इससे दुनिया भर में बाढ़ आने का खतरा बढ़ गया है.
दरअसल, शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यूरोपीय स्पेस एजेंसी European Space Agency (ESA) के क्रियोसैट-2 सैटेलाइट मिशन (Cryosat-2 Satellite Mission) का इस्तेमाल कर ग्रीनलैंड के ग्लेशियर की माप की है. इस अध्ययन की रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशन पत्रिका में प्रकाशित हुई है. इस तरह का काम पहली बार सैटेलाइट के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है. तकनीकी भाषा में इसे आइस शीट रनऑफ (ice sheet runoff) कहा जाता है.
बीते चार दशक में तेजी से पिघले बर्फ
शोधकर्ताओं मे पाया कि बीते चार दशक के दौरान बर्फ के पिघलने से बने पानी में 21 फीसदी का इजाफा हुआ. इस अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2011 और 2020 के दौरान वर्फ के पिघलने के कारण समंदर का जल स्तर वैश्विक स्तर पर एक सेंटीमीटर बढ़ गया. इससे पूरा इकोसिस्टम अव्यवस्थित हो सकता है. शोधकर्ताओं ने कहा कि समंदर के जल स्तर के बढ़ने के कारण दुनिया के जलवायु पर असर पड़ता है. इससे पूरी दुनिया के मौसम में उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है.
वर्ष 2012 और 2019 की गर्मियां सबसे प्रतिकूल रहीं
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि 2012 और 2019 की गर्मियां सबसे प्रतिकूल रहीं. इन दो गर्मियों में सबसे ज्यादा बर्फ पिघली. ऐसा बीते 40 सालों में नहीं देखा गया था. अध्ययन से पता चलता है कि बीते दशक के दौरान हर साल औसतन 357 अरब टन बर्फ पिघलकर समंदर में पहुंचा. यह समंदर के एक मिलीमीटर पानी के बराबर है. 2012 में सबसे अधिक 527 अरब टन बर्फ पिघला था. इस कारण धरती के वायुमंडल के पैटर्न में काफी बदलाव देखा गया.
मौसम पर पड़ा रहा प्रतिकूल असर
बर्फ पिघलने का मुख्य कारण मौसम की बुरी स्थिति रही है. अत्याधिक लू और अक्सर गर्म हवाओं के चलने के कारण ये बर्फ पिघल रहे हैं.
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