वाराणसी । नमामि गंगे (Namami Gange) के तहत ‘क्लीन गंगा’ की तमाम योजनाएँ जिस सीवेज आकलन पर टिकी हैं वही सवालों के घेरे में हैं। यानि गंगा में कितना सीवेज यानी प्रदूषित तरल (sewage ie polluted liquid) गिर रहा है, इसकी पुख्ता जानकारी किसी को नहीं है। अब यह नौबत आ गई कि वाराणसी में गंगा किनारे रहने वाले लोग और उनके घर अब सुरक्षित नहीं हैं।
बता दें कि बनारस में रोज 5 से 7 करोड़ लीटर सीवर का पानी गंगा में गिर रहा है। अभी अस्सी और सामनेघाट जैसे 7 बड़े और 13 छोटे नालों का पानी गंगा को प्रदूषित कर रहा है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड वाराणसी के वैज्ञानिक ने बताया कि सीवर का पानी गिरने से पानी में फास्फोरस और नाइट्रेट मिला है, जो जीवों के लिए खतरनाक है।
गंगा प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह नाला माना जाता है। यहां से प्रतिदिन गंगा नदी में करोड़ों लीटर सीवेज पानी रोजाना सीधे गिरता है। शहर का लगभग एक चौथाई सीवर का पानी विभिन्न नालों से होते हुए गंगा में मिलता है। जिससे गंगा का पानी प्रदू्षित हो रहा है।
तीर्थनगरी काशी में गंगा निर्मलीकरण की योजनाएं जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं। करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी न तो घरेलू और औद्योगिक अवजल के शोधन की व्यवस्था की जा सकी और न नालों को गंगा में बहने से रोका जा सका, हालांकि सरकार दावा करती है कि गंगा को निर्मल करने के लिए करोड़ों रूपए की योजनाएं चल रही है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से गंगा में पानी की मात्रा लगातार कम हो रही है। अभी तक जिनती योजनाएं बनी हैं, वह सिर्फ प्रदूषण नियंत्रण को लेकर बनाई गई हैं। जबकि प्रवाह बढ़ाने पर सरकार का ध्यान नहीं है।
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