उज्जैन। धार्मिक नगरी उज्जैन में हर दिन स्नान के लिए बाहर से श्रद्धालु आते हैं और शिप्रा का पानी काला देखकर उनकी आस्था आहत होती है, क्योंकि शिप्रा में शहर के 13 बड़े नाले सीधे रूप से गंदगी उड़ेल रहे हैं वहीं कान्ह का गंदा पानी भी इसमें लगातार मिल रहा है। शिप्रा शुद्धिकरण न्यास से लेकर अब तक चले सरकारी अभियान भी शिप्रा को निर्मल नहीं करा पाए हैं। उज्जैन शहर की पहचान क्षिप्रा नदी और महाकालेश्वर मंदिर से है। इसी के किनारे प्रत्येक 12 वर्ष में सिंहस्थ मेला आयोजित होता है। इसमें क्षिप्रा स्नान करने के लिए देश तथा दुनिया भर के साधु संतों से लेकर श्रद्धालु तक पहुंचते है। लंबे समय से शिप्रा शुद्धिकरण की मांग साधु संत करते आए हैं और कुछ माह पहले संतों ने धरना और भूख हड़ताल तक की। इसके बाद मुख्यमंत्री से भोपाल जाकर मिले जहां मुख्यमंत्री ने संकल्प लिया कि अब शिप्रा को मैं शुद्ध कराऊंगा लेकिन शहर के 13 बड़े नाले आज भी रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी शिप्रा में उड़ेल रहे हंै। सिंहस्थ 2016 में इन नालों को रोकने के लिए अस्थायी रूप से प्रयास किए गए थे। सभी नालों को क्षिप्रा किनारे से करीब डेढ़ या दो किमी दूर मिट्टी के बांध बनाकर रोका गया था। इस पर भी लाखों रूपए खर्च किए गए थे। अभी एक माह पूर्व भी पर्व स्नान पर कान्ह का पानी रोकने लिए मिट्टी का बांध बनाया था जो भी ढह गया और कल मौनी अमावस्या का स्नान भी इसी गंदे काले पानी में करना पड़ा।
करोड़ों डकार गए अधिकारी
शिप्रा शुद्धिकरण के लिए सौ करोड़ की कान्ह डायवर्शन योजना बनी थी और वह फेल हो गई। इस योजना का काम करने वाले अधिकारी पैसा खाकर यहाँ से चले गए और शिप्रा आज भी कान्ह नदी के गंदे पानी को अपने में समेट रही है। वहीं अब दावा किया जा रहा है कि 402 करोड़ के सीवरेज प्रोजेक्ट के जरिये पूरे शहर का गंदा पानी आगर रोड स्थित सुरासा गाँव में बन रहे बड़े ट्रीटमेंट प्लांट में फिल्टर किया जाएगा और साफ करने के बाद इसे कालियादेह महल के पार शिप्रा में छोड़ा जाएगा। कुल मिलाकर यह नया प्रोजेक्ट भी बगैर ट्रीटमेंट प्लांट के शिप्रा को मिलने वाले नालों के गंदे पानी से स्थाई मुक्ति नहीं दिला पाएगा। इस प्रोजेक्ट का काम अधिकारी ईमानदारी से कर रहे हैं या नहीं इसकी निगरानी कौन कर रहा है, इस बारे में किसी के पास उत्तर नहीं है। अब तक इस प्रोजेक्ट को टाटा कंपनी कर ही है और तीन साल से अधिक समय बीत गया है लेकिन यह कार्य कितनी प्रगति कर पाया है, यह सब जानते हैं और शिप्रा प्रदूषण से घिरी हुई है।
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