मामला ही बल का है… एक दुर्बल है, एक बलवान…. लेकिन दोनों ही बल दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं… लोकसभा हो या राज्यसभा दोनों में ही विपक्षी दलों का संख्या बल कमजोर है, जबकि सत्तापक्ष में बल का जोर है… इनके 87 उनके 101 से मुकाबला नहीं कर पाएंगे… लेकिन सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे… वो जानते हैं इन्हें चाहे जहां हराएंगे… संख्या बल में जीत नहीं पाएंगे… इसलिए हिकारत के तीर चलाएंगे… चाहे जैसी उठक-बैठक कराएंगे… वो भले ही अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे, लेकिन बहुमत नहीं जुटा पाएंगे… सत्ता के गलियारे और संसद के नजारे ऐसी ही ओछी-टुच्ची हिमाकतों में दिन गुजार रहे हंै… देश में कई जगह बाढ़ और बादल फटने जैसी घटनाएं कहर ढा रही हैं…करोड़ों लोग बेघर हो चुके हंैं.. कई के व्यापार लुट चुके हैं… हजारों लोग मार्गों में फंसे पड़े हैं… यातायात ठप पड़ा है… खाने-पीने की चीजों का टोटा पड़ा है… बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं और निगाहें आसमान पर उठाए मदद की टकटकी बांध रहे हैं… मगर जिम्मेदार सांसद चुहलबाजी में वक्त गंवा रहे हैं…बेकार मुद्दों पर वॉकआउट कर अपनी ताकत दिखा रहे हैं…कभी राहुल गांधी बिलबिलाते हैं…कभी कांग्रेसी कोहराम मचाते हैं…कभी अखिलेश उंगली उठाते हैं…कल तो समाजवादी नेता जया बच्चन ने हद कर डाली…पति का नाम अपने नाम से जोड़े या न जोड़ें जैसी टुच्ची सी बात पर संसद का न केवल समय गंवाया, बल्कि पूरे विपक्ष को वॉकआउट कराकर देश के मुद्दों को भी लटकाया…विपक्षियों की इन्हीं हरकतों से दो-दो हाथ करने वाले सभापति के खिलाफ अब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है… लेकिन वो जानता है कि उसका थोथा चना कोई भाड़ नहीं फोड़ पाएगा… फिर भी हम हैं और पहले से ज्यादा हैं की जिद पर जरूर अडक़र देश, जनता और जरूरतों के लिए मिला वक्त गंवाएगा…सरकार को पहले इस बात का संतोष था कि लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं था, लेकिन नेता मिला तो ऐसा, जिसकी ठिठोली बोली कभी संसद में बजट से पहले बंटने वाले हलवे में जातिवाद का तडक़ा लगाती है… तो कभी संसद में किसानों को प्रवेश नहीं दिए जाने पर स्पीकर पर आरोप लगाने से बाज नहीं आती है… हर बार केवल अडानी-अंबानी के राग अलापने वाले राहुल अजीत डोभाल और मोहन भागवत तक को संसद में खेंच लाते है… अपने क्षेत्र वायनाड़ की जनता के लिए कहीं लड़ते नजर नहीं आते है…विपक्ष को यह तक नहीं पता कि संसद के सत्र का एक-एक मिनट कितना कीमती होता है…देश का बजट क्या मायने रखता है… आपदाओं और विपदाओं से मुकाबले का रास्ता इसी सदन से निकलता है… संसद में मुद्दों पर तर्क-वितर्क और विपत्ति पर विचार-विमर्श चर्चा होना चाहिए… लेकिन विपक्षी आरोप-प्रत्यारोप और बेवजह के तर्क करते हुए संसद का समय स्वाहा करते आ रहे हैं… अपना बल दिखा रहे हैं… जनता का बल समझ नहीं पा रहे हैं…निर्बल की ताकत जिस दिन अविश्वास प्रस्ताव लाएगी उस दिन पक्ष-विपक्ष दोनों को सबक की याद आ जाएगी….
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