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कांग्रेस की फजीहत कराने वालों पर गिरेगी गाज

August 01, 2022

  • जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में पार्टी के साथ नहीं दिखे कई जिलाध्यक्ष

भोपाल। पांच नगर निगमों में महापौर प्रत्याशी को जीता कर भाजपा को बैकफुट पर लाने वाली कांग्रेस जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पूरी तरह पस्त नजर आई। आलम यह रहा कि कई जगह जनपद सदस्यों की संख्या अधिक होने के बाद भी कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी की बूरी तरह हार हुई। इसके पीछे जिला अध्यक्षों की निष्क्रियता और संगठन में एकजुटता का अभाव मुख्य वजह रही। इससे पार्टी की खूब फजीहत हो रही है। ऐसे में कांग्रेस की फजीहत कराने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी हो रही है। इसमें कई जिलों के अध्यक्ष भी शामिल हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में 51 जिलों में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने 41 और कांग्रेस ने 10 जिलों में जीत हासिल की। कई जिलों में बहुमत के बाद भी कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी का हार का सामना करना पड़ा। इससे कांग्रेस के मिशन 2023 को झटका लगा है। ऐसे में कांग्रेस रिपोर्ट तैयार करवा रही है कि किस जिले में किस पदाधिकारी के कारण पार्टी को हार मिली है। इसमें कई जिलाध्यक्ष निशाने पर है।

कुछ जिलाध्यक्षों पर गिरेगी गाज
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव खत्म होने के बाद अब कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटेगी। इसके पहले उन जिलों के अध्यक्षों तथा प्रदेश पदाधिकारियों की कुंडली तैयार की जाएगी जो जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाने में असफल रहे हैं। उन नेताओं की भी रिपोर्ट बनेगी जिन्होंने पार्टी में रहकर भाजपा का साथ दिया या फिर घर बैठे रहे। गौरतलब है कि कांग्रेस ने राजगढ़, सिंगरौली, झाबुआ, देवास, डिंडौरी, नर्मदापुरम, छिंदवाड़ा, अनूपपुर, दमोह, बालाघाट में अपनी पार्टी के समर्थक को अध्यक्ष का पद जिताया है। कांग्रेस ने रतलाम में भी कांग्रेस प्रत्याशी के जीतने का दावा किया था, लेकिन बाद में तीन वोट रद्द कर दिए गए। इसे लेकर कांग्रेस अपील में चली गई। धार और उमरिया में भाजपा और कांग्रेस को बराबर वोट मिले थे। ड्रा में कांग्रेस प्रत्याशी हार गए। वहीं भाजपा ने कटनी, मंदसौर, दतिया, मुरैना, नरसिंहपुर, शहडोल, सागर, ग्वालियर, गुना, भिंड, शिवपुरी, बुरहानपुर, शाजापुर, मंडला, रायसेन, सीहोर, पन्ना, टीकमगढ़, रीवा, बड़वानी, निवाड़ी, विदिशा, सतना, उज्जैन, आगर, बैतूल, अशोकनगर, धार, खरगोन, उमरिया, खंडवा, इंदौर, नीमच, सिवनी, श्योपुर, छतरपुर और हरदा में अपनी पार्टी के समर्थक को जिताया है। भाजपा ने जिन जिलों में जीत दर्ज की है उनमें से कुछ जिले ऐसे भी हैं जहां जिलाध्यक्षों की निष्क्रियता और संगठन में तालमेल नहीं होने के कारण हार मिली है।


इनकी भूमिका संदेह के घेरे में
चुनाव परिणाम के बाद जो तस्वीर सामने आई है उसमें कई जिलाध्यक्षों की भूमिका संदेह के घेरे में है। धार जिले में तो जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हारने के बाद जिला कांग्रेस अध्यक्ष बालमुकुंद गौतम का वीडियो डांस करते हुए वायरल हुआ है। उन्होंने गीत भी गया कि ‘जिंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है। छतरपुर में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। यहां भाजपा के ही दो प्रत्याशी आमने-सामने रहे। बड़वानी में भाजपा के दो दिग्गज नेताओं के टकराव में कांग्रेस फायदा नहीं उठा पाई। भोपाल जिले के कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पाला बदल दिया। शहडोल जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस की भूमिका सार्वजनिक हुई है। यहां मतदान के 3 दिन पहले जिला कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर सिंह ने मीडिया को बताया था कि वे निर्दलीय मंजू गौतम रैदास को चुनाव मैदान में उतारेंगे। लेकिन, सम्मिलन के दिन प्रत्याशी के नामांकन दाखिल करने के दौरान प्रस्तावक ही नहीं पहुंचा। लिहाजा भाजपा समर्थित प्रत्याशी निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बन गई। इसको लेकर कांग्रेस ने जिला अध्यक्ष को हटा दिया है। इसी तरह ग्वालियर में जिला कांग्रेस महामंत्री केशव बघेल को निष्कासित कर दिया गया।

हार पर होगा मंथन
कांग्रेस जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव परिणाम आने के बाद रिपोर्ट तैयार करवा रही है। नगर निगम महापौर के चुनाव में कांग्रेस ने पांच स्थानों पर विजय हासिल की है लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा क्यों जीती। क्या निकाय चुनाव में प्रत्याशी का ही प्रभाव रहा है और पंचायत चुनाव में संगठन पदाधिकारी हाथ पे हाथ धरे बैठे रहे या फिर क्षेत्र में उनका असर नहीं रहा। वहीं प्रदेश पदाधिकारियों से जिलों का फीडबैक लिया जा रहा है। अभी कांग्रेस संगठन के चुनाव चल रहे दौरान उन नेताओं का परफॉर्मेंस देखेंगे हैं। इसमें ब्लॉक से लेकर प्रदेश जिन्होंने जीती बाजी हारी है। कमजोर पदाधिकारी बनाए जाएंगे। संगठन चुनाव के चलते ही जिला कांग्रेस अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों की रिपोर्ट मांगी जाएगी। प्रदेश कांग्रेस संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर का कहना है कि वैसे चुनावों में हम कहीं से कमजोर नहीं पड़े, बल्कि सरकार ने पैसा, पुलिस और प्रशासन के दम पर चुनाव जीते हैं । फिर भी संगठन चुनाव के नेताओं को ब्लॉक से लेकर जिलों तक बदलने की भी कार्रवाई हो सकती है।

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