– डॉ. प्रभात ओझा
रूस- यूक्रेन युद्ध की तस्वीर अब साफ है। रूस को लगता है कि उसने यूक्रेन को उसकी मर्जी करने लायक रखा तो वह नाटो खेमे का हिस्सा हो जाएगा। इससे रूस की सीमाओं तक नाटो देश आसानी से पहुंच जाया करेंगे। अमेरिकी अड्डे पहले से ही उसके लिए चिंता के कारण हैं। इस बीच तमाम उतार-चढ़ाव के बीच यूक्रेन का नाटो में होना भी तय हो चुका है। यह अलग बात है कि वह अपने बचे हुए कितने भू-भाग के साथ वहां होगा। ऐसा कहते समय लग सकता है कि अभी से रूस की जीत और यूक्रेन की बदहाली का जिक्र हो रहा है। इसे स्पष्ट करने के लिए बताना होगा कि रूस अपने प्रतिद्वंद्वी यूक्रेन के हिस्सों, दोनेत्स्क और लुहांस्क को न सिर्फ आजाद करा चुका है, इन दोनों हिस्सों को सीरिया और निकारगुआ ने स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता भी दे दी है।
यूक्रेन के इन दोनों पुराने हिस्सों में रूसी मूल के लोग बहुतायत में हैं। ठीक उसी तरह, जिस तरह पाकिस्तान के पुराने हिस्से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बंगाली समुदाय के लोग हैं। सवाल बना रहेगा कि आज युद्ध बंद हो जाए तो दोनेत्स्क और लुहांस्क पूर्ववत रूस का हिस्सा बन जाएंगे। यह मुमकिन नहीं लगता। बांग्लादेश की तरह वे भी देश बन ही जाएंगे और रूस के बहुत अनुकूल नहीं, तो यूक्रेन के लिए मुश्किल के सबब बनते रहेंगे। भविष्य में रूसी राष्ट्रपति अपने लोगों को राष्ट्र का हवाला देकर शायद अनुकूल भी कर लें।
रूस इस युद्ध में विजेता ही है, यह कहना भी आसान नहीं है। दोनेत्स्क और लुहांस्क की कीमत पर उसे बहुत कुछ गंवाना भी पड़ा है। अमेरिका सहित कई देशों में उसके बैंक के ऊपर प्रतिबंध है। देश के तौर पर रूस और स्वयं रूसी राष्ट्रपति के खाते सीज कर दिए गए हैं। अब तो अमेरिका ने अपने हवाई क्षेत्र से रूसी जहाजों के गुजरने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। यह भविष्य में रूसी व्यापार और राजनय, दोनों के लिए कष्टदायक होने वाला है। यानी सीमाओं की सुरक्षा को कुछ हद तक मजबूत करने के साथ रूस आर्थिक तौर पर भारी नुकसान की स्थिति में है।
इस युद्ध का एक और सच है, जो रूस के लिए कटु बनता जा रहा है। अमेरिकी प्रस्ताव पर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने देश से बाहर सुरक्षित निकल आने की जगह लड़ने का फैसला किया। जेलेंस्की ने अमेरिका के बहाने युद्ध विरोधी सभी शक्तियों से कहा कि यूक्रेन हमारा देश है, मैं अपने देश में हूं। दूसरी ओर रूस हमलावर है और इस युद्ध में किसी को यूक्रेन की मदद करनी ही है, तो हमें हथियार दे। यूक्रेनी राष्ट्रपति के इस रणनीतिक बयान ने यूक्रेनी जनता में अजीब जोश भर दिया। वे सड़कों-गलियों में आकर सशस्त्र रूसी सेना का प्रतिरोध करने लगे हैं। दूसरी ओर राष्ट्रपति ने शुभचिंतकों से जिसकी उम्मीद की, वह हथियार भी कम बड़ा मुद्दा नहीं है। यूक्रेन को मिलने वाले हथियार और आर्थिक मदद की ताजा अमेरिकी मदद किन शर्तों पर है, यह भी देखना होगा। हथियार बेचने का अमेरिकी इतिहास स्थापित सत्य है। अमेरिका ही नहीं, युद्ध में लगे दोनों देशों के अतिरिक्त कोई अन्य देश अपना कुछ भी गंवाने वाला नहीं है।
डर यह है कि यूक्रेन भी अफगानिस्तान की तरह नया संघर्ष क्षेत्र न बन जाए। यूक्रेन समर्पण के मूड में नहीं है। इधर एक अनुमान के मुताबिक, इस युद्ध में रूस के हर दिन 20 अरब डॉलर खर्च हो रहे हैं। रूस के अंदर भी भले युद्ध विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, पर रूसी सेना का जल्द वहां लौटना आसान नहीं लगता। वियतनाम और इराक के बाद अफगानिस्तान ताजा उदाहरण है। यानी युद्ध के अभी चलते रहने की आशंका है, रूप क्या होगा, यह अलग बात है। इसी के साथ दुनिया में कई देशों के आपसी संबंध पर भी असर होने वाला है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार में न्यूज एडिटर हैं)
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