पश्चिम अफ्रीका (West Africa) के देश गिनी का हेल्थ प्रशासन कड़ी चुनौतियों से गुजर रहा है। बेहद खतरनाक समझे जाने वाले Marburg Virus से यहां एक शख्स की मौत हो गई है। इसके बाद देश की स्वास्थ्य अथॉरिटी 155 लोगों को मॉनिटर कर रही है। ये लोग मृत व्यक्ति के संपर्क में आए थे। Marburg को दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस (dangerous virus) में गिना जाता है और इसके संक्रमित होने वाले लोगों में औसत मृत्यु दर 50 फीसदी है। लेकिन यह मृत्यु दर 90 फीसदी तक पहुंच सकती है। इस वायरस के लक्षण इबोला जैसे होते हैं।
गिनी में मारबर्ग वायरस का पहला केस पिछले हफ्ते सामने आया था। यह पहली बार है जब पश्चिमी अफ्रीका में मारबर्ग वायरस को स्पॉट किया गया है। जितने लोगों से पहले मरीज की मुलाकात हुई थी, उन सभी लोगों को ट्रेस कर लिया गया है।
अब तक 155 लोगों को सेल्फ आइसोलेशन (self isolation) के लिए कहा गया है। इन लोगों को तीन हफ्तों तक निगरानी में भी रखा जा रहा है। अब तक यहां से इस वायरस का और कोई केस सामने नहीं आया है लेकिन WHO ने इस मामले में गिनी गणराज्य के प्रशासन को पूरी तरह से सतर्क रहने के लिए कहा है।
WHO का कहना है कि चूंकि Gueckedou गांव सिएरा लियोन और लाइबेरिया के बॉर्डर के पास है, ऐसे में इस वायरस के फैलने का खतरा हो सकता हैं। बता दें कि मारबर्ग दुनिया के सबसे डेडली वायरस में शुमार किया जाता है। इस वायरस से प्रभावित होने वाले 50-90 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है।
गौरतलब है कि गिनी में रहने वाले शख्स में 25 जुलाई को मारबर्ग वायरस के लक्षण दिखने शुरू हुए थे। ये व्यक्ति 1 अगस्त को अपने गांव के पास मौजूद छोटे से अस्पताल में इलाज के लिए गया था। इस व्यक्ति को सिरदर्द, थकान, पेट में दर्द था। इस शख्स को कुछ दवा दी गई थी लेकिन वो अगले ही दिन मर गया था। इसके बाद WHO की टीम ने 3 अगस्त को टेस्ट के सहारे कंफर्म किया कि वो मारबर्ग वायरस से पीड़ित था।
गौरतलब है कि साल 2014 में वेस्ट अफ्रीका में आए इबोला वायरस इसी गांव से शुरू हुआ था। ये गांव दो महीने पहले ही इबोला मुक्त हुआ है। हालांकि मारबर्ग वायरस के आने से डब्ल्यूएचओ की चिंता बढ़ गई है। मारबर्ग और इबोला एक दूसरे से काफी रिलेटेड हैं। इस मामले में गिनी गणराज्य में WHO के कंट्री हेड डॉक्टर जॉर्ज की-जेरबो का कहना है कि गिनी इस बार वायरस से लड़ने के लिए तैयार है।
डॉक्टर जॉर्ज ने कहा कि मारबर्ग केस को इतना जल्दी डिटेक्ट करना भी साबित करता है कि इस देश में इंफेक्शन और वायरस की जांच को लेकर तकनीक में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि अब गिनी में ऐसी टीमें बनाई गई हैं जो ऐसे केस सामने आने के बाद तुरंत एक्शन लेती हैं। इसके अलावा एपिडेमियोलॉजिस्ट्स (epidemiologists) और सोशल एंथ्रोपॉलिजिस्ट्स की भी मदद ली जाती है।
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