- चुनाव में देरी के कारण कई वरिष्ठ पूर्व पार्षद क्षेत्र और पार्टी में निश्क्रिय होने पर युवाओं ने ओवरटेक किया
भोपाल। नगर निगम चुनाव में देरी ने दावेदारों का संघर्ष बढ़ा दिया है। बड़ी चुनौती उन वरिष्ठ दावेदारों के लिए है जिन्होंने पूर्व में पार्षद बन अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की लेकिन चुनाव का इंतजार करते-करते फिल्ड और पार्टी में सुस्त पड़ गए। अब चुनावी माहौल तैयार होने पर जब वे फिर सक्रीय हो रहे हैं तो कई नए युवा उनके सामने मजबूत दावेदार के रूप में खड़े हो गए हैं। निगम चुनाव में डेढ़ वर्ष की देरी ने दोनों ही पार्टियों में राजनीतिक समिकरण में बड़ा बदलाव ला दिया है। पूर्व मे जिनके लिए पार्षद टिकट मिलने का रास्ता तुलनात्मक आसान था, अब उन्हें भी नए सीरे से अपनी सीढिय़ा तैयार करना पड़ेंगी। इसके पीछे मुख्य कारण युवा दावेदारी बढऩा है। डेढ़ वर्ष में दोनो ही दलों में कई युवा पार्षद टिकट के लिए दावेदार के रूप में तैयार हो गए हैं। इनमें से अधिकांश भाजयुमो और यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी-कार्यकर्ता हैं। ये वो दावेदार हैं जिन्होंने पार्टी के ही किसी दमदार नेता के समर्थक बन पार्टी में उल्लेखनीय जगह पाने के साथ क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ाया है। ऐसे में टिकट का सपना देा रहे पूर्व पार्षद या अन्य वरिष्ठ दावेदारों को पहला मुकाबला अपनी ही पाटी के युवा दावेदारों से करना पड़ सकता है।
राजनीतिक दलों में कैसे बदले दावेदारी के समिकरण - भाजपा: कांग्रेस सरकार गिरने के बाद भाजपा की सरकार बनी तो कुछ नए नेता-जनप्रतिनिधियों की राजनीतिक ताकत बढ़ी। इन नेताओं के साथ पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता इतने नजदीकी नहीं हुए जितनी युवा लॉबी। इसका असर संगठनात्मक चुनाव-नियुक्ति पर भी दिखा। डेढ़ वर्ष में कई युवा अपने नेता के बुते पार्टी में चर्चित चेहरे हो गए। अब ये युवा अपने वार्ड के पुराने या वरिष्ठ दावेदार को अपने नेता से नजदीकी के दम पर चुनौती दे रहे हैं। इधर जो वरिष्ठ दावेदार थे उनमेंसे कई थोड़े सुस्त पड़ गए जिसके कारण वार्ड में नई दावेदारियां खड़ी हो गई हैं।
- कांग्रेस: 15 साल बाद कांग्रेस सरकार बनी तो कुछ गुट एकाएक मजबूत और उनके नेता अपने शहर-जिले में पार्टी की केंद्र शक्ति बन गए। उनके पास समर्थकों की भीड़ लग गई। पार्टी कार्यालय से लेकर जनप्रतिनिधियों की कार तक में भी कई नए चेहरे रोज नजर आने लगे। तब महापौर और पार्षद सीट को लेकर पार्टी में पुरानों के साथ ही ढेरों नए प्रबल दावेदार तैयार हो गए थे। निगम चुनाव में देरी और फिर सरकार जाने से दोबारा स्थिति बदली। समर्थकों की भीड़ में बड़ी कटोती हुई और कई की दावेदारी कमजोर पड़ गई। इस बीच कुछ नए युवा जो सरकार जाने के बाद भी अपने नेता-जनप्रतिनिधि के साथ बने रहे, वे दावेदारी की तीसरी-चौथी पंक्ति से सीधे पहली-दूसरी में आ गए हैं।