उज्जैन। शहर कांग्रेस में नई टीम बनने के बाद अब जमीनी कार्यकर्ताओं का दर्द सामने आ रहा है और दो दिन पूर्व कांग्रेस कार्यालय में निगम चुनाव प्रभारी बाला बच्चन की मौजूदगी में कार्यकर्ताओं का दर्द उभरकर आया..और उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस अपने नेताओं के दोगले पन के कारण ही हारती है और पार्टी के यह वरिष्ठ नेता ही आधा दर्जन वार्डों में चुनाव हरवा देते हैं, ऐसे हराऊ नेताओं को न टिकिट दिया जाए और न ही उनके प_ों को। इस साफगोई पर बाला बच्चन भी कुछ नहीं बोल पाए। कार्यकर्ताओं ने कहा कि वार्ड क्रमांक 1 से 10 तक पार्टी चुनाव हारती है और 49-50, 51, 52 वाले वार्डों में भी यही हालत होती है।
नगर निगम चुनाव में कांगे्रस के बोर्ड बनने के आसार हैं और कार्यकर्ताओं की संख्या भी कम नहीं हैं लेकिन कई बड़े नेताओं की दाढ़ में खून लग चुका है और वे अपना निजी स्वार्थ पूरा होता नहीं दिखता तो पार्टी की पीठ में खंजर घोंप देते हैं और यह नहीं सोचते कि यदि पार्टी का प्रत्याशी हारेगा तो पार्टी हारेगी और इससे गलत संदेश जाएगा। गलती भोपाल में बैठे बड़े नेताओं की भी है जो ऐसे भीतरघातियों और पार्टी के खिलाफ चुनाव लडऩे वालों को साल छह महीने बाद पुन: पार्टी में ले लेते हैं। कड़ा दंड नहीं मिलने के कारण ही कांगे्रस में बागियों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बार भी यही खतरा सबसे अधिक बना हुआ है। बाला बच्चन के सामने पूर्व में महापौर का चुनाव लड़ चुके दीपक मेहरे ने कहा कि मैं मेरे चुनाव में पार्टी के नेताओं ने ही मुझे हरवा दिया और यह पता लगाना चाहिए कि नगर निगम तथा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ताकत होते हुए भी वार्ड 1 से 10 तक में हार क्यों होती है और इसके पीछे क्या कारण है? सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि किन बड़े नेताओं के वार्ड जिनमें वे रहते हैं वहाँ से कांगे्रस क्यों हारती है। मेहरे ने कहा कि उज्जैन में कांग्रेस के कार्यकर्ता संघर्षशील हैं और कई के शरीर पर पुलिस की लाठियों के निशान हैं लेकिन जब वे चुनाव लड़ते हैं तो उनके खिलाफ कांगे्रस नेताओं के प_े काम करने लग जाते हैं। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने भी इस पर सहमति जताई कि पार्टी में कुछ दोगले नेता जयचंदों की भूमिका निभा रहे हैं। शहर कांग्रेस अध्यक्ष रवि भदौरिया का कहना है कि इस बार ऐसे लोगों को टिकिट नहीं मिलेगा जो पूर्व में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं या फिर उन्हें हरवा चुका है। विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के प्रत्याशियों केा हरवाया गया लेकिन कार्रवाई की बात तो दूर किसी बड़े नेता का बयान तक नहीं आया और सबने चुप्पी साध ली। दरअसल कांग्रेस में धोखा देने और भीतरघात करने की कोढ़ खाज दिल्ली और भोपाल से ही शुरु होती है और उज्जैन तक आते-आते वह नासूर बन जाती है। ऐसे में सही समय पर सही निर्णय लेने की आवश्यकता है।
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