नई दिल्ली । पराली जलाने (stubble burning)को लेकर पंजाब और हरियाणा (Punjab and Haryana)के आठ जिलों पर इस बार खास निगरानी(special monitoring) होगी। पिछले साल इन दोनों राज्यों के बाकी जिलों में पराली की घटनाएं में कमी आई थीं। वहीं, इन आठ जिलों में पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई थी। इसके चलते इस बार इन जिलों में पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम को चुनौती की तरह लिया जा रहा है।
मॉनसून की वापसी के साथ ही दिल्ली-एनसीआर के लोगों की चिंता में पराली के धुएं से होने वाला प्रदूषण भी शामिल हो जाता है। हर साल ही धान की फसल की कटाई के बाद बचे हुए अवशेष को खेतों में ही जलाए जाने के चलते एक बड़े इलाके में धुआं पैदा होता है। उस समय हवा की दिशा उत्तरी-पश्चिमी होने के चलते यह धुआं दिल्ली-एनसीआर की तरफ आने लगता है। पराली का धुआं अन्य मौसमी कारकों के साथ मिलकर लोगों का दम घोंटने लगता है। इसके चलते पिछले दस सालों से लगातार पराली जलाने की घटनाओं पर रोकथाम की कोशिश की जा रही है। अगर पिछले चार सालों के आंकड़ों पर निगाह डालें तो इसमें पचास फीसदी तक से ज्यादा की कमी आई है।
वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 27 फीसदी और हरियाणा में 37 फीसदी तक की कमी आई थी। इन दोनों ही राज्यों के तमाम जिलों में पहले की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में कमी दर्ज की गई थी, लेकिन आठ जिले ऐसे रहे थे, जहां पर पराली जलाने की घटनाएं घटने की बजाय बढ़ गई। सूत्रों के मुताबिक इसके चलते इन आठों जिलों पर इस बार विशेष निगरानी बरती जा रही है।
घटनाओं में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी आई
चार साल पहले की तुलना में पराली जलाने की घटनाएं आधी के लगभग हो गई हैं। हालांकि, अभी भी जितनी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं ही लोगों को बहुत ज्यादा परेशान करता है। केन्द्रीय वायु गुणवत्ता प्रंबधन आयोग के मुताबिक वर्ष 2020 में पराली जलाने की कुल 87 हजार 632 घटनाएं दर्ज की गई थीं। इसकी तुलना में वर्ष 2023 में 39 हजार 186 घटनाएं रिकार्ड की गई थीं। यानी पिछले चार सालों में पचास फीसदी से ज्यादा की कमी आई है।
पराली जलाने के यहां पर बढ़े थे मामले
केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के मुताबिक वर्ष 2022 की तुलना में पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिले ऐसे रहे थे, जहां पर वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी थीं। इनमें पंजाब के अमृतसर, सास नगर और पठानकोट जिले और हरियाणा के रोहतक, भिवानी, फरीदाबाद, झज्झर और पलवल का नाम शामिल किया गया है। इन आठों जिलों पर पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम इस बार चुनौती साबित होने वाली है। इसके लिए पहले से ही तैयारी शुरू कर दी गई है।
दिल्ली-एनसीआर को 40 दिन परेशान करता है धुआं
यूं तो पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद ही कृषि अवशेष जलने लगते हैं, लेकिन इसमें 15 सितंबर के बाद तेजी आती है। इसके चलते 15 सितंबर से ही इस पर निगाह रखी जाने लगती है। इसका नियमित बुलेटिन भी जारी किया जाता है। 15 अक्तूबर से 25 नवंबर तक लगभग 40 दिन के बीच पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। इस दौरान ही लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है।
चार साल के आंकड़े
वर्ष पराली जलाने के मामले
2020 87632
2021 78550
2022 53792
2023 39186
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