ग्वालियर। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर शहर में देश का सबसे पुराना कार्तिकेय मंदिर (Kartikeya Temple) स्थित है। इस मंदिर के पट साल में केवल एक दिन कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर खोले जाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय (Kartikeya) की 400 वर्ष पुरानी दिव्य प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि देश में भगवान कार्तिकेय का ऐसा मंदिर कहीं और नहीं है। साल में केवल एक बार खुलने वाले इस मंदिर को देखने के लिए देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं।
सिर्फ 24 घंटों के लिए खुलते हैं पट
ग्वालियर के प्राचीन कार्तिकेय मंदिर के पट वर्ष में केवल एक बार सिर्फ 24 घंटों के लिए खोले जाते हैं। मंदिर में दर्शन के लिए आधी रात से ही भीड़ लगना शुरू हो जाती है। हालांकि इस साल मंदिर के पट पूर्णिमा से एक दिन पहले खोले गए हैं, क्योंकि पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण हो रहा है।
चार सौ वर्ष पुराना है यह मंदिर
कार्तिकेय भगवान का यह प्राचीन मंदिर ग्वालियर (ancient temple gwalior) के जीवाजी गंज में स्थित है। मंदिर के करीब 80 वर्षीय पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा का कहना है कि यह मंदिर लगभग चार सौ वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है और जब ग्वालियर में सिंधिया राजाओं का शासन हुआ तो उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से यहां लगातार पूजा अर्चना का दौर जारी है।
मध्यरात्रि में खुलते हैं पट
देशभर के कई मंदिरों के पट जहां सुबह ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाते हैं वहीं, साल में केवल एक दिन खुलने वाले इस मंदिर के पट मध्यरात्रि में ठीक बारह बजे खुलते हैं और इसी के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं।
कोने -कोने से पहुंचते हैं श्रद्धालु
कार्तिकेय भगवान का मंदिर वैसे तो मध्यप्रदेश में स्थित है, लेकिन यहां दर्शन करने के लिए एमपी के अलावा यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली (Rajasthan, Maharashtra, Gujarat, Delhi) के साथ ही देश के दूरस्थ राज्यों से भी भक्त ग्वालियर पहुंचते हैं और भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना कर दर्शन का सुख प्राप्त करते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर में प्रसाद बांटने वाले राजेन्द्र शिवहरे का कहना है कि वह 20 वर्षों से यहां प्रसाद का वितरण कर रहे हैं। बीस साल पहले जब उनकी मनोकामना पूरी हुई तो उन्होंने पांच किलो प्रसाद वितरित किया था, लेकिन मेरे परिवार में खुशियां आती गईं और मात्रा बढ़ती गई। इस वर्ष वे एक क्विंटल 11 किलो का प्रसाद वितरित कर रहे हैं।
वर्ष में केवल एक बार क्यों होते हैं दर्शन
पुजारी जमुना प्रसाद शर्मा शास्त्रों के हवाले से बताते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती ने जब अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के विवाह की सोची तो दोनों के सामने शर्त रखी कि जो ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा, उसका विवाह सबसे पहले करेंगे। इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर ब्रह्मांड परिक्रमा करने निकल गए। भगवान गणेश ने बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की और सामने आकर बैठ गए। उनका विवाह हो गया। यह बात नारदमुनि के जरिये कार्तिकेय को पता चली तो वे क्रोधित हो गए। यह पता चलने पर शिव पार्वती उन्हें मनाने पहुंचे तो उन्होंने श्राप दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा वह सात जन्मों तक नरक भोगेगा। लेकिन माता-पिता के बहुत मनाने पर वे अपने श्राप को थोड़ा परिवर्तन करने को राजी हुए। उन्होंने वरदान दिया कि उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा पर जो भी भक्त उनके दर्शन देगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। तभी से उनके दर्शन वर्ष में एक बार करने कीी प्रथा शुरू हुई।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved