मुंबई: कहते हैं कि सिनेमा समाज का आईना होता है. आम जिंदगी हो, क्राइम हो या फिर शादी-ब्याह, फिल्मों में जीवन का हर रंग देखने को मिलता है. हर दौर में ऐसे फिल्मी गाने बने हैं जो शादी-ब्याह में खूब बजते हैं. चाहे मेहंदी-फेरे की रस्में हो या विदाई की. आज एक ऐसे ही गाने की बात कर रहे हैं जो साल 1968 में पहली बार सुनने को मिली थी.
वहीदा रहमान, राज कुमार, मनोज कुमार स्टारर फिल्म ‘नील कमल’ का एक गाना ‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’ एक ऐसा गाना है,जो लगभग हर बेटी की विदाई पर जरूर सुना जाता है. इस गाने में इतना दर्द है कि न चाहते हुए सुनने वालों की आंखे छलक जाती हैं. लेकिन मोहम्मद रफी की आवाज में इतना दर्द आया कैसे, इसका किस्सा बेहद दिलचस्प है.
जब किसी गाने की रिकॉर्डिंग होती है तो डायरेक्टर तो बताते ही हैं कि गाना किस मूड का है, बोल से भी सिंगर्स को पता चल जाता है. कुछ गाने मस्ती भरे होते हैं, कुछ रोमांटिक होते हैं तो कुछ दर्द भरे होते हैं. हर गाने का अपना मूड होता है और जो सिंगर्स गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज ढाल लेते हैं, उसका जिक्र बरसों बाद भी होता है, जैसे आज ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ का हो रहा है.
मोहम्मद रफी के दिल से निकला एक-एक लफ्ज
मोहम्मद रफी की आवाज में इस गाने को जब भी सुनिए तो ऐसा लगता है कि गाने का एक-एक लफ्ज दिल की गहराइयों से निकला है. मशहूर सिंगर जब इस गाने को रिकॉर्ड कर रहे थे तो गाने के हर शब्द अपनी बेटी की विदाई से जुड़े हुए लग रहे थे. अपनी बेटी की शादी और विदाई की कल्पना कर रफी साहब भावुक हो रहे थे. दरअसल, रफी साहब की बेटी की शादी इस गाने की रिकॉर्डिंग के दो दिन बाद होनी थी.
जज्बात में बह गए रफी साहब रोते रहे और गाते रहे
रफी साहब ने करीब 50 साल पहले ‘शमां मैगजीन’ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘मैं गाने की रिकॉर्डिंग करवा रहा था और ख्यालों में दो दिन बाद होने वाली अपनी बेटी की शादी का मंजर देख रहा था. मैं उन्हीं लम्हों के जज्बात की रौ में ऐसा बह गया कि लगा मेरी बेटी डोली में बैठ मुझसे जुदा हो रही है और मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. उसी हालत में मैंने ये गाना रिकॉर्ड किया. हकीकत में आंसू मेरे दिल से निकले और आवाज से साए में ढल कर आ गए’.
‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ भावुक विदाई गीत
शायद यही वजह है कि मोहम्मद रफी साहब की आवाज में इमोशन से भरपूर इस गाने को सुन हर पिता अपनी बेटी की विदाई पर रो पड़ता है. रफी ने करीब 369 गानों की रिकॉर्डिंग की थी, जिसमें 186 सोलो थे, लेकिन ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ का कोई जवाब नहीं है.
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