सतना: माई शारदा के अनन्य भक्त वीर आल्हा की कहानी और असाधारण भक्ति के किस्से तो हर किसी ने सुनें होंगे, लेकिन मैहर में मां शारदा के मंदिर से कुछ ही दूर में स्थित आल्हा अखाड़े के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. मान्यता है कि इसी अखाड़े में आल्हा दंगल खेलते हैं और अखाड़े के समीप बने तालाब में स्नान कर के मां शारदा की आराधना प्रातः काल सब से पहले करते हैं.
मां शारदा के त्रिकूट पर्वत से नीचे 1 किलोमिटर दूर पीछे की ओर एक अखाड़ा मौजूद है, जिसे आल्हा का अखाड़ा कहा जाता है. यहीं 200 मीटर दूर 2, 3 मंदिरों का समूह और तालाब है जिसे आल्हा के तालाब के नाम से जाना जाता है. यहीं आल्हा का मंदिर बनाया गया है. मान्यता है कि आल्हा अमर है और इसी अखाड़े में प्रतिदिन दंगल खेलते हैं और समीप के तालाब में स्नानध्यान के बाद यहीं से मां शारदा की पूजा करने जाते हैं.
आल्हा अखाड़े के पण्डित ने बताया कि यहां स्थित गुफा में कई वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है. माना जाता है कि इस अखंड ज्योति को भक्तराज आल्हा ने जलाया था. जिसके बाद से अब तक यहां के पुजारी और महंत इसकी देख रेख, रख रखाव करते आ रहे हैं. पण्डित जी ने बताया कि 300 वर्षों तक की जानकारी मुझे ही पता है कि कौन-कौन पुजारी इसे अखण्ड रूप से जलते रहने के लिए यहीं पर तपस्या की है और जलाए रखा है. मान्यता है कि इस ज्योति और आल्हा अखाड़े में आकर इनके दर्शन से भक्त वत्सल आल्हा की भक्ति साधना की प्रेरणा और माई का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
त्रिकूट पर्वत के ऊपर बिराजित माता शारदा के मंदिर से जब आप पीछे आते हैं तो पहाड़ी के ऊपर से दिखता है आल्हा का अखाड़ा और तालाब. मां शारदा के दर्शन के बाद आल्हा अखाड़ा जाने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि भक्तशिरोमणि आल्हा के मंदिर में अर्जी लगाने से आल्हा मां शारदा के दरबार में अर्जी लगाते हैं और माता मन्नत पूर्ण करती हैं.
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