नई दिल्ली: आगामी त्योहारी सीजन (upcoming festive season) के दौरान देश में प्याज की कीमतें बढ़ने की संभावना है. इसे देखते हुए भारत सरकार (Indian government) ने शनिवार (19 अगस्त) को प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगा दिया था, जिससे बाजार में नियंत्रित कीमतों पर प्याज की आपूर्ति (Onion supply at controlled prices in the market) बनी रहे. सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार, 31 दिसंबर तक प्याज के निर्यात पर शुल्क लागू रहेगा. यानी 31 दिसंबर तक अगर कोई व्यापारी अन्य देश को प्याज निर्यात करता है तो उसे शुल्क के रूप में 40 फीसदी सरकार को देना होगा.
वैश्विक परस्पर निर्भरता के युग में ऊर्जा आपूर्ति से लेकर खाद्य सुरक्षा तक के क्षेत्रों को लेकर किसी भी देश का निर्णय शायद ही उस देश तक सीमित रहता है. प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगाने के भारत के कदम का भी असर सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा है. भारत के इस कदम से अरब दुनिया के वह देश जो मुख्यतः आयात पर निर्भर हैं, उनके लिए प्याज की आपूर्ति सुनिश्चित करना चिंता का विषय हो गया है. अरब देशों को कवर करने वाली वेबसाइट ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के इस कदम के बाद गल्फ कंट्री के स्थानीय बाजारों को प्याज के कीमतों में संभावित उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए.
पब्लिक पॉलिसी रिसर्च के अर्थशास्त्री अनुपम मनुर के हवाले से वेबसाइट ने आगे लिखा है, “चूंकि खाना पकाने में प्याज का इस्तेमाल बुनियादी खाद्य पदार्थ के रूप में होता है. गेहूं और चावल की आपूर्ति में कमी के कारण बाजार पहले से महंगाई के उच्चतम स्तर पर है. ऐसे में भारत की ओर से लगाया गया निर्यात शुल्क खाड़ी देशों में खाद्य महंगाई को और बढ़ाएगा.” ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकोनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी के अनुसार, हाल के वर्षों में यूएई द्वारा भारत से प्याज आयात में और भी वृद्धि दर्ज की गई है. साल 2019 में यूएई ने भारत से 27.7 मिलियन डॉलर का प्याज खरीदा. वहीं, 2020 में यूएई ने 34.8 मिलियन डॉलर का प्याज खरीदा.
यूएई ने 2021 में भारत से 41.7 मिलियन डॉलर का प्याज आयात किया. साल 2021 में यूएई भारतीय प्याज का चौथा सबसे बड़ा आयातक देश था. बागवानी उत्पाद निर्यातक संघ के प्रमुख अजित शाह के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत से सबसे ज्यादा प्याज आयात बांग्लादेश ने किया है. वहीं, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः यूएई और मलेशिया है. भारत से प्याज आयात की बढ़ोतरी का कारण यूएई में बढ़ती जनसंख्या और अन्य देशों की तुलना में भारतीय प्याज की कीमतों का कम होना है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत की ओर से प्याज पर लगाए गए निर्यात शुल्क से अरब देशों में प्याज की कीमत बढ़ सकती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसी आशंका है कि अरब देशों में प्याज की कमी हो सकती है, जिससे उपभोक्ता और व्यवसाय दोनों प्रभावित होंगे. भारत सरकार की ओर से लगाया गया भारी-भरकम निर्यात शुल्क कोई नई बात नहीं है. इससे पहले 2022 में भी भारत ने घरेलू महंगाई को नियंत्रित करने के लिए गेहूं पर निर्यात शुल्क लगाया था. इसके अलावा जुलाई 2023 में भारत ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर बैन लगा दिया था.
अर्थशास्त्री अनुपम मनुर का कहना है कि अचानक आपूर्ति में कमी कोई नई बात नहीं है, खासकर कृषि और खाद्य क्षेत्र में. इसका एक अन्य उदाहरण है वैश्विक बाजार में गेहूं की कमी. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से वैश्विक बाजार में गेहूं की कमी है. डर के बावजूद दुनिया भर के देशों ने इसका सामना किया. इसके लिए कुछ देशों को अपने रिजर्व स्टॉक का इस्तेमाल करना पड़ा, तो कुछ देशों को मांग पूरा करने के लिए उत्पादन को बढ़ावा देना पड़ा. प्याज के निर्यात पर भारत की ओर से लगाए गए निर्यात शुल्क का भी सभी देशों को इसी तरह से सामना करना होगा. अन्य उत्पादक देश भी प्याज की कीमत बढ़ाकर अधिक निर्यात कर सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार की ओर से निर्यात नीतियों को लेकर किए गए अचानक बदलाव से अरब देश अधिक विश्वसनीय निर्यातकों की तलाश कर सकते हैं. हालांकि, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इंटरनेशनल ट्रेड एंड डेवलपमेंट के सहायक प्रोफेसर अजीत कुमार साहू का कहना है कि जहां तक भारत और अरब देशों के बीच व्यापक आर्थिक संबंधों का सवाल है, भारत का यह कदम व्यापार की गतिशीलता को प्रभावित नहीं करेगा क्योंकि यह केवल अल्पकालिक समय के लिए है.
जेएनयू में ही एसोसिएट प्रोफेसर मुदस्सिर कमर का भी मानना है कि प्याज संकट के बावजूद भारत और अरब देशों के बीच व्यापार संबंध मजबूत होते रहेंगे. निर्यात शुल्क ज्यादा होने के कारण थोड़े समय के लिए अरब देशों का आयात बिल बढ़ सकता है, लेकिन यह लंबे समय से भारत के साथ चले आ रहे व्यापार संबंधों को प्रभावित नहीं कर सकता है. क्योंकि खाद्य आयात में उतार-चढ़ाव होता ही रहता है और यह अलग-अलग देशों के कृषि उत्पादन और बाजार-नियंत्रण नीतियों पर निर्भर करता है.
अरब देशों के लिए खाद्य सुरक्षा एक चिंता का विषय रहा है. हालांकि, प्याज की अस्थायी कमी से कोई बड़ी समस्या पैदा होने की उम्मीद नहीं है. अर्थशास्त्री अनुपम मनुर का कहना है कि प्याज की कमी से अरब देशों में खाद्य सुरक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्याज खाने में स्वाद देने का काम करता है. ऐसे में अरब देशों के नागरिकों को थोड़ा स्वादानुसार भोजन की कमी महसूस हो सकती है लेकिन खाद्य सुरक्षा के लिए कोई खतरा नहीं है. सऊदी अरब के अर्थशास्त्री तलत हाफिज का कहना है कि सऊदी अरब ने हाल ही में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए एक खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण शुरू किया है और मुझे उम्मीद है कि अरब के और भी देश इस तरह के कदम उठाएंगे.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved