वाराणसी (Varanasi) । वाराणसी (Varanasi) यानी काशी को बाबा विश्वनाथ (Baba Vishwanath) की नगरी भी कहा जाता है. काशी के लोग सभी पर्वों को सनातनी अपने आराध्य यानी बाबा विश्वनाथ के साथ जरूर मनाते हैं. उन्हीं पर्वों में से एक है होली का पर्व (festival of holi), जो पांच दिन पहले रंगभरी एकादशी से ही शुरू हो जाता है. मान्यता के अनुसार, बाबा विश्वनाथ इसी दिन मां पार्वती (Mother Parvati) का गौना कराकर रजत स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हुए और होली खेलते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचे थे.
मुस्लिम परिवार बनाता है बाबा विश्वनाथ की पगड़ी
इस खास दिन मां पार्वती और बाबा विश्वनाथ की रजत चल प्रतिमाओं का विशेष श्रृंगार होता है और उन्हें वस्त्रों से सजाया जाता है. जिसमें बाबा विश्वनाथ के सिर पर राजशाही पगड़ी (royal turban) पहनाई जाती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पगड़ी को बनाने का काम पिछली 5 पीढ़ियों से एक मुस्लिम परिवार करता आ रहा है. जबकि पगड़ी को सजाने का काम हिंदू व्यापारी करते रहे है. होली के पर्व पर भाईचारे की यह मिसाल अपने आप में लोगों के लिए एक नजीर है.
गयासुद्दीन का परिवार पगड़ी बनाता है
हाथों में सुई धागा और अपनी धुंधली नजरों के साथ गयासुद्दीन इस पगड़ी को बनाते हैं. उनकी एक तमन्ना है कि जब तक उनके हाथ चल रहे हैं और आंखें ठीक हैं, तब तक वे बाबा विश्वनाथ की सेवा करते रहेंगे. यही वजह है कि होली के पहले रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ को गयासुद्दीन द्वारा तैयार की गई पगड़ी पहनाई जाती है. यह खास राजशाही पगड़ी अपने आप में इसलिए खास है, क्योंकि ये सिर्फ वर्ष में एक बार ही बनती है. इसका दूसरा जोड़ा नहीं तैयार किया जाता है.
250 वर्ष से चली आ रही है ये परंपरा
वाराणसी के सिगरा क्षेत्र के लल्लापुरा इलाके में अपने घर में पगड़ी बनाने वाले गयासुद्दीन को यह हुनर उनके पूर्वजों से मिली है, जो लखनऊ से काशी में आकर बसे थें. पगड़ी कारीगर गयासुद्दीन चौथी पीढ़ी के रूप में तो वहीं उनके बेटे पांचवी पीढ़ी के रूप में इस हुनर को आगे बढ़ा रहे हैं. इस राजशाही पगड़ी को रेशमी कपड़ा, जरी, गोटा और गत्ता लगाकर तैयार किया जाता है. इसको तैयार करने में एक हफ्ते का वक्त लग जाता है. उनके परदादा के समय से ये काम होता चला आ रहा है. उनका खानदान ढाई सौ वर्षों से बाबा विश्वनाथ के लिए पगड़ी बनाता चला आ रहा है.
अकबरी पगड़ी की खासियत
बाबा विश्वनाथ की बनाई हुई पगड़ी को अकबरी पगड़ी कहा जाता है. यह पगड़ी अनमोल इसलिए है, क्योंकि अगर कोई लाखों रुपए भी दे तो भी ऐसी पगड़ी किसी के लिए नहीं बनेगी. उनका परिवार सेवा भाव से ये काम करता चला आ रहा है. जो कुछ मेहनताना मिलता भी है तो उसे प्रसाद समझकर ले लेते हैं. उन्होंने आगे बताया कि पूरे साल बाबा विश्वनाथ की सेवा का इंतजार रहता है. गयासुद्दीन के परिवार वाले अपनी बरकत की वजह भी बाबा विश्वनाथ को ही मानते हैं.
पगड़ी को सजाता है हिंदू परिवार
वहीं, बाबा विश्वनाथ की बनी पगड़ी को सजाने का काम अरोड़ा परिवार भी पांच पीढ़ियों से करता आ रहा है. पांचवी पीढ़ी के नंदलाल अरोड़ा ने बताया कि वे पांचवी पीढ़ी है जो इस पगड़ी को सजाती चली आ रही है. बाबा विश्वनाथ की सेवा करके वे अपने आपको धन्य मानते हैं. उन्होंने बताया कि पगड़ी को नगीना, मोती, कलंगी, मखमल, रेशम और गोटा लगाकर सजाया जाता है. हर साल बाबा विश्वनाथ की पगड़ी अलौकिक तौर से बनती है. साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है. दोबारा कोशिश करने पर भी ऐसी पगड़ी नहीं बन सकती है. अरोड़ा परिवार की ऐसी मान्यता है कि यह पगड़ी सिर्फ बाबा विश्वनाथ की आस्था की वजह से तैयार होती है.
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