-अरविंद कुमार राय
कांग्रेस छोड़कर हाल ही में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हुए नेताओं को असम-मेघालय के बीच लगभग 50 वर्षों से जारी सीमा विवाद का समाधान रास नहीं आ रहा है। टीएमसी नेताओं को यह बात खटक रही है कि इतने जटिल विवाद का समाधान हो गया और उसे इसके श्रेय में भागीदार होने का मौका तक नहीं मिला। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज टीएमसी भाजपा के आक्रामक रूख से बेहद परेशान है। वह भाजपा को पश्चिम बंगाल में घेर नहीं पा रही है, जिसके चलते उसने अपनी लड़ाई को पश्चिम बंगाल से शिफ्ट कर मेघालय में करने की चाल चल दी है। अगर ऐसा नहीं है तो मेघालय टीएमसी के विधायक और नेताओं को सीमा समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के ठीक दूसरे दिन अचानक सीमावर्ती इलाकों का दौरा कर लोगों की नाराजगी का मुद्दा उठाने की आवश्यकता क्यों हुई, यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है।
सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों और विवाद वाले क्षेत्रों के नागरिकों के साथ लंबी चर्चा के बाद विवाद वाले 12 में से 6 स्थानों पर विवाद को सुलझाने पर सहमति बनी। मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा ने विधानसभा में भी पूरी स्थिति को सभी नेताओं को सामने रखा था, उस समय टीएमसी के नेताओं ने क्यों नहीं अपना जोरदार विरोध जताया। यह सवाल अब उठने लगा है। 30 मार्च, 2022 को गारो हिल्स जिला अंतर्गत रंगसकुना वेस्ट विधानसभा क्षेत्र के टीएमसी विधायक जेनिथ संगमा ने विवाद वाले माईखुली गांव का दौरा कर ग्रामीणों के साथ एक बैठक की। उनके साथ गारो छात्र संघ, दक्षिण पश्चिम गारो हिल्स जिला के सलमानपारा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक, माइखुली गांव के मुखिया और कुछ ग्रामीण भी मौजूद रहे। इस दौरान जेनिथ संगमा ने कहा, “इस क्षेत्र के लोग मदद के लिए रो रहे हैं और असम के लोग हमारे लोगों को बार-बार परेशान करते हैं।” उन्होंने असम सरकार पर कई तरह के आरोप भी लगाए। साथ ही मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा पर मेघालय विधानसभा को गुमराह करने का आरोप भी लगाया।
उन्होंने कहा, मैंने (जेनिथ) जब ग्राउंड जीरो को देखा तब जाकर स्थिति का पता चला है। जबकि, हकीकत यह है कि सीमा विवाद के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने से पहले एक लंबी प्रक्रिया का पालन किया गया, जिसके बारे में उनको भी पूरी जानकारी थी। उस दौरान उनको ग्राउंड जीरों की याद क्यों नहीं आई, यह सवाल क्षेत्र की जनता भी पूछ रही है। चूंकि नागरिक खुलकर अधिक नहीं बोल पा रहे हैं, क्योंकि जेनिथ संगमा उसी इलाके के विधायक हैं।
जेनिथ के दौरे के दौरान कुछ लोगों ने मीडिया के सामने गारो भाषा का मुद्दा उठाते हुए कहा, उन्हें सिर्फ गारो भाषा ही बोलनी आती है। वे मेघालय में ही रहना चाहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह भी टीएमसी विधायक द्वारा प्लांट कराया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीमा विवाद के सुलझने से उनके क्षेत्र में विकास होगा। क्योंकि इससे पहले दोनों राज्य सरकारें क्षेत्र पर तो अपना दावा करतीं थीं, लेकिन विकास कार्य करने के लिए कोई भी तैयार नहीं होती थीं। अब जबकि सीमाओं का निर्धारण हो गया तो दोनों राज्य सरकारें यहां के लोगों की भलाई के लिए काम करेंगी। इस तरह से सीमा विवाद समझौते को लेकर स्थानीय नागरिकों में प्रसन्नता है। लेकिन, टीएमसी के नेताओं को इसमें गड़बड़ी नजर आ रही है। माना जा रहा है कि टीएमसी इसको आने वाले समय में मुद्दा बनाने के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। संभवतः इसकी पटकथा पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में लिखी जा रही है।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार, पूर्वोत्तर के प्रमुख हैं।)
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