भोपाल। औषधीय पौधों की खेती (cultivation of medicinal plants) में किसानों की रुचि अब बढ़ने लगी है। यही कारण है कि परम्परागत बीजों से हटकर कई आधुनिक किसान अब लाभ की खेती के रूप में औषधीय खेती की ओर तेजी से अग्रसर हुए हैं, जिसमें ‘अश्वगंधा’ की खेती भी एक अच्छे विकल्प रूप में किसानों के सामने है, जोकि किसानों को लगातार आर्थिक रूप से मजबूत बना रही है। लागत के मुकाबले अधिक लाभ मिलने से इन किसानों का परिवार भी बहुत खुश है और इनकी गिनती अपने क्षेत्र में समृद्ध किसान इस नाते की जाने लगी है।
जून से अगस्त तक होती है अश्वगंधा फसल की बुआई
इस औषधीय खेती करनेवाले किसानों का यही कहना है कि अश्वगंधा फसल की अगर समय पर पर बुवाई की जाए, सिंचाई की जाए तो उत्पादन अच्छा होता है। नीमच-मंदसौर के वैद्य एवं कृषक कहते हैं कि अश्वगंधा की फसल की बुआई बारिश के अनुसार जून से अगस्त तक की जाती है। कुल मिलाकर अश्वगंधा की जुलाई में बुवाई होने के बाद इसकी जनवरी-फरवरी में फसल तैयार होती है। इसके लिए जरूरी है कि किसान जून के पहले सप्ताह में अपनी नर्सरी तैयार कर लें।
प्रति हेक्टेयर 70 से 90 हजार का होता है लाभ
इसके साथ ही इसमें जरूरी है कि प्रति हेक्टेयर की दर से पांच किलोग्राम बीज डाला जाए। एक हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित व्यय दस हजार के करीब आता है। सभी खर्चे जोड़ घटाने के बाद जो शुद्ध-लाभ इससे प्रति हेक्टेयर होता है वह कम से कम 70 हजार रुपये तक है। यदि आप खेती में उन्नत प्रजाती का उपयोग करते हैं तो उसमें परम्परागत प्रजातियों की तुलना में प्रति हेक्टेयर लाभ और अधिक बढ़ जाता है जोकि 90 हजार रुपए तक होता है।
वर्षा होने के पूर्व तक खेत की दो-तीन बार जुताई है जरूरी
अश्वगंधा की खेती के लिए जरूरी है कि वर्षा होने से पहले खेत की दो-तीन बार जुताई कर लें। बुआई के समय मिट्टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो रही हो तथा बीजों में अकुंरण के लिए पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल को छिटकवां विधि से भी बोया जा सकता है। अगर सिचिंत फसल ली जाए तो बीज पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी पांच-दस से. मी. रखने पर अच्छी उपज मिलती है तथा उसकी निराई-गुड़ाई भी आसानी से की जा सकती है। बुआई के बाद बीज को मिट्टी से ढक देना चाहिए।
इसकी फसल पर नहीं पड़ता रोग व कीटों का विशेष प्रभाव
अश्वगंधा पर रोग व कीटों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। कभी-कभी माहू कीट तथा पूर्णझुलसा रोग से फसल प्रभावित होती है। ऐसी परिस्थिति में मोनोक्रोटोफास का डाययेन एम- 45, तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बोआई के 30 दिन के अंदर छिड़काव कर देने से कीट समस्या समाप्त हो जाती है । यदि आपको लगता है कि कीट पूरी तरह से नहीं समाप्त हुआ है तो किसान फिर दो सप्ताह बाद फिर से छिड़काव करें।
अश्वगंधा में नहीं किया जाता रसायनिक खाद का उपयोग
अश्वगंधा की फसल में किसी प्रकार की रासायनिक खाद नहीं डालनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग औषधि निर्माण में किया जाता है लेकिन बुआई से पहले 15 किलो नाईट्रोजन प्रति हैक्टर डालने से अधिक ऊपज मिलती है। बुआई के 20-25 दिन पश्चात् पौधों की दूरी ठीक कर देनी चाहिए। खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहने से जड़ को हवा मिलती रहती है जिसका उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
नई प्रजातियों का उपयोग कर बढ़ाया जा सकता है लाभ
इसके साथ ही वे बताते हैं कि अश्वगंधा की परम्परागत प्रजातियों के साथ आज नई प्रजातियां जिन्हें हम उन्नत भी कह सकते हैं, हमारे भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित कर ली हैं। जिसमें कि देश भर में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में इसे लेकर बहुत ही प्रमाणिक कार्य अभी भी चल रहा है। अश्वगंधा की उन्नत प्रजातियों में जवाहर असगंध की अनेक प्रजातियां बाजार में उपलब्ध हैं। पोशिता व अन्य प्रजातियां ‘सिमैप’ लखनऊ द्वारा विकसित की गई हैं। इनका खेतों में उपयोग कर अपने लाभ को किसान और कई गुना अधिक बढ़ा सकते हैं।
ट्यूमर प्रतिरोधी होने के साथ ही इतनी काम की औषधी है ये
वैद्य पंकज शुक्ला कहते हैं कि अश्वगंधा की जड़ें व पत्तियां औषधि के रूप में काम में लाई जाती हैं । यह ट्यूमर प्रतिरोधी है। यह जीवाणु प्रतिरोधक है। यह उपशामक व निद्रादायक होती है। इसकी सूखी जड़ों से आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां तैयार होती हैं। जिसमें कि विशेष तौर पर जड़ों से गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़े में सूजन, पेट के फोड़ों, मंदाग्निका कमर व कूल्हों के दर्द निवारण में किया जाता है।
नियमित सेवन से बढ़ती है रोगों से लड़ने की क्षमता
इसी तरह से अश्वगंधा की पत्तियों से पेट के कीड़े मारने तथा गर्म पत्तियों से दुखती आँखों का इलाज किया जाता है। हरी पत्तियों का लेप घुटनों की सूजन तथा क्षय रोगियों पर होता है। जब पेशाब आने में कठिनाई होती है तब इसे लेने से लाभ होता है। इसके साथ ही अश्वगंधा आज एक शक्तिवर्धक के रूप में भी उपयोग में लाई जाती है। इसके नियमित सेवन से मानव में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं इस औषधी की तारीफ
भोपाल के वैद्य गोपाल दास मेहता आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ अश्वगंधा को लेकर बताते हैं कि यह इतनी मूल्यवान औषधी है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने भाषण में इसकी तारीफ कर चुके हैं और शरीर पर इसके सकारात्मक प्रभाव को बता चुके है। ये कहते हैं कि अश्वगंधा वास्तव में एक नर्वटॉनिक है। यह नसों को बहुत बल देती है। इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने में बहुत काम आती है। यदि आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी रहेगी तो स्वभाविक है आप बीमारियों से वैसे ही दूर रहेंगे। बुढ़ापे के गठिया रोग आदि को दूर करती है।
देश के इन भागों में होती है अश्वगंधा की खेती
अश्वगंधा अथवा असगंध जिसका वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है। यह पौधा ठंडे प्रदेशो को छोड़कर अन्य सभी भागों में पाया जाता है। मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में मंदसौर, नीमच, मनासा, जावद, भानपुरा तहसील में व निकटवर्ती राज्य राजस्थान के नांगौर जिले में होती है। नागौरी अश्वगंधा की बाजार में एक अलग पहचान है। इस समय देश में अश्वगंधा की खेती लगभग 5000 हेक्टेयर में की जाती है जिसमें कुल 1600 टन प्रति वर्ष उत्पादन होता है जबकि इसकी मांग 7000 टन प्रति वर्ष है।