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    ये है कश्मीर का सबसे पुराना शिव मंदिर, आज PM मोदी ने किया नमन, जानिए इस मंदिर की खासियत

  • March 07, 2024

    श्रीनगर। जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) के शहर श्रीनगर की खूबसूरती (beauty of srinagar) किसी से छिपी नहीं है। यहां कि मस्जिदों से लेकर झीलों और हाऊसबोट (Lakes and Houseboats) को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। हालांकि यहां पर मस्जिदों के अलावा कई प्राचीन मंदिर (ancient temple) भी हैं, जिनकी अपनी अलग मान्यता है। श्रीनगर में समुद्र तल से लगभग 1100 फीट की ऊंचाई पर शंकराचार्य मंदिर (Shankaracharya Temple) भी है, जो डल झील के पास शंकराचार्य नामक पर्वत पर बना है। यह मंदिर कश्मीर के सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसका स्तंभ मुगल शासक शाहजहां ने बनवाया था। कश्मीर में कुछ लोग इस मंदिर को ज्येठेश्वर महादेव मंदिर नाम से भी जानते हैं।

    देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में थे। श्रीनगर पहुंचते ही उन्होंने शंकराचार्य हिल्स को प्रणाम किया। साथ ही महाशिवरात्रि की लोगों को बधाई दी। इसके अलावा उन्होंने यहां एक रैली को भी संबोधित किया। आज हम आपको श्रीनगर में स्थित इसी शंकराचार्य मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में किया। बता दें कि शंकराचार्य मंदिर का निर्माण 371 ई. पूर्व में राजा गोपादात्य ने करवाया था। क्योंकि यह मंदिर बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पंहुचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया था।

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    कहा जाता है कि इस मंदिर में करीब 274 सीढ़ियां हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से बाग तक जाने के लिए कम से कमे 244 सीढ़ियों का रास्ता पार करना होता है, जबकि बाग से मंदिर के गर्भगृह के लिए अलग रास्ता बनाया गया है। गर्भगृह तक पहुंचने के लिए 30 सीढ़ियां और चढ़नी होती हैं। शंकराचार्य मंदिर का गर्भगृह भी लोगों को अपनी ओर खींचता है, क्योंकि इसके गर्भगृह में प्राचीन वास्तु कला अंकित है। मंदिर का गर्भगृह सामान्य न होकर गोलाकार है, जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। गर्भगृह में शिव जी का विशालाकाय लिंग भी मौजूद है।

    मान्यता के अनुसार, मंदिर करीब 200 साल पुराना है। इसलिए इसमें पुरानी वास्तुकला का इस्तेमाल किया गया है, जो देखने में बहुत ज्यादा खूबसूरत लगती है। इस मंदिर से पूरा शहर साफ-साफ दिखाई देता है, क्योंकि यह काफी ऊंचाई पर है। इसके अलावा यहां से डल झील के नजारे को भी देखा जा सकता है। कश्‍मीरी पंडितों के अनुसार, 8वीं सदी के आसपास आदि शंकराचार्य यहां पर आए थे, जिनके नाम पर इस मंदिर का नाम रखा गया है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह के पास एक कमरा भी है, जिसे छोटे-छोटे पत्थरों से बनाया गया है। कहा जाता है कि इस कमरे में शंकराचार्य रहते थे। वे यहीं बैठकर तपस्या किया करते थे।

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