नई दिल्ली। देशभर में डीज़ल और पेट्रोल की कीमतें (Petrol Diesel Prices) नये रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रही हैं। मंगलवार को राजधानी दिल्ली में प्रति लीटर डीज़ल का भाव 79.70 रुपये और पेट्रोल का भाव 89.29 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। भोपाल में आज उच्च क्वॉलिटी के पेट्रोल का भाव 100 रुपये के पार पहुंच चुका है। भोपाल में आज एक्सपी पेट्रोल 100.18 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। सरकार का कहना है कि अक्टूबर 2020 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव करीब 50 फीसदी तक बढ़कर 63.3 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। इसकी वजह से तेल रिटेलिंग कंपनियों को पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि पिछले साल जनवरी की तुलना में इस साल डीज़ल-पेट्रोल का भाव ज्यादा है। हालांकि, अभी तक कच्चे तेल का भाव पिछले साल जनवरी की तुलना में कम है।
भारत में पेट्रोल-डीज़ल का दाम इतना क्यों बढ़ गया है?
दरअसल, भारत में पेट्रोल-डीज़ल का खुदरा भाव वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के भाव से लिंक है। इसका मतलब है कि अगर वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का भाव कम होता है तो भारत में पेट्रोल-डीज़ल सस्ता होगा। अगर कच्चे तेल का भाव बढ़ता है तो पेट्रोल-डीज़ल के लिए ज्यादा खर्च करना होगा, लेकिन हर बार ऐसा होता नहीं है। जब वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का भाव चढ़ता है तो ग्राहकों पर इसका बोझ डाला जाता है, लेकिन जब कच्चे तेल का भाव कम होता है, उस वक्त सरकार अपनी रेवेन्यू बढ़ाने के लिए ग्राहकों पर टैक्स का बोझ डाल देती है।
इस प्रकार वैश्विक बाजार में कच्चे तेल का भाव कम होने से आम लोगों को कुछ खास राहत नहीं मिलती है। पिछले साल ही जब कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुई थी, तब क्रूड ऑयल के भाव में बड़ी गिरावट देखने को मिली। तेल कंपनियों ने लगातार 82 दिनों तक खुदरा ईंधन के भाव में कोई बदलाव नहीं किया। इस प्रकार ग्राहकों को 2020 के पहले 6 महीने में सस्ते कच्चे तेल का लाभ नहीं मिला, जबकि दूसरे 6 महीने में सरकार ने टैक्स का बोझ डाल दिया।
कच्चे तेल का भाव क्यों बढ़ रहा है?
अप्रैल 2020 के दौरान दुनियाभर में ईंधन की मांग कम होने के बाद कच्चे तेल के भाव में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली। उस दौरान दुनियाभर के देशों में आर्थिक गतिविधियां लगभग न के बराबर चल रही थीं। ट्रैवल से लेकर फैक्ट्रियां तक बंद थी, लेकिन इसके बाद से वैश्विक स्तर पर तेल की मांग बढ़ी है।
जून से अक्टूबर के बीच करीब 40 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड करने वाला ब्रेंट क्रूड नवंबर के बाद महंगा होने लगा। अब कोरोना वायरस वैक्सीन आने के बाद यह 60 डॉलर प्रति बैरल के पार जा चुका है। कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती भी एक कारण है जिसकी वजह से दाम में तेजी देखने को मिल रही है। सऊदी अरब ने फरवरी-मार्च के दौरान कच्चे तेल के उत्पादन में 10 लाख बैरल प्रति दिन तक कटौती करने का फैसला लिया है।
खुदरा कीमतों पर लगने वाले इस टैक्स का क्या असर पड़ेगा?
पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर 32.98 रुपये कर दिया है। 2020 के शुरुआत में यह 19.98 रुपये था। इसी प्रकार डीज़ल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़कर 31.83 रुपये पर पहुंच गया है। जनवरी 2020 में यह करीब 15.83 रुपये था। महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियां लगभग बंद होने के बाद सरकार ने रेवेन्यू बढ़ाने के लिए यह टैक्स बढ़ाया था।
कई राज्यों ने भी अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए पेट्रोल-डीज़ल पर सेल्स टैक्स लगाया है। दिल्ली सरकार ने पेट्रोल पर वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) को 27 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया है। मई में दिल्ली सरकार ने डीज़ल पर वैट 16.75 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया है। हालांकि, जुलाई में इसे फिर से 16.75 फीसदी पर ला दिया। वर्तमान में देखें तो राज्य और केंद्र सरकार प्रति लीटर पेट्रोल के बेस रेट पर करीब 180 फीसदी टैक्स वूसलती रही हैं। इसी प्रकार डीज़ल पर यह करीब 141 फीसदी है।
एक्सपर्ट्स ने अनुमान लगाया था कि सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी में कटौती देखने को मिल सकती है। लेकिन पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने संसद में जानकारी दी है कि सरकार एक्साइज कम करने के मूड में नहीं है। दुनिया के दूसरे देशों में देखें तो जर्मनी और इटली में ईंधन के बेस रेट पर करीब 65 फीसदी टैक्स वसूला जाता है। यह यूनाइटेड किंग्डम में 62 फीसदी, जापान में 45 फीसदी और अमेरिका में करीब 20 फीसदी है।
ईंधन को लेकर दूसरे देशों की तुलना में भारत की क्या स्थिति है?
दुनियाभर में कच्चे तेल का भाव कोरोना काल से पहले के स्तर पर पहुंच रहा है। लेकिन भारत में राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा ज्यादा टैक्स वसूलने की वजह से यह रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहा है। पिछले साल जनवरी की तुलना में इस साल जनवरी में पेट्रोल का औसत भाव करीब 13.6 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान ब्रेंट क्रूड का भाव करीब 14 फीसदी कम था। दूसरी ओर पिछले साल की तुलना में इस साल जनवरी में अमेरिका, चीन और ब्राजील के ग्राहकों ने क्रमश: 7.5 फीसदी, 5.5 फीसदी और 20.6 फीसदी सस्ते दर पर ईंधन खरीदा है।
महंगाई पर बढ़ते पेट्रोल-डीज़ल के भाव का क्या असर पड़ेगा?
जानकारों का कहना है कि ईंधन की बढ़ती महंगाई को कम खाद्य महंगाई ने संतुलित कर रखा है। लेकिन, उन ग्राहकों पर इसका असर देखने को मिल रहा है जो अपने ट्रैवल पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। जनवरी में खुदरा महंगाई दर करीब 4.06 फीसदी रही है। उनका कहना है कि शहरों में रहने वाली आबादी पर इसका ज्यादा प्रभाव होगा। ग्रामीण आबादी पर कम असर देखने को मिलेगा। अगर इस बार मॉनसून कमजोर रहता है तो किसानों पर इसका देखने को मिल सकता है। कमजोर मॉनसून की स्थिति में किसानों को सिंचाई के लिए डीज़ल पर निर्भर रहना पड़ेगा।
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