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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

September 16, 2024


सदस्य बनाने के लिए किराए पर आईटी वाले
इंदौर (Indore) के एक नेताजी (Netaji) हैं, जिनका वजूद तो बड़ा है, लेकिन समर्थकों (Supporters) की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। वे जननेता भी नहीं हैं और बिल्ली के भाग से छींका टूटने के कारण आज एक बड़े ओहदे पर हैं। अब नेताजी को भी भाजपा (BJP) के सदस्य बनाने का टारगेट पूरा करना है, लेकिन करे कौन? उनके जो गिने-चुने समर्थक हैं उनका भी कोई जनाधार नहीं है। किसी ने राय दी कि वे सदस्य बनाने के लिए कुछ आईटी के लडक़ों को किराए पर रख लें, जो घर-घर जाकर सदस्य बना देंगे। बताया तो यह भी जा रहा है कि नेताजी ने किसी एनजीओ से भी संपर्क कर लिया है और जल्द ही उसके कार्यकर्ता शहर में दिख जाएं तो आश्चर्य मत करिएगा। बाकायदा इसके लिए नेताजी की सोशल मीडिया टीम भी प्रचार-प्रसार में लग गई है।

प्रवक्ता को रोज नया विषय चाहिए
कांग्रेस के एक प्रदेश प्रवक्ता हैं, जो सरकारी मशीनरी पर लगातार हमला बोल रहे हैं। हालांकि प्रवक्ता होने के बावजूद वह मीडिया को कोसते रहते हैं। उन्हें पिछले कुछ महीनों से बयानबाजी करने की आदत पड़ गई है। वह रोज कुछ न कुछ नया विषय अपनी विज्ञप्ति में जोड़ देते हैं, जिसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं होता है। वैसे कभी-कभी वे काम की बात भी करते हैं, लेकिन अधिकांश कांग्रेस की भड़ास होती है।

नेताजी ने नहीं सोचा था इतनी बुरी गत होगी
कांग्रेस से भाजपा में आए एक सीनियर लीडर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी इतनी बुरी गत होगी। पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री मोहन यादव इंदौर में थे तो उन्हें कुछ पुलिस अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के पास नहीं जाने दिया। उन्हें वहां से हटा दिया। इसी बीच कुछ भाजपाइयों की निगाह उन पर पड़ी, लेकिन उन्होंने भी आंख फेर ली। तभी एक पुराने अधिकारी वहां पहुंचे और उन्होंने नेताजी को पहचाना। उन्हें अंदर लेकर गए। बाद में नेताजी मुख्यमंत्री के साथ दिखाई दिए, लेकिन उनके चेहरे का गुस्सा नहीं गया। कुछ ने कहा कांग्रेस में तो इनका जलवा था और यहां देखो…

विधायक और पार्षद में शुरू हुई रस्साकशी
इन दिनों शहर की एक विधानसभा में भाजपा की राजनीति ठीक नहीं चल रही है। विधायक और एक पार्षद में शुरू हुई रस्साकशी अब सार्वजनिक नजर आने लगी है। पिछले दिनों उक्त पार्षद के क्षेत्र में विधायक ने एक कार्यक्रम कर लिया तो अस्पताल में भर्ती पार्षद नाराज हो गए। वहीं विधायक ने कुछ कार्यक्रमों में पार्षद के फोटो को तवज्जो नहीं दी। उसके बाद तो पार्षद का पारा सातवें आसमान पर है और वे बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं कि विधायकजी गलत कर रहे हैं। वैसे ये पीड़ा कुछ और पार्षदों की भी है, लेकिन वे खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं। उक्त पार्षद ने अपने राजनीतिक आकाओं तक ये बात पहुंचा दी है कि जो भी चल रहा है वो ठीक नहीं है। फिलहाल बड़े नेता इस मामले में चुप हैं। वहीं विधायक के कुछ नजदीकी लोगों का विधानसभा में दखल भी भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहा है।

इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार
इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार। भाजपा कार्यालय में सिंधी समाज के एक नेता का मधु वर्मा से सामना हो गया तो विधायक ने उनसे सीधे पूछ लिया कि आपने कितने सदस्य बनाए? इस पर उन्होंने कहा कि काम बड़े जोर-शोर से चल रहा है। मधु नहीं माने और उन्होंने नेताजी का फोन चेक कर लिया। मालूम पड़ा कि उन्होंने अभी तक एक ही सदस्य बनाया है। इस पर वहां खड़े दूसरे कार्यकर्ता ठहाका मारकर हंस पड़े। अपनी हंसी उड़ती देख नेताजी तैश में आ गए और कहा कि मैं अभी 10 दिन तक बीमार था, कोई मुझे देखने तक नहीं आया और अब मुझसे पूछ रहे हैं कि काम किया कि नहीं? विधायक और नेताजी की हॉट टॉक पर कई लोग बड़ी देर तक चुटकियां लेते रहे। अपनी चलती न देख नेताजी ने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी।

चुप हैं भाजपाई
जाम गेट वाले कांड में भाजपाई चुप हैं। कहीं और कुछ होता तो हंगामा मच जाता और कानून व्यवस्था हाशिए पर आ जाती। अब इसमें भाजपा के ही कुछ जनप्रतिनिधियों के नाम सामने आ रहे हैं, जिन पर आरोप है कि उन्होंने ही आरोपियों को पेश कराया है। इसके वीडियो सोशल मीडिया पर लगातार दौड़ रहे हैं। हालांकि इसमें पुलिस चुप है और खुलासा नहीं कर रही है। वैसे अखबार की सुर्खियां भी अब कुछ और हैं।

आखिर अयोध्या क्यों रही संगठन से दूर?
यह पहली बार हुआ है, जब कोई चुनाव भाजपा संगठन ने अपने स्तर पर नहीं लड़ा हो। जी हां, बात हो रही है वार्ड क्रमांक 83 के चुनाव की, जहां संगठन के कर्ताधर्ता ने सुध तक नहीं ली और भाजपा के प्रत्याशी की जीत हो गई। दरअसल प्रत्याशी क्षेत्रीय विधायक मालिनी गौड़ का समर्थक था और गौड़ तथा उनके समर्थक ही पूरे समय इस क्षेत्र में लगे रहे और वे अपने समर्थक को जिता लाईं। हालांकि वोटों का अंतर कम रहा, जो मतदान के प्रतिशत के मुकाबले ठीक था। अब मालिनी समर्थक कहते फिर रहे हैं..ये है अयोध्या की ताकत। एक तरह से मलिनी ने अपने विरोधियों पर भी एक तीर से कई निशाने साध दिए और बता दिया कि अभी 4 नंबर को कमजोर मत समझना। समझने वाले समझ गए हैं कि उनके लिए अयोध्या अभी दूर है।

कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं ने सोशल मीडिया पर भाजपा की सदस्यता के कार्ड के साथ पोस्ट नहीं डाली है और न ही खुलासा किया है कि वे सदस्य बने या नहीं। वैसे कल की बैठक में अधिकांश नदारद ही रहे। अब पता लगाया जा रहा है कि इन नेताओं की सदस्यता अभियान में क्या भूमिका है? क्या वास्तव में वे काम कर रहे हैं या नहीं, उसी के आधार पर तय किया जाएगा कि इन्हें संगठन में पद दिया जाए या नहीं। -संजीव मालवीय

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