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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

January 14, 2025

सुरन बांटी के बहाने शंकर फिर मैदान में
राजस्थानी भोजन (Rajasthani Food) में सुरन और बांटी (Suran and Banati) का अपना एक अलग स्थान है। इसे अब मालवा (Malwa) में भी बड़े चाव से खाया जाने लगा है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो इसका बड़ा स्वाद लेकर खाते हैं। फिलहाल भाजपा (BJP) की राजनीति में अपनी गति से चल रहे पूर्व सभापति शंकर यादव ने कल एक बार फिर सुरन बांटी की पार्टी कर अपनों को इक_ा किया। पिछली बार भी उन्होंने आयोजन में शहर की नेता बिरादरी को जुटाया था और सब शंकर के एक न्योते पर वहां पहुंच गए थे। वैसे शंकर राजनीति में अपने पत्ते खोल नहीं रहे हैं और 4 नंबर के खास दरबारी बनकर अपना काम कर रहे हैं।

गम से ज्यादा चिंता भाजपा अध्यक्ष की थी
भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी वरुण पाल के पिता के निधन पर शोक व्यक्त करने गए नेताओं को गम जताने से ज्यादा चिंता भाजपा अध्यक्ष की थी कि कौन बनेगा? श्रद्धांजलि होने के बाद अक्सर व्यस्तता का बहाना बनाकर जल्दी निकलने वाले काफी देर तक बाहर खड़े रहे और बतियाते रहे। इसी बीच एक दावेदार आ गए तो उनसे भी चक्कलस चल निकली कि भिया कब खुशखबरी सुना रहे हो, लेकिन भिया की मुखमुद्रा बता रही थी कि उन्हें भी अभी आभास नहीं है कि आगे क्या होने वाला है? काफी देर तक बहस चलती रही और फिर सब वहां से रवाना हो गए। इनमें ग्रामीण क्षेत्र के नेताओं में अपने अध्यक्ष के नाम को लेकर ज्यादा उत्सुकता दिखाई दी।

कान पकडऩे में आगे हैं चौरडिय़ा
जीतू पटवारी द्वारा कांगे्रस से बाहर किए गए अजय चौरडिय़ा जीतू का कान पकडऩे का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने कल हुई आईटी प्रकोष्ठ की नियुक्ति को लेकर सवाल उठा दिया कि इन नियुक्तियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक होती है और नियुक्ति पत्र महासचिव जारी करते हैं। जिसे पिछली 24 अगस्त को ही अध्यक्ष बनाया, उसे आखिर क्यों हटा दिया और इस पर नियमों के खिलाफ प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने चंचलेश व्यास की नियुक्ति भी कर दी, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। पटवारी अपनी ही पार्टी के नेताओं से घिरे तो हुए ही हैं, वहीं अब निष्कासित किए गए नेता भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।

हार और पटाखों की तैयारी धरी रह गइ्र्र
भाजपा के नगर अध्यक्ष क्या हुए, मानो सांसद विधायक हो गए। जी हां, अपने राजनीतिक आका या नेता को दीनदयाल भवन की कुर्सी पर बिठाने का सपना संजोए समर्थक दिन-रात में हाथ में माला और पटाखे लेकर घूम रहे हैं। कब घोषणा हो जाए और कब वे सबसे पहले अपने आका को खुश करने पहुंच जाए। इसी को लेकर पिछले सप्ताह तो नगर अध्यक्ष के दावेदारों में शामिल एक नेता के समर्थक पूरी तैयारी करके बैठे थे और मिठाई वाले को भी कह दिया था कि भिया दुकान कब तक खुली रहेगी, क्योंकि लड्डू लगेंगे, हमारे भैया अध्यक्ष बनने वाले हंै, लेकिन उनकी खुशी उस समय काफूर हो गई जब भिया का नाम नहीं आया। वैसे हार तो वापस कर दिए हैं, लेकिन पटाखे वैसे ही रखे हैं। मिठाई वाला भी बोला कि भिया लड्डू का क्या करूं तो जवाब मिला कि हमने आर्डर थोड़े ही दिया था। बस ऐसे ही कह दिया था कि तैयारी रखना।

आखिर जीतू को तारीख बदलना ही पड़ी
26 जनवरी को महू से जय बापू, जय भीम और जय संविधान यात्रा को लेकर एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया था। पटवारी ने यह बोलना भी शुरू कर दिया, लेकिन जब पार्टी लेबल पर बात उठने लगी कि इस दिन कौन नेता इसमें भाग लेेगा और कहीं ऐसा न हो कि लोग ही नहीं आए, क्योंकि छुट्टी का माहौल भी रहता है। बस फिर क्या था पटवारी को तारीख बदलना पड़ी और 27 जनवरी नई तारीख तय हुई है। अब ये भीड़ के चक्कर में आगे बढ़ाई है या फिर बड़े नेताओं की नाराजगी के कारण, इसका कोई पता नहीं है, लेकिन जीतू इसे सफल बनाने के लिए मेहनत खूब कर रहे हैं।

हजम हो गया पुराना हिसाब-किताब
भाजपा के सक्रिय सदस्यता अभियान के तहत शुरुआत में 100 रुपए व्यक्तिगत रूप से लेकर रसीदें काट दी गईं। जो सक्रिय सदस्य वही पदाधिकारी और चुनाव लड़ सकेगा। इसके चलते बड़ी संख्या में भाजपाइयों ने रसीद कटवाई, लेकिन बाद में ऊपर से आदेश आया कि रसीद ऑनलाइन होना चाहिए। सैकड़ों सदस्य तो पैसा कार्यालय में जमा कर चुके थे। उनसे कहा गया कि आपका पैसा लौटा दिया जाएगा या ऑनलाइन भर देंगे। अभियान समाप्त हुए दो महीने हो गए। भाजपाइयोंं ने ऑनलाइन 100 रुपए तो जमा कर दिए, लेकिन कई लोगों को अभी भी जमा की गई राशि के लिए चक्कर काटना पड़ रहे हैं।

पुराने कांग्रेसी भिड़ा रहे वापसी की जुगत
भाजपा कार्यालय के अंदर से खबर आ रही हैं कुछ नेता जो अपने बड़े नेताओं के चक्कर में आकर भाजपा में आ गए थे, वे अब वापसी की जुगत भिड़ा रह हैं। कारण साफ है, उनमें से कुछ को छोड़ बाकी को अब तक भीड़ का हिस्सा बनना पड़ रहा है। बड़े नेता तो फिर भी मंच की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं, लेकिन इन्हें वहां कोई नहीं पूछता। बेचारों ने पांच साल इसी चक्कर में गुजार दिए कि अब कुछ होगा, लेकिन आगे भविष्य अंधकारमय होता देख कुछ नेता वापस कांग्रेस में चले जाएं तो आश्चर्य मत करना।

मंत्री तुलसी सिलावट ने अंतर दयाल के नाम का जो पेंच डाला है, वो अकेले तुलसी की नहीं और न ही स्थानीय विधायक के दिमाग की उपज है, बल्कि संगठन पर सत्ता हावी होते नजर आ रही है। तुलसी जिस तरह से कांग्रेस से आकर भाजपा में शकर की तरह घुल गए हैं, उससे वे भी चाह रहे हैं कि अब ग्रामीण क्षेत्र की सता पर उनकी कमान रहे, लेकिन उनका ये दांव बदलते समीकरण में उल्टा पड़ता दिखाई से रहा है।
-संजीव मालवीय

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