सीएम के यहां शोक जताने की होड़
मुख्यमंत्री मोहन यादव (Chief Minister Mohan Yadav) के पिता (Father) के निधन के बाद उनके यहां शोक जताने वालों की भीड़ लगी हुई है। अंत्येष्टि वाले दिन भी इंदौर के कई छुटभैये नेताओं ने ऐसी झांकी जमाई कि यादव उनके करीबी हैं। ये बात अलग रही कि ऐसे लोगों को दूर ही रोक दिया गया था। जब सीएम घर पर शोक में बैठे थे तो भी शोक जताने वालों की होड़ लग गई और बाकायदा सोशल मीडिया (Social media) के माध्यम से इसका प्रचार-प्रसार भी किया गया कि वे सीएम के कितने करीबी हैं? इनमें कई इंदौरी (Indori) नेताओं ने तो अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिए और ऐसे पल के फोटो डाले, जिसमें सीएम के वे कानों में कुछ कह रहे हैं या नजदीक बैठे हुए हैं। खैर, दिखावे की पॉलिटिक्स में ऐसे नेताओं का काम चल जाता है। कोई बड़ी बात नहीं कि ये फोटो ही उनके ड्राइंग रूम में टंग जाएं।
इतनी उठापटक किस काम की?
कांग्रेस में अध्यक्ष बदले जाना हैं और इसको लेकर जो नाम सामने आ रहे हैं, उनमें एक उठापटक करने वाले नेता का नाम नहीं आने से वे विचलित हैं। छोटे-छोटे कामों या विरोध में अपना नाम चमकाने वाले उक्त नेता गांधी भवन में रोज जाना नहीं भूलते हैं, फिर भी उन्हें सक्रिय नहीं माना जा रहा है, इस बात ने उन्हें विचलित कर दिया है। वैसे किसी बड़े नेता के आगमन पर भी ये अपना चेहरा फोटो में दिखा ही देते हैं, लेकिन हर बार शहर अध्यक्ष की कुर्सी इनसे दूर ही चली जाती है।
तो क्या कार्यालय मंत्री का इतना बड़ा कद?
भाजपा के कार्यालय मंत्री ऋषि खनूजा के भाई की शादी में भाजपा के दिग्गज नेताओं के अलावा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय मंत्री अजय जामवाल का आना खासा चर्चा में रहा। जामवाल न केवल शादी में पहुंचे, बल्कि बरात आने तक दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने के लिए भी रुके रहे। जामवाल को देख हर नेता आश्चर्य में रहा। कहने वाले इसे ऋषि की संगठन में पहुंच का इशारा कर रहे हैं तो कोई कह रहा है कार्यालय मंत्री का पद हलका-पतला नहीं होता।
पहली बार पेलवान पर हुआ विरोध का दांव
अपने तुलसी पेलवान। भिया अपनी विधानसभा में विकास को लेकर खूब दावे करते हैं, लेकिन पिछले दिनों कालिंदी गोल्ड वालों ने उनकी पोल खोल दी और सडक़ पर उतर गए। उन्होंने न केवल अद्र्धनग्न होकर प्रदर्शन किया और ये बता दिया कि मंत्री की विधानसभा होने के बावजूद यहां सफाई नहीं होती और लोग बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। पेलवान इसके पहले स्वास्थ्य मंत्री भी होते थे, लेकिन अब जल संसाधन उनके पास है। जिस समय उनकी विधानसभा में विरोध चल रहा था वे निगम के शिक्षक सम्मान में थे, लेकिन जैसे ही उन्हें मालूम पड़ा कि बवाल बढ़ रहा है तो वे सीधे वहां से निकलकर लोगों के बीच पहुंच गए और उन्हें अपनी स्टाइल में समझा-बुझा दिया। इसके पहले अहिल्या पथ वाले मिलने गए थे तो सिलावट उनके साथ ही सडक़ पर बैठ गए थे और विरोध वहीं खत्म करवा दिया था।
फिर बढ़ी कांग्रेस की चिंता
एक नंबर में एक बार फिर एक घटनाक्रम ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल पिछले दिनों अभय प्रशाल में हुए एक आयोजन में कैलाश विजयवर्गीय ने मंच पर एक नंबर के कांग्रेसी नेता दीपू यादव को बुलाकर सबको चौंका दिया। यही नहीं, विजयवर्गीय ने उनकी तारीफों के पूल भी बांध दिए। बस इसी को लेकर कांग्रेसियों में चिंता बढ़ गई कि एक नंबर में धीरे-धीरे कई कांग्रेसी भाजपा का दुपट्टा पहनते जा रहे हैं, कहीं अगला नंबर दीपू का तो नहीं?
चिंटू का निशाना फिर बने अधिकारी
निगम में कुछ भी होता है और नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे चढ़ बैठते हैं महापौर और अधिकारियों पर। फर्जी बिल घोटाले का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ कि अब फर्जी बैंक गारंटी का मामला उजागर हो गया। चिंटू का कहना है कि इतना बड़ा कांड हो जाता है और नगर निगम के अधिकारियों को इसका पता नहीं चलता। नगर निगम में चश्मा चढ़ाए कई अधिकारी छोटी से छोटी गलती निकाल लेते हैं तो इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हो गई। ऐसे अधिकारियों पर भी कार्रवाई होना चाहिए।
उपचुनाव में हो जाएगी कांग्रेस की अग्निपरीक्षा
वार्ड क्रमांक 83 में चल रहे उपचुनाव में प्रचार का आज आखिरी दिन है। कांग्रेस ने इस बार इस वार्ड में खूब जोर लगाया है और दावा किया जा रहा है कि कांग्रेसी यहां जोरदार टक्कर दे रहे हंै। एक सोची-समझी रणनीति के तहत यहां नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे, शहर अध्यक्ष सुरजीतसिंह चड्ढा, राधेश्याम पटेल, सत्यनारायण पटेल, अश्विन जोशी, विनय बाकलीवाल, प्रमोद टंडन, अरविंद बागड़ी, अमन बजाज, दीपू यादव, सदाशिव यादव और रमीज खान जैसे नेताओं को बूथ की जवाबदारी सौंपी है। ये सभी कांग्रेस के बड़े नेता हैं और अब परिणाम आने पर देखना है कि किस नेता ने कितनी ईमानदारी से काम किया? एक तरह से कांग्रेस के नेताओं की ये अग्निपरीक्षा ही है। इससे तय हो जाएगा किसकी कितनी चली?
जिस तरह से भाजपा पार्षद के पिता पर प्रकरण दर्ज हुआ है, उससे कई भाजपाई नाराज हैं। वे कह रहे हैं अपना ही शासन और अपनी ही निगम में बड़े नेताओं से इतना नहीं हुआ कि एफआईआर न होने दें। ऐसे तो हो चुका काम। अब पार्षद पिता को समझाया जा रहा है कि उनकी ओर से भी एफआईआर करवाई जाएगी। वैसे इस मामले में एक बड़े नेता के फोन को नजरअंदाज कर कांग्रेसियों की धमकी से डरकर एफआईआर करना भी चर्चा का विषय बना हुआ है। -संजीव मालवीय
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