राजनीति में बदलाव की बयार लाएगा नया साल
इस साल विधानसभा चुनाव तो हैं ही, इसके साथ ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में बदलाव की बयार भी नजर आ रही है। कांग्रेस सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, जहां शहर अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष दोनों को ही बदले जाने की खबरें खूब उड़ रही हैं। कहा जा रहा है कि ये बदलाव जनवरी के अंत में या फरवरी में हो जाएगा। भाजपा में भी बदलाव की बात सामने आ रही हैं, लेकिन इतनी जल्दी नहीं लगता कि भाजपा के नेतृत्व में बदलाव किया जाए। हालांकि वर्तमान दोनों अध्यक्ष चुनाव लडऩे के मूड में हैं और दोनों ने अपनी बिसात बिछाना शुरू कर दी है। हो सकता है कि दोनों अध्यक्ष प्रदेश नेतृत्व के सामने अपनी मंशा जाहिर कर दें और बता दें कि अब पार्टी का नेतृत्व करने की बजाय वे विधायक बनकर जनता की सेवा करना चाहते हैं।
दो-दो कुर्सियों पर रफत का कब्जा
अल्पसंख्यक मोर्चे के नेता है रफत वारसी। पहले अल्पसंख्यक मोर्चे में रहे, लेकिन कुछ खास उपलब्धि अर्जित नहीं कर पाए। वीडी शर्मा और संगठन के कई नेताओं से नजदीकी का फायदा उठाते हुए, उन्हें अब हज कमेटी का अध्यक्ष भी बना दिया गया, लेकिन रफत ने अल्पसंख्यक मोर्चा की कुर्सी भी नहीं छोड़ी है। कुछ इंदौरी नेता भी उनके पीछे पड़े हैं कि रफत कुर्सी छोड़े और वे लपक लें। वैसे शुरूआत हो चुकी है और इंदौर के कुछ नेताओं ने भोपाल और दिल्ली की यात्रा शुरू कर दी है, लेकिन रफत की तगड़ी सेटिंग के चलते वे सफल नहीं हो पा रहे हैं।
अब परेशान तो नहीं करता है ये?
भाजपा के एक पार्षद पति हैं जो चर्चा में बने रहते हैं। पिछले दिनों उक्त पार्षद पति की मां से नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे ने पूछ लिया, अब ये परेशान तो नहीं करता? दरअसल पार्षद पति का आलम कुछ अलग ही है। अपने आपको संघ से जुड़ा होने की बात तो वे कहते हैं, लेकिन उनकी हरकतें संघ के अनुशासन के परे होती हैं। अपनी आदतों को लेकर चर्चा में बने रहने वाले उक्त पार्षद पति और उनकी पत्नी को लेकर क्षेत्रीय विधायक के पास भी कुछ लोगों की शिकायतें पहुंची हैं, लेकिन विधायक अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं।
सांवेर के पहलवान का नया दांव
पहलवान यानि तुलसी भिया ने चुनावी साल आते ही भाजपाइयों को अपने पाले में खींचना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों जब केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एयरपोर्ट आए तो उनके स्वागत के लिए उन्होंने एमआईसी सदस्यों कोभी न्यौता भिजवा दिया और कहा कि वे उनके साथ सांवेर भी आए और देखें कि सांवेर का उन्होंने किस तरह से जीर्णोद्धार कर दिया है। हालांकि एमआईसी मेम्बर सांवेर तो नहीं गए, लेकिन महाराज के साथ फोटो खिंचाने के चक्कर में एयरपोर्ट जरूर पहुंच गए। एयरपोर्ट से ही वे वापस हो लिए। सिंधिया के कारण इंदौरी नेता सांवेर में मंच पर थे। सांवेर में मजमा लगा और पहलवान ने अपने दांव-पेंच से बता दिया कि उनके अखाड़े में कितना दम है। यानि अगली कुश्ती (चुनाव) में पहलवान ही यहां से लड़ेंगे, बाकी लोग सपने देखना छोड़ दें।
मालवा उत्सव के बहाने लोकोत्सव
सांसद शंकर लालवानी की कलाप्रेमी टीम कुछ न कुछ जुगाड़ जमाती रहती है। कोरोना में मालवा उत्सव का रंग जम नहीं पाया तो उन्होंने मालवा उत्सव की आड़ में लालबाग में लोकोत्सव रख लिया। मालवा उत्सव मई में आयोजित किया जाता रहा है। यह बताया गया कि यह लोक कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए हैं, लेकिन जब वहां पहुंचे तो नजारा पूरा मालवा उत्सव का था और थीम भी वही थी। वैसे साल के आखरी दिनों में रखे इस कार्यक्रम से टीम लालवानी के लोगों को अच्छा फायदा हुआ है।
कुछ भी कर लो हम सुधरेंगे नहीं
कांग्रेसियों को कितना भी समझा लो, लेकिन सब सिर पर से उड़ जाता है। पिछले दिनों कांग्रेस कार्यालय में दो बड़ी बैठकें हुईं। शहर की बैठक खत्म होने के बाद विवाद हो गया, लेकिन नेता समझा नहीं पाए। जब बैठक चल रही थी तब जिले के प्रभारी कांग्रेसियों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे और पीछे बैठे कांग्रेसी अपनी ही डींगें हांकते-हांकते नहीं थक रहे थे कि उन्होंने अपने जमाने में क्या किया? ये ही कांगे्रसी गांधीभवन के नीचे कहते सुने गए कि कुछ भी हो जाए, कांगे्रसियों की आदत को कोई बदल नहीं सकता।
भाजपा संगठन की बैठक में पक्का होमवर्क
इन दिनों भाजपा के नगर से लेकर बूथ तक के पदाधिकारी अपना-अपना होमवर्क करने में जुटे हुए हैं। क्या पता संगठन कब उनसे जानकारी मांग लें। अभी तक होता आया था कि निचले स्तर पर पदाधिकारी लापरवाही कर जाते थे और बूथ स्तर पर जो नाम दिए जाते थे या तो वे फर्जी होते थे या उन कार्यकर्ताओं को पता ही नहीं पड़ता था कि उन्हें क्या करना है। अब जब से बूथ की बैठकें गौरव रणदिवे ने शुरू की है, उन्हें अपना पक्का होमवर्क करके ही बैठकों में जाना पड़ता है। गौरव भी बूथ लेवल की ऐसी-ऐसी जानकारी पूछते हंै कि बूथ के संयोजक तक घबरा जाते हैं। संयोजक को भी आश्चर्य होता है कि नगर संगठन को इतनी जानकारी कैसे? हालांकि इसके पहले ही रणदिवे भी तगड़ा होमवर्क करके बैठते हैं, ताकि कोई उन्हें गलत जानकारी न दे सके।
बड़े गांव की वधानसभा में इतने दावेदार हो गए हैं कि महीने-पन्द्रह दिन में इनमें फिर कोई नया नाम जुड़ जाता है। कोई भी छोटा-बड़ा आयोजन हो दावेदार उसमें पहुंच जाते हैं और दावेदारी करना नहीं भूलते। सबका एक ही लक्ष्य है पांच साल पहले जो यहां विधायक थे , उनको किसी भी कीमत पर टिकट नहीं लेने देना। -संजीव मालवीय
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