शास्त्री ब्रिज पर लालवानी की घेराबंदी
सांसद शंकर लालवानी ने शास्त्री ब्रिज को तोडक़र नया बनाने की बात कही है। उनकी सलाह में अफसरों ने भी हां में हां मिला दी, लेकिन लालवानी की इस सलाह को बेफिजुल की बताने में उनकी ही पार्टी के लोग लगे हैं और बता रहे हैं कि जब मेट्रो की प्लानिंग हो रही थी, तब क्या ब्रिज नहीं था? यही बात शहर के कुछ इंजीनियर भी कह रहे हैं। फिलहाल मामला ठंडा हो गया है, लेकिन आज नहीं तो कल शास्त्री ब्रिज का विकल्प तलाशना ही पड़ेगा। लालवानी ने तो क्षेत्र के विधायक से बात की और न ही महापौर से। अब देखना यह है कि लालवानी की सलाह पर अमल किया जाता है या फिर और कोई नया विकल्प तलाशा जाता है। फिलहाल तो रेलवे की ओर से भी आश्वासन दिया गया है कि वे तैयार हैं, लेकिन जब स्थानीय निकाय के नुमाइंदे ही ध्यान नहीं दे रहे हैं तो फिर लालवानी की कौन सुनेगा। कुछ भी हो, लालवानी की घेराबंदी की पूरी तैयारी है, लेकिन इसमें जनता की राय कोई नहीं ले रहा है।
दिल्ली पहुंचे तो समीकरण ही बदल गए थे
इंदौर आकर दिल्ली के लिए उड़े जयवर्धनसिंह अपने पिता के अध्यक्ष बनने पर उत्साहित थे, लेकिन दिल्ली पहुंचने के बाद जब एयरपोर्ट से बाहर निकले तो मालूम चला कि यहां तो पूरे समीकरण ही बदल गए हैं। दिग्गी ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया और खडग़े ने नामांकन भर दिया। प्रदेश से जो नेता प्रस्तावक के रूप में गए थे, वे भी आश्चर्यचकित थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि राजा को पीछे हटना पड़ा। अब ये राजा ही जाने या खडग़े।
अनवर के घर दस्तक क्यों नहीं दे रही पुलिस
कांग्रेस के पार्षद रहे अनवर दस्तक पर कार्रवाई को लेकर पुलिस का रवैया किसी को समझ नहीं आ रहा है। अपहरण और मदद के बहाने दुष्कर्म के आरोप में फंसे दस्तक पर पुलिस कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो रही है, नहीं तो जो माहौल चल रहा है, उसमें पुलिस कार्रवाई में जरा-भी देर नहीं लगाती है। घरों पर बुलडोजर तक चला दिया जाता है, लेकिन कांग्रेस के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं के दबाव में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है।
पांच नंबर में जाकर अटकी गोलू की निगाह
विधानसभा चुनाव भले ही अगले साल हो, लेकिन अभी से ही समीकरण बनने लगे हैं। एक तरह से पांच नंबर सबको हलुआ लग रहा है। गौरव रणदिवे खुद पांच नंबर में अपनी सियासी बिसात जमाने में लगे हुए हैं तो पूर्व मोर्चा अध्यक्ष गोलू शुक्ला की निगाह भी यहां आकर टिक गई है। लंबे समय से गोलू अपना मुकाम पाने की कोशिश कर रहे हंै, लेकिन उन्हें अभी तक उनके लायक कोई पद नहीं मिला है। दरअसल यह बात कल सामने आई, जब वे कन्या पादपूजन के एक कार्यक्रम में गए। हालांकि अतिथि तो वे हर कार्यक्रम में रहते हैं, लेकिन आयोजक राजा कोठारी के साथ उनका नाम और फोटो भी था। कहा जा रहा है कि एक नंबर में तो गोलू अपने भाई संजय शुक्ला के सामने लड़ेंगे नहीं, इसलिए अब वे पांच नंबर में दावेदारी जता रहे हैं। लोगों के सुख-दुख में भी उन्होंने आना-जाना शुरू कर दिया है।
महाराज की मूर्ति पर छत्र तो लगवा दो
जब से माधवराव सिंधिया की प्रतिमा को चौराहे से हटाया है, तब से ही मंत्री तुलसी सिलावट उस पर छत्र लगाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि साइड में ब्रिज है और कोई ब्रिज से कुछ फेंकता है तो वह मूर्ति पर गिरता है। पिछले सप्ताह माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि थी। माल्यार्पण के बाद जब सिलावट और महापौर भार्गव आमने-सामने हुए तो उन्होंने कह डाला कि महापौरजी कम से कम महाराज की प्रतिमा पर छत्र तो लगवा दो। बार-बार बोलकर थक गया हूं। अब महापौर ने भी हां भर दी है।
एमआईसी मेम्बर की नहीं सुन रहे अधिकारी
जनता की एक बड़ी समस्या से सीधे वास्ता रखने वाले एक एमआईसी मेम्बर की अपने ही विभाग के अधिकारी नहीं सुन रहे हैं। उन्हें अधिकारी ही घुमा देते हैं और सामान नहीं होने तो कभी बजट नहीं होने का बहाना बनाकर काम को टाल देते हैं। बेचारे एमआईसी मेम्बर करें भी तो क्यों? एक ओर से कहा गया है कि काम शांति से और अधिकारियों से सामंजस्य बिठाकर करना है, लेकिन अधिकारी हैं कि अपना पुराना स्टाइल बदलना नहीं चाहते। आखिर तीन साल तक जो उनकी मनमर्जी चली थी।
गांधीजी के चरखे पर भी भाजपा का कब्जा
कांग्रेस ने गांधी जयंती पर चौपाल लगाने की घोषणा क्या की, दूसरी ओर भाजपा ने गांधीजी के चरखे पर ही कब्जा जमा लिया। गांधीजी हमेशा खादी को प्रमोट करते थे। कांग्रेस तो ज्यादा कुछ नहीं कर पाई, लेकिन भाजपाइयों ने दिमाग लगाया और कल गांधी जयंती पर खादी को लेने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया। पूरे प्रदेश में जिला स्तर पर खादी विक्रय खोल डाले और भाजपाइयों से कहा कि लोगों को लेकर आएं और खादी की बिक्री करवाएं। कार्यक्रम सफल भी हो गए। भले ही आम दिनों में भाजपाई खादी न पहने, लेकिन एक दिन के लिए तो सही गांधीजी के चरखे पर कब्जा जमा ही लिया।
सुदर्शन की चुनरी यात्रा के लिए लगे पोस्टर में कहीं-कहीं केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर नजर नहीं आए हैं। इस बार प्रदेश के नेताओं को तवज्जो मिली है। वैसे सुदर्शन राजनीति की कच्ची गोली खेलने वाले नेताओं में नहीं हैं, लेकिन तोमर नदारद हुए हैं तो जरूर आने वाले दिनों में पॉलीटिक्स कुछ और रंग दिखाने वाली है। -संजीव मालवीय
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