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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • August 08, 2022

    क्यों नहीं आए सीएम…चर्चा का बाजार गर्म
    मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का अपने सपनों के शहर इंदौर के कर्ताधर्ता की शपथ विधि में न आना, राजनीति की ग्रहचाल समझने वालों को हजम नहीं हो रहा है। मुख्यमंत्री तो इंदौर आने के मौके ढंूढते रहते हैं, लेकिन 24वें महापौर के रूप में शहर की बागडोर संभालने वाले पुष्यमित्र भार्गव के शपथ समारोह में वे नहीं आए और उन्हें भेज दिया, जो कभी इंदौर के प्रभारी मंत्री हुआ करते थे। इसमें या तो मुख्यमंत्री का कोई गुप्त संदेश छिपा है या वे निगम चुनाव में जिस तरह इन्दौर की राजनीति चली उसको लेकर नाराज हैं। जिस तरह से निगम चुनाव में एक बड़े गुट ने प्रचार की बागडोर संभाली, उसको लेकर भी कुछ लेागों ने ऐसा प्रचार कर दिया कि भार्गव उनके गुट के ही हैं। हालांकि इसका पेंचअप समारोह में वीडी शर्मा ने किया और उन्होंने भार्गव को अपना नाम बताने में कसर नहीं छोड़ी, वहीं छोटे विजयवर्गीय है कि अभी भार्गव के साथ दौरा करने का मौका नहीं छोड़ रहे हैं और बता रहे हैं कि अब युवाओं के शहर पर राज करने की बारी है।
    नए पार्षद ने जब उतारी निगमकर्मी की लू
    हुआ यूं कि नगर निगम व्यापार के लिए लाइसेंस के लिए शिविर लगा रहा है। मालवा मिल क्षेत्र में रेडिमेड कपड़ों का व्यापार करने वाली एक महिला जब लाइसेंस बनवाने गई तो उससे फीस के साढ़े पांच सौ और ऊपर के 1500 रुपए मांगे। महिला क्षेत्रीय पार्षद नंदू पहाडिय़ा के पास पहुंच गई। पहाडिय़ा ने मामला समझते देर नहीं की और पंचम की फेल के एआरओ त्रिपाठी से बात की। फोन पर उन्हें हडक़ाया कि अभी तक जो चलता आया था, अब नहीं चलेगा। आप अपने कर्मचारी को बोल दो-आगे से ऐसा किया तो खैर नहीं।


    भाजपा के दावेदार की महाराष्ट्र यात्रा चर्चा में
    दो नंबर विधानसभा में एक दावेदार तेजी से उभरे और बाद में उतनी ही तेजी से गायब भी हो गए। बड़े नेताओं की समझाइश के बाद उन्होंने अपने कदम पीछे हटा लिए थे। फिलहाल वे अपनी महाराष्ट्र यात्रा से चर्चा में हैं और कहा जा रहा है कि नेताजी का मन अभी भी निगम चुनाव लडऩे का है, चाहे उसके लिए उन्हें 5 साल कई तरह के पापड़ बेलना पड़े। नेताजी को लग रहा है कि पाला बदलने से उनका भला हो जाएगा, लेकिन जो पहला ग्रुप है, वह उनकी गतिविधि पर पूरी निगाह रख रहा है।
    ग्रामीण क्षेत्र में शहरी विधायक को तवज्जो
    कांग्रेस की राजनीति में अभी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मंत्री रहे जीतू पटवारी का अपना ही एक अलग राग है। वे अभी भी भोपाल का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। अपनी विधानसभा की जवाबदारी एक तरह से उन्होंने अपने परिजनों को दे दी है। कल कमलनाथ इंदौर आ रहे हैं, लेकिन पटवारी को कोई जवाबदारी नहीं मिलना बता रहा है कि वे अभी भी नाराज हैं। जानापाव की जवाबदारी विधायक विशाल पटेल तो पातालपानी की जवाबदारी संजय शुक्ला को देकर प्रभारी बना दिया गया है। महू विधानसभा में आने वाले दोनों क्षेत्र में और भी कांग्रेस नेता हैं, लेकिन कमलनाथ से नजदीकी के चलते पटेल और शुक्ला को ही आगे किया जाता है। एक तरह से पटवारी के पास अभी कोई काम नहीं दिख रहा है, सिवाय अपनी विधानसभा के लोगों से मिलने के।


    दीनदयाल भवन के ‘खास’ की विदाई
    दीनदयाल भवन में एक खास पदाधिकारी की विदाई कर दी गई थी। नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे और दूसरे माले की नजदीकी और खास ये पदाधिकारी पिछली कार्यकारिणी में मिले पद का मोह नहीं छोड़ पा रहे थे, लेकिन इनके स्थान पर जिनकी नई नियुक्ति की गई है, वे भी किसी से कम नहीं है। उन्होंने ऐसा दांव चलाया कि पुराने नेताजी अब नगर अध्यक्ष के कक्ष से 10 फीट दूर से ही निकलते हैं। हालांकि उनका नगर कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष का पद कायम है और अब वे इसी नाते दीनदयाल भवन में दिखाई देंगे। इससे कई नेताओं के चेहरों पर मुस्कान आ गई है।
    सप्ताह में एक दिन सडक़ पर उतरें पार्षद
    नगर निगम जाने के पहले दिन जिस तरह से पुष्यमित्र भार्गव ने सभी पार्षदों को अपने-अपने क्षेत्र में ट्रैफिक सुधारने का आह्वान किया था, उसका आम लोगों में अच्छा संदेश गया है। नवाचार में आगे रहने वाले भार्गव के अब ऐसे ही कुछ और नवाचार सामने आने वाले हैं, जिससे लोग जनप्रतिनिधियों से अपना जुड़ाव महसूस कर सकें। अगर पार्षद सप्ताह या 15 दिन में एक बार अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे ही जनहितैषी काम अपने हाथ में ले लें तो उससे पब्लिक में अच्छा संदेश जाएगा और लोग भी आगे आएंगे।
    भाजपा नेताओं का खुद का मीडिया मैनेजमेंट
    मीडिया से नकार दिए गए या फिर मीडिया छोडक़र नेताओं के आगे-पीछे घूमने वाले कर्मियों को अब एक नया काम मिल गया है। जहां देखो, वहां नेताओं का खुद का मीडिया नजर आता है। इंदौर में दोनों मंत्रियों के अलावा सांसद का खुद का अलग मीडिया है, जो पल-पल की जानकारी अपडेट करता रहता है कि नेताजी कहां जा रहे हंै, क्या कर रहे हैं। बाकायदा साथ में निजी मीडियाकर्मी भी होते हैं। भोपाल से जो मंत्री आते हैं, वे अपने साथ एक वीडियोग्राफर और एक फोटोग्राफर जरूर लाते हैं। पिछली बार जब मंत्री भूपेन्द्रसिंह आए तो उनका मीडिया आधे घंटे पहले ही पहुंच गया था। पूरी व्यवस्था जमाई कि कैसे शूट करना है, क्या दिखाना है और क्या नहीं? लेकिन इसके चक्कर में वे असल मीडियाकर्मियों से भिड़ बैठे। असली वालों ने भी कह दिया कि इतना ही करना है तो हमारी इंट्री बंद करवा दो और आप ही पूरा काम संभाल लो।
    धंधेबाज टाइप के कुछ लोग इन दिनों निगम के गलियारों में देखे जा रहे हैं, जिसमें से कुछ राजनीतिक रूप से जुड़े हैं। कैसे भी हो वे भार्गव से अपनी ट्यूनिंग बिठा सके। इस चक्कर में कोई मीडिया का सहारा ले रहा है तो कोई बड़े नेताओं के नाम का। -संजीव मालवीय

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