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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • July 25, 2022

    संजय की तो इसमें भी ‘जय’ है
    संजय शुक्ला हारने के बाद दूसरे दिन से ही काम पर लग गए और शनिवार को अपने क्षेत्र के लोगों को लेकर तीर्थयात्रा पर रवाना हो गए। शुक्ला ने जिस तरह से चुनाव लड़ा, उससे भाजपा के बड़े नेता भी एक समय के लिए तो हैरान-परेशान हो गए थे कि कहीं संजय का ये कैम्पेन भाजपा को नुकसान नहीं दिला दे। कमान संभाली विजयवर्गीय ने और फिर जिस तरह से भार्गव के लिए चुनाव लड़ा गया, उसने 1 लाख 33 हजार वोटों से भार्गव को जिता भी दिया। शुक्ला भले ही हार गए हों, लेकिन इसमें भी उन्होंने अपनी विजय ढूंढ ली है और कांग्रेस के शहरी नेताओं को एक तरह से पीछे कर पहले नंबर पर अपनी जगह बना ली है। नजदीकी कह रहे हैं कि संजू भैया को जो करना था वो उन्होंने कर लिया है और लोगों में जिस तरह से उन्होंने अपनी जगह बना ली है वो अगले चुनाव में काम आएगी।


    बहू को नहीं जिता पाईं तो रो दीं भंडारी
    वार्ड क्रमांक 13 से कांग्रेस नेत्री दीप्ति भंडारी की बहू शिल्पा भंडारी को शुक्ला ने टिकट दिया था। पिछले दिनों जब उनके वार्ड के लोग धार्मिक यात्रा पर जा रहे थे तो फफक-फफककर रो पड़ीं और कहने लगीं कि इतने अच्छे रिस्पांस के बावजूद हम नहीं जीत पाए। इस पर शुक्ला हंसते हुए वहां पहुंचे और उनसे कहा कि हार-जीत तो चलती रहती है। मुझे भी देखो, मैं भी तो हारा हूं, लेकिन भंडारी की आंखों से आंसू नहीं सूखे। गीली आंखों से ही उन्होंने तीर्थयात्रियों को बधाई दी।
    इंदौर जनपद में ही कमाल दिखा पाए यादव
    इंदौर जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा, जितना होना चाहिए था। जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव केवल एक जनपद छोडक़र बाकी जनपदों में कांग्रेस को हार से नहीं रोक नहीं पाए। वहीं कांग्रेस के जनपद अध्यक्ष को लेकर भी वे कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। 8 नगर परिषदों में भी 6 में भाजपा तो 2 में कांग्रेस का कब्जा रहा। यानी यहां भी बंटाढार। विरोधियों को मौका मिल गया है फिर से यादव की खिलाफत का और वे बता रहे हैं कि यादव के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुआ तो नुकसान ही होगा।


    कुरवाड़े को जिताने में किसकी रही भूमिका?
    दो नंबरी सुरेश कुरवाड़े को जब निपानिया वार्ड से चुनाव लडऩे के लिए भेज दिया था, तब उन्होंने विरोध जताया था और कहा था कि वे बजरंग नगर और नंदानगर से तैयारी कर रहे थे, इसलिए उन्हें यहीं टिकट दिया जाए। अब दादा दयालु के सामने ज्यादा किसी की चलती नहीं। ऑर्डर आ गया तो सुरेश बोरिया-बिस्तर लेकर निपानिया कूच कर गए। वार्ड नया था और फिर कांग्रेसी के साथ-साथ बागी से भी मुकाबला था। बाहरी होने की तोहमत लिए भाजपाई अंदर ही अंदर उनका विरोध कर रहे थे। कुरवाड़े कह रहे थे यहां से जितना मुश्किल है। हालांकि मतगणना के दो दिन पहले उन्होंने संगठन से मुलाकात में बता दिया कि वे 200 से 400 वोटों के बीच जीत जाएंगे। हुआ इससे ज्यादा और वे ढाई हजार वोटों से जीत गए। अब निपानिया में श्रेय की होड़ चल रही है और जो विरोध कर रहे थे वे कह रहे हैं कि ये सब हमारी मेहनत का नतीजा है।
    काम करवाओ तो याद दिलाना पड़ता है
    भाजपा अध्यक्ष गौरव रणदिवे अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को कहते फिर रहे हैं कि लोगों के काम तो हमने खूब करवाए, लेकिन उन्हें याद दिलाना पड़ता है, नहीं तो लोग भूल जाते हैं। ऐसा ही कुछ संजय शुक्ला के साथ हुआ है। उन्होंने बोरिंग करवाए, धार्मिक यात्रा कराई और क्षेत्र में सक्रिय रहे, लेकिन लोगों के बीच जाकर इस बात को जता नहीं पाए और यही उनकी हार का कारण बना। गौरव टिप्स दे रहे हैं कि हम लगातार लोगों के बीच सक्रिय रहें और हितग्राहियों की सूची अपने पास रखें, जिससे उन्हें बताया जा सके कि भाजपा ने उनके लिए क्या किया।


    क्या हुआ राष्ट्रपति भवन के भ्रमण का
    जब महामहिम के पद पर रामनाथ कोविंद की नियुक्ति हुई थी, तब से ही एक इंदौरी नेता उनसे नजदीकी संबंधों का हवाला देते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं को राष्ट्रपति भवन घुमाने के सपने दिखा रहे थे। अब कोविंद सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन आज तक भ्रमण नहीं हो पाया। उलटा नेताजी जरूर उनसे मिल आए। अब कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि राष्ट्रपति भवन घूमने का क्या हुआ तो वे हंसकर टाल रहे हैं। वैसे महामहिम से संबंधों के चलते नेताजी को लाभ के पद पर पार्टी ने बिठा दिया है। उसके बाद उनकी व्यस्ततता बढ़ गई है।
    नए-नए हैं इसलिए…बाद में तो भगवान ही मालिक
    नया मास्टर तेज आवाज में पढ़ाता है, ताकि आसपास भी मालूम चल सके कि वह काम कर रहा है। यही हाल नए पार्षदों के हैं। जो 10 बजे तक सोए पड़े रहते थे, सुबह 6 बजे उठ रहे हैं और नगर निगम के अधिकारियों को भी अपने साथ घुमा रहे हैं। लोगों के हालचाल पूछ रहे हैं, ताकि बताया जा सके कि वे वार्ड में सक्रिय हैं और प्रचार के दौरान जो वादे किए थे उस पर वे अमल में आ गए हैं। दरअसल इस बार अधिकांश नए पार्षद हैं और अभी वे निगम की सीढिय़ां तक नहीं चढ़े हैं, इसलिए कलाकारी आती नहीं। जिस दिन आ जाएगी ये भी पुराने जैसे हो जाएंगे। फिर उनके पास सुबह उठने का समय नहीं रहेगा और घर जाने पर मालूम पड़ेगा कि भैया तो 10 बजे ही सोकर उठते हैं, तब आना।
    पहले समाज और फिर भाजपा की राजनीति से दिल्ली में जाकर बैठे अजा वर्ग के नेताजी की लुटिया उनके परिवार के ही लोगों ने डुबवा दी। दोनों ही अलग-अलग वार्ड से भाजपा के बागी के रूप में खड़े हुए। पार्टी ने उन्हें बाहर भी कर दिया और वे चुनाव भी हार गए। नेताजी को कठघरे में भी खड़ा करवा दिया कि वे अपने रिश्तेदारों को पार्टीहित में चुनाव लडऩे से रोक नहीं सके। -संजीव मालवीय

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