समेट नहीं पा रहे हैं डिब्बे से ढुला घी
राजनीति में रायता ढुलना तो आम बात है, लेकिन घी भी इस कदर ढुलेगा कि समेटे नहीं समेट पाएंगे। हुआ ये है कि प्रदेश के एक कद्दावर कांग्रेसी नेता पर पिछले दिनों सोशल मीडिया पर खूब आरोप लगे और यह तक कह दिया कि उन्होंने इंदौर में पद बांटने के लिए घी के डिब्बे लिए। ये घी इंदौर से ढुलते-ढुलते भोपाल तक पहुंच गया है और अब कांग्रेस की राजनीति में आग का काम कर रहा है। विरोधी इस आग को बुझने नहीं देना चाहते हैं और लगातार इसमें अपनी ओर से भी घी डालने का काम कर रहे हैं। जिनके नाम डिब्बे देने वालों के रूप में सामने आ रहे हैं, वे सफाई देते नहीं थक रहे हैं। इससे आशंका और मजबूत हो रही है। खैर जो भी हो फिलहाल इस घी ने उन कद्दावर नेता को तो बेचैन कर ही रखा है, जिनकी बात कमलनाथ सुनते हैं और उस पर अमल भी करते हैं। वैसे इन नेताजी का तो कुछ नहीं बिगड़ा है, लेकिन जो घी ढुला है उसे वे समेट भी नहीं पा रहे हैं।
बाकलीवाल हैं कि हिलते ही नहीं
कांग्रेस में कई नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष के सपने आने लगे हंै और वे अंदर ही अंदर बाकलीवाल की कुर्सी खिसकाने में लग गए हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि जब तक प्रदेश में कमलनाथ पॉवरफुल हैं, तब तक बाकलीवाल का कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। वैसे बाकलीवाल भी अपनी सक्रियता दिखाने से पीछे नहीं हटते हैं। वे हर कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं और बताते हैं कि उनका स्वास्थ्य बेहतर है और वे कुर्सी के लिए फिट हैं।
एक-एक का हिसाब करेंगे असलम
राजनीति में कब क्या हो जाए तय नहीं है। जो लोग असलम शेख की अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष की ताजपोशी का विरोध कर रहे थे और इंदौर से भोपाल तक शिकायतें कर रहे थे वे अब असलम के आसपास दिखाई देने लगे हैं। अध्यक्ष न सही, लेकिन किसी न किसी पद पर वे आना चाहते हैं और असलम को वे अब मस्का लगा रहे हैं। अल्पसंख्यक मोर्चा को लेकर वैसे भी भाजपा ने सबसे आखरी में घोषणा की। अब असलम भी विरोधियों से हिसाब-किताब के मूड में हैं।
पहले कोसते थे सोनकर, अब खुद साथ जाते हैं
राजेश सोनकर को हराकर जब कांग्रेस से तुलसी सिलावट ने चुनाव जीता तो सोनकर अपनी खीझ उतारने के लिए सांवेर में कहते फिरते थे कि उन्होंने फलां काम करवाया, लेकिन उसका नारियल आज सिलावट फोड़ रहे हैं। नारियल की ये राजनीति दोनों ही नेताओं पर हावी रही और दोनों में एक समय होड़ मच गई थी कि कौन विकास कार्यों का श्रेय ले। हालांकि अब सिलावट भाजपाई हैं और जिस नारियल को लेकर सोनकर उन्हें कोसा करते थे वही नारियल अब आगे होकर उनके हाथ में दे देते हैं और उसे फोडऩे का कहते हैं। सिलावट भी बड़ा मन रखते हुए सोनकर और अपने हाथों से नारियल फुड़वा देते हैं। इसे कहते हैं पॉलिटिक्स। हालांकि सोनकर मन मसोसकर रह जाते हैं कि विधायक रहते जितने काम उन्होंने स्वीकृत कराए थे, अब उनका शुभारंभ कभी उनके धुर प्रतिद्वंद्वी रहे तुलसी सिलावट के हाथों करवाना पड़ रहा है।
सहकारिता से वास्ता नहीं पदाधिकारी बना दिया
कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पदों की बंदरबांट होने लगी है। पिछले दिनों भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के इंदौर जिले के संयोजक के रूप में राकेश कुशवाह की नियुक्ति कर दी। वैसे कुशवाह पिछड़ा वर्ग मोर्चा में दावेदार थे, लेकिन उन्हें उपकृत करने के लिए सहकारिता प्रकोष्ठ में भेज दिया। अब उन्हें न सहकारिता का नॉलेज है और न ही उन्होंने इस क्षेत्र में काम किया है। ऐसे में वे काम कैसे कर पाएंगे, इसमें संशय तो होना ही है। ऐसे ही कई गैरअनुभवियों को भाजपा नेताओं ने पद दिलवा दिए हैं।
दो नंबर में फिर इसी माह एक बड़ी कथा
दो नंबर विधानसभा कई दिनों तक सूनी नहीं रह पाती। अभी पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा हुई थी और अब बाघेश्वरधाम वाले पंडितजी की कथा की तैयारियां की जा रही हैं। विधायक रमेश मेंदोला की टीम पूरी तैयारी में लगी है और आज भूमिपूजन किया जा रहा है। 20 मई से होने वाली इस कथा का स्थान भी वही रखा गया है, जहां पंडित मिश्रा की कथा हुई थी। वैसे बाघेश्वरधाम सरकार भी कई उपाय बताते हैं और हिन्दुत्व के पैरोकार हैं। जाहिर है भीड़ उमड़ेगी ही।
विशाल के बाद पटवारी और अब पिंटू जोशी
विशाल पटेल और जीतू पटवारी अब पूरी तरह से अपनी विधानसभा पर ध्यान देने में लग गए हैं। अगर अब ध्यान नहीं दिया तो विधानसभा से पकड़ ढीली हो जाएगी। इसके लिए दोनों विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में 12वीं पास गरीब बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया और उन्हें कॉलेज में एडमिशन करवाकर पढ़ाई करवा रहे हैं। इसी राह पर पिंटू जोशी भी चल पड़े हैं। पिंटू जिस तरह से तीन नंबर विधानसभा में अंगद की तरह पैर जमाने में लगे हैं, उससे लग रहा है कि उन्हें ऊपर से विधायक के टिकट की हां कर दी गई है। उन्होंने भी घोषणा कर दी है कि उनकी विधानसभा के प्रतिभावान बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा वे उठाएंगे।
भाजपा में तीन नेताओं की तिकड़ी बड़ी प्रसिद्ध हो गई थी। जहां भी वे जाते, साथ में जाते। संगठन के काम हों या फिर कोई सार्वजनिक कार्यक्रम वे अपने सरकारी वाहनों की शेयरिंग कर लेते थे, लेकिन अब ये तिकड़ी अलग-अलग नजर आ रही है और भाजपाई इसका कारण जानने में लगे हंै कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो ये तिकड़ी अब अलग-अलग नजर आ रही है। -संजीव मालवीय
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