कार्यकारी अध्यक्ष के सपने आने लगे
शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल अस्वस्थ क्या हुए कई कांग्रेस नेताओं को शहर अध्यक्ष बनने के सपने आने लगे हैं। बाकलीवाल पार्टी को अभी ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं और इसी का फायदा वे कांग्रेसी नेता उठाना चाहते हैं, जिनकी शहर कांग्रेस की कुर्सी पर नजर है। इनमें कुछ तो बाकलीवाल के नजदीकी ही हैं। चूंकि अगले साल से चुनावों की शृंखला शुरू होना है, जिसमें विधानसभा और लोकसभा जैसे महत्वपूर्ण चुनाव होना हैं, इसलिए नए अध्यक्ष की मांग बताई जा रही है। वैसे कांग्रेस की राजनीति समझने वाले बड़े नेताओं का कहना है कि कमलनाथ जब तक प्रदेश अध्यक्ष हैं, तब तक बाकलीवाल की कुर्सी को कोई हिला नहीं सकता, लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में किसी को जवाबदारी दी जा सकती है। यही स्थिति विनय बाकलीवाल के समय बनी थी, जब प्रमोद टंडन के अस्वस्थ रहते हुए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और टंडन के पाला बदलने के बाद उन्हें शहर अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा दिया था।
युकां प्रभारी पर भारी पड़े कांग्रेस के प्रवक्ता
हुआ यंू कि युवक कांग्रेस प्रभारी ईशिता सेढ़ा को गांधी भवन में पदाधिकारियों की मीटिंग लेना थी, जिसके लिए उन्होंने शहर कांग्रेस कार्यालय के कक्ष का उपयोग कर लिया। यह देख अध्यक्ष के नजदीकी एक प्रवक्ता तैश में आ गए और ईशिता से पूछ लिया कि आपने इसकी अनुमति ली है या नहीं? ईशिता ने कहा कि पार्टी के काम के लिए किसकी अनुमति लेना जरूरी है? थोड़ी देर बहस होती रही और ईशिता ने बाद में जिला कांग्रेस के कक्ष में पदाधिकारियों की बैठक ली।
क्यों नही बढ़ पाता महिला मोर्चे का कुनबा
महिला मोर्चे का कुनबा 15 से 20 की संख्या से आगे ही नहीं बढ़ पाता है, वो भी जाने-पहचाने चेहरों के साथ, लेकिन इस बार नई कार्यकारिणी में नई महिला नेत्रियों को लेने की आस बंधी हुई है। हालांकि कार्यकारिणी की सूची दीनदयाल भवन से लीक
हो गई है और उस पर घमासान शुरू हो गया है। महामंत्री पद के लिए सबसे ज्यादा डिमांड है। मोर्चे की नगर अध्यक्ष शैलजा मिश्रा ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं कि उन्होंने तो सूची संगठन को सौंप दी है। अब जो संगठन करेगा वह मान्य होगा।
…और फेल हो गया भाजपा का सोशल मीडिया
भाजपा और कांग्रेस के नेता वाकयुद्ध में परमाणु बम की तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। किसके कितने फॉलोअर के साथ-साथ लाइक, कमेन्ट्स और विवर्स के आंकड़ों के माध्यम से तय होता है कि कौन सफल हो गया, लेकिन कई मामलों में आगे रहने वाला भाजपा का सोशल मीडिया पिछले दिनों फेल हो गया। दरअसल कांग्रेसियों ने शिवराज सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए एक हैशटैग चलाया था। भाजपाई समझ पाते इसके पहले ही वह लाखों लोगों तक पहुुंच गया। बाद में भाजपा नेताओं ने इसका तोड़ निकाला और एक हैशटैग सरकार के पक्ष में चलाया, लेकिन अधिकांश भाजपा नेताओं ने इसमें रुचि नहीं ली और सोशल मीडिया फेल हो गया। वैसे इस मामले में भोपाल में बैठे सोशल मीडिया के पदाधिकारियों से जवाब-तलब किया जा रहा है कि ऐसा क्यों हुआ?
टीआई से ठनी सांसद प्रतिनिधि की
भंवरकुआं टीआई और एक सांसद प्रतिनिधि की आपस में ठन गई। प्रतिनिधि ने टीआई के व्यवहार को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। हुआ यूं कि प्रतिनिधि के किसी परिचित को भंवरकुआं पुलिस ने पकड़ लिया। उसे निर्दोष बताकर छोडऩे को कहा तो टीआई ने उसका वीडियो बनाया, जिसमें वह स्कूटर चुराने का आरोप स्वीकार कर रहा है। प्रतिनिधि चुप हो गए, लेकिन बाद में मालूम चला कि उक्त व्यक्ति को सेटिंग कर छोड़ दिया है। जैसे ही इसकी जानकारी प्रतिनिधि को लगी वे आगबबूला हो गए और उच्च अधिकारियों को इसकी शिकायत कर रहे हैं।
अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहे यादव
कांग्रेस जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव को एक तरह से अब पद पर बने रहने का वरदान मिल गया है। विरोधियों की चालें उलटी पड़ गई हैं। दरअसल विरोधियों ने यादव की कुर्सी खिसकाने में जल्दी कर दी। न तो अभी चुनाव हैं और न ही संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट। जिस तरह से यादव सक्रिय हो गए हैं, उससे लग रहा है कि उन्हें ऊपर से तथास्तु का आशीर्वाद मिल गया है। वैसे अब यादव को दूसरी ओर से घेरने की तैयारी है, जिसमें सत्तापक्ष के बड़े नेताओं के साथ मिलकर वे क्या काम कर रहे हैं और क्यों उनका रवैया भाजपा के एक बड़े नेता के प्रति नरम रहता है।
10 मिनट पहले चि_ी आएगी और कैलाशजी सीएम
पिछले दिनों पत्रकारों की एक संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कैलाश विजयवर्गीय थे तो साथ में देश के कई नामी पत्रकार भी थे। ईटीवी जैसे चैनल मे रहे जगदीश चंद्रा का भाषण चल रहा था और तभी विजयवर्गीय की आमद हुई। तभी चंद्रा ने कह दिया कि आजकल की राजनीति में कुछ भी हो सकता है। हो सकता है कि कैलाशजी को किसी ओर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया जाए। उन्होंने छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों के नाम भी बोल डाले। उन्होंने कहा कि भाजपा में तो 10 मिनट पहले चि_ी आती है और तय कर दिया जाता है कि आपको जाकर किस कुर्सी पर बैठना है। शायद ऐसा ही कुछ कैलाशजी के साथ हो।
अविभाजित मध्यप्रदेश में भाजपा की राजनीति की धुरी रहे एक वरिष्ठ नेता इन दिनों अपने आपको अकेला महसूस कर रहे हैं। संघ के बाद सत्ता का भी मजा ले चुके ये नेता अपनी ही पार्टी की दूसरी पीढ़ी से नाराज चल रहे हैं। बड़े आयोजनों में तो वे मुंह दिखाई के लिए नजर आ जाते हैं, लेकिन कोई जवाबदारी नहीं मिलने से उन्होंने दीनदयाल भवन से भी किनारा कर लिया है।
-संजीव मालवीय
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