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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • January 24, 2022

    …तो नृत्य गुरु के अपमान पर हो जाता बवाल
    पिछले दिनों रवीन्द्र नाट्यगृह में मंत्री उषा ठाकुर के किसी समर्थक द्वारा पद्मश्री पुरु दाधीच को कुर्सी पर से उठाकर पीछे बिठाने के मामले का भले ही पटाक्षेप हो गया हो, लेकिन इस मामले में एक बड़ा बवाल होते-होते बच गया। कला अकादमी के जयंत भिसे के समक्ष नाराजगी जताने वाले पुरु दाधीच के समाज के लोग विरोध में उतरने वाले थे और इसको सर्वब्राह्मण समाज ने भी समर्थन देने की तैयारी कर ली थी। बवाल मचता इसके पहले ही दाधीच ब्राह्मण समाज के प्रांतीय अध्यक्ष देवकीनंदन तिवारी, जो भाजपा के मीडिया प्रभारी भी हंै, बीच में कूद पड़े। एक ओर समाज और दूसरी ओर पार्टी की सरकार। अगर समाज का साथ दें तो पार्टी के खिलाफ होना पड़ेगा और पार्टी का साथ देंगे तो समाज से दूर होना पड़ेगा। दोनों के बीच का रास्ता निकाला गया और पद्मश्री को उन्होंने हकीकत से वाकिफ करवाया। गुरुजी का गुस्सा ठंडा हुआ और उसी दिन मंत्री ठाकुर और भिसे उनके घर पहुंचे, दोनों ने खेद प्रकट किया और एक बड़ा बवाल होते-होते बच गया।
    अभी भी नेतागीरी में मस्त है कांग्रेस
    कांग्रेसी हकीकत में कम और हवा में उडऩे में ज्यादा विश्वास रखते हैं। कांग्रेस में कार्यकर्ता से ज्यादा नेता हैं। इसका उदाहरण सदस्यता अभियान में देखने को मिल रहा है। 3 महीने गुजर जाने के बाद भी इंदौर शहर और ग्रामीण में उतने सदस्य नहीं बन पाए, जितने बनना चाहिए थे। हकीकत में मैदानी लेबल पर काम नहीं हो रहा है और नेता हैं कि बैठकों में भाषण देते फिर रहे हैं कि 2023 में हमें भाजपा की सरकार को उखाड़ फेंकना है।


    आदत नहीं छूट रही पटेल साब की
    विधायक रहे मनोज पटेल गाहे-बगाहे भाजपा के कार्यक्रमों में नजर आ जाते हैं। पटेल साब के बारे में एक चर्चा आम है कि वे फोन नहीं उठाते। चाहे वे विधायक रहे या न रहे और उनकी यही कमजोरी उन्हें बड़ा नेता बनने से रोक रही है। वर्तमान में पटेल को विस्तारक योजना में प्रभारी बनाया गया है। विस्तारकों को परेशानी आ रही है। वे पटेल को फोन लगाते हैं, लेकिन हर बार की तरह फोन रिसीव नहीं होता। बेचारे कार्यकर्ता अब जाएं तो कहां जाएं?
    रेलवे में हो गई नियुक्ति, संगठन को पता नहीं
    फायदे के पद पर भाजपा में लगातार नियुक्तियां जारी हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि कई नियुक्तियां भाजपा नेता सीधे ही करवाकर आ रहे हैं। समय से पीछे जाएं तो जिन लोगों की नियुक्तियां हुई हैं, वे संगठन के भरोसे ही बैठे थे, लेकिन नियुक्तियां नहीं होने की वजह से वे सक्रिय हुए और अपने-अपने हिसाब से पद लेकर आ गए। इनमें घनश्याम शेर भारत पेट्रोलियम में, ज्योति तोमर खनिज अन्वेषण विभाग में, दिव्या गुप्ता प्रदेश प्रवक्ता बनने के बावजूद हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में पद ले आए। वहीं एक और नाम विनयकुमार शर्मा के रूप में सामने आया है, जो रेलवे के आईआरसीटीसी में स्वतंत्र डायरेक्टर के रूप में पद ले आए हैं। हालांकि शर्मा के बारे में जानकारी स्थानीय नेताओं को भी नहीं है। शर्मा के बारे में बताया जा रहा है कि वे संघ और उसके संगठनों से जुड़े हुए हैं। हालांकि वे भाजपा के कार्यक्रमों में कहीं सक्रिय नजर नहीं आए।


    अल्पसंख्यक नेताओं को चाहिए पद
    अल्पसंख्यक मोर्चा के लिए कई मुस्लिम नेता कतार में हैं, लेकिन भाजपा ने जिस तरह से अल्पसंख्यक मोर्चा की पकड़ ढीली कर दी है, उससे कई नेताओं में अब बेचैनी होने लगी है। उन्हें लग रहा है कि पिछली बार के अध्यक्ष मंजूर को ही कहीं रिपीट न कर दिया जाए, क्योंकि ऐसा कोई बड़ा नाम सामने नहीं आ रहा है, जो मजबूती से रखा जा सके। पिछले दिनों यही बात लेकर एक दावेदार ने भाजपा के किसी बड़े नेता से यह बात कही तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि अल्पसंख्यक नेताओं को पद चाहिए। यह उनकी जरूरत है, पार्टी की नहीं।
    आप’ भी कूद पड़ी है मैदान में
    कांग्रेस और भाजपा की तरह अब प्रदेश में आम आदमी पार्टी भी सक्रिय हो गई है। ‘आप’ ने अपना सदस्यता अभियान शुरू कर दिया है और लोगों को जोड़ा जा रहा है। ध्यान दिया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य पार्टी से जुड़ें, ताकि आने वाले चुनाव में ‘आप’ की ओर से प्रत्याशी भी खड़े किए जा सकें। वैसे ‘आप’ के नेताओं की तैयारी स्थानीय चुनाव को लेकर भी है और विधानसभा की तैयारी तो वे करेंगे ही। पंचायत चुनाव के लिए तो उम्मीदवार तक तय कर दिए गए थे। फिलहाल देखना यह है कि ‘आप’ कितने नए लोगों को अपने से जोड़ पाती है।


    दिग्गी के चुपचाप दौरे से किसे फायदा
    गांव की कांग्रेस में कुछ न कुछ तो गड़बड़ चल रही है। सदाशिव यादव को अध्यक्ष पद से हटाने या फिर एक और कार्यकारी अध्यक्ष बनाने को लेकर ग्रामीण कांग्रेस नेता सक्रिय हो गए हैं। पिछले दिनों दिग्गी सांवेर आए थे, लेकिन इसकी सूचना आम कार्यकर्ताओं को नहीं हो पाई। कहा जा रहा है कि दिग्गी की सूचना अगर आम कार्यकर्ताओं को मिलती तो बड़ी संख्या में कार्यकर्ता जुटते और शिकवा-शिकायतों का दौर भी चलता, लेकिन कुछ खास लोगों को ही दिग्गी से मिलवाया गया और आधे से पौन घंटे में दौरा भी खत्म कर दिया गया, जबकि दिग्गी के आने के पहले बाकायदा उनका कार्यक्रम आता है। अब विरोधी कांग्रेसी इसे भी मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
    अपनी ही पार्टी के वार्ड अध्यक्ष के मकान का अतिक्रमण टूटने से बचाने के लिए विधानसभा 5 के भाजपा के एक चर्चित पूर्व पार्षद और पार्षद का चुनाव लड़ चुके एक नेता द्वारा कार्रवाई रोकने के नाम पर 10 लाख रुपए लेने की चर्चा जोरों पर है। चूंकि पूर्व पार्षद बड़े नेताओं के करीबी हैं, इसलिए सामने आकर कोई बोल नहीं रहा है। -संजीव मालवीय

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