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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • January 17, 2022

    पंचायत चुनाव के बहाने अध्यक्ष की घेराबंदी
    जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव को केवल एक ही नेता से जुड़े होने का नुकसान उठाना पड़ सकता है। फिलहाल निरस्त हुए पंचायत चुनाव के पहले उन्होंने कुछ ऐसे निर्णय मनमर्जी से ले लिए थे, जो बड़े नेताओं के गले नहीं उतर रहे थे। बस उन्होंने अपने पट्ठों को काम पर लगा दिया और ग्रामीण क्षेत्र की चारों विधानसभाओं से यादव की घेराबंदी शुरू हो गई। यादव पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे मनमानी करते हैं औैर गांव के नेताओं को साथ लेकर नहीं चलते हैं। बस यही बात सब दूर फैल गई है और यादव को अध्यक्ष पद से हटाने की रणनीति शुरू हो गई है। भोपाल तक नेता पहुंच गए हैं और सभी ने अलग-अलग स्तर पर बड़े नेताओं से मिलकर बता दिया कि सदाशिव अगर रहे तो आगामी चुनाव में गांव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि पंचायत चुनाव भले ही टल गए हो, लेकिन गर्मी के मौसम में जब चुनाव होंगे तब विरोध सामने आएंगे। बेहतर हो कि उसके पहले गांव की कांग्रेस को नया अध्यक्ष दे दिया जाए।

    अपने ही समर्थकों से घिरे रहते हैं बाकलीवाल
    कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल हमेशा अपने समर्थकों से घिरे रहते हैं। इनमें से कुछ को बाकलीवाल ने प्रवक्ता बना दिया है, जो गांधी भवन में ही नजर आते हैं। इनके कारण दूसरे कांग्रेसी यहां आने से बिदकते हैं, क्योंकि एक तरह से कांग्रेस कार्यालय पर उनका ही कब्जा है। सभी आपस में प्रतिस्पर्धी भी हैं कि भैया का कौन खास? एक ने तो निगम के फर्जी शुल्क मैसेज पर बयान ही जारी कर डाला और बाकलीवाल को गंभीर होते हुए भी इस पर शर्मिंदा होना पड़ा।
    पटवारी न सही दूसरे पटवारी ही सही
    पूर्व मंत्री जीतू पटवारी अपनी विधानसभा में घूमना नहीं भूलते। जब वे इंदौर में रहते हैं तो साइकिल से विधानसभा में निकल पड़ते हंै, ताकि बताया जा सके कि विधायक कितने सक्रिय हैं। यही नहीं जब वे इंदौर से बाहर रहते हैं तो अपने भाई भरत पटवारी को अपने स्थान पर विधानसभा क्षेत्र में पहुंचा देते हैं, ताकि उनकी कमी महसूस नहीं हो। ये अलग बात है कि कितनों के काम होते हैं और कितनों के नहीं, लेकिन वो पटवारी नहीं तो दूसरे पटवारी ही सही की तर्ज पर अभी सब चल रहा है।
    दिग्गी और सज्जन एक म्यान में कैसे?
    आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति क्या गुल खिलाएगी और कैसे समीकरण बनेंगे, इसको लेकर अभी से कयास लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस में अरुण यादव नर्मदा किनारे एक बड़ा हल्ला करना चाहते थे। कमलनाथ से मिलने के बाद वे चुप हैं। दोनों के बीच क्यों पेंचअप हुआ है, ये किसी को समझ नहीं आ रहा है। दूसरा समीकरण दिग्गी और सज्जन के एकसाथ होने के रूप में सामने आ रहा हैं। दिग्विजयसिंह ने हिन्दू संगठनों को लेकर इंदौर में पिछले दिनों जो बयान दिया, उसका समर्थन सज्जन ने किया है, जबकि सज्जन तो हमेशा अपना अलग ही राग अलापते हैं। अब दोनों की युति क्यों बनी हैं, ये आगामी दिनों में कांग्रेस की राजनीति में ही पता चलेगा। वैसे दोनों ही नेता बड़बोले हैं और हर क्रिया की प्रतिक्रिया जानते हैं, तभी कांग्रेस में उनका पत्ता चल रहा है। समझने वाले समझ रहे हैं कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कौन ताकतवर होगा?
    महिला मोर्चा को नहीं भा रही शैलजा मिश्रा
    शैलजा मिश्रा के हाथ जबसे भाजपा के महिला मोर्चा की कमान आई है, तब से ही इस पद की दावेदार कई महिला नेत्रियों ने दूरी बना ली है, जबकि अभी तो पूरी कार्यकारिणी की घोषणा होना है। वैसे शैलजा, ज्योति तोमर और पद्मा भोजे के साथ ही अधिकतर नजर आती हैं। गांधी हॉल में उन्होंने पतंग
    उत्सव रखा, लेकिन समय पर 10 महिलाएं भी नहीं पहुंची, जबकि मीडिया के 20 लोगों को भेला कर लिया। बाद में कुछ और महिलाएं आईं, जिन्होंने महिला मोर्चा के आयोजन की लाज रखी।
    आकाश की धुआंधार बल्लेबाजी जारी
    विधायक आकाश विजयवर्गीय अपनी कार्यशैली से अपनी एक अलग ही पहचान बना रहे हैंं, लेकिन वे हर खेल के माहिर खिलाड़ी हंै, ये भी बताना नहीं चूकते। नेहरू स्टेडियम में हुए पंतगोत्सव में उन्होंने पतंग में अपने हाथ आजमाए तो बल्लेबाजी में भी चौके-छक्के लगाकर बताया कि भले ही बल्ले के कारण उन्हें ट्रोल होना पड़ा था, लेकिन वे पक्के बल्लेबाज हैं। यही नहीं आकाश ने गिल्ली-डंडा, सितोलिया जैसे खेलों पर भी अपने साथियों के साथ हाथ आजमाए और बता दिया कि वे हर क्षेत्र के माहिर खिलाड़ी हैं।
    आपसी लड़ाई की भेंट चढ़ा अल्पसंख्यक मोर्चा
    शहर में अल्पसंख्यक और युवा मोर्चा के नगर अध्यक्षों की घोषणा होना बाकी है। दोनों ही मोर्चे महत्वपूर्ण हंै, लेकिन युवा मोर्चा से ज्यादा चर्चा अल्पसंख्यक मोर्चे की हैं। इनमें कई ऐसे नाम आने को आतुर हैं, जो वक्फ बोर्ड और कमेटियों पर अपने समर्थकों को देखना चाहते हैं तो कई एक-दूसरे की काट करके अध्यक्ष पद पर बैठना चाहते हैं, लेकिन इनमें से एक की भी नहीं चल रही है। कारण जो आगे बढ़ता है, दूसरा उसे पीछे खींच लेता है। इसमें कई नाम ऐसे हैं, जो सीएए और एनआरसी में अपनी ही पार्टी के विरोध में खड़े हो गए थे तो कुछ नए नाम ऐसे आए हैं, जिन पर आपराधिक प्रकरण हैं। अभी तक भाजपा को कोई पाक-साफ नाम नजर नहीं आ रहा है।
    भाजपा की बूथ विस्तारक योजना में कई नेताओं की ड्यूटी लगा रखी है। इन नेताओं को 20 से 30 तारीख तक हर दिन 10 घंटे काम करना है। कई तो काम से बचने के लिए अभी से ही बहाने बना रहे हैं और कई तो पीठ पीछे कह रहे हैं कि हम पार्टी की नौकरी थोड़े ही कर रहे हंै। -संजीव मालवीय

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