कहां से चली और कहां से निकल गई हवा?
नाम बदलने की हवा के बीच इंदौर भी आ गया। अब इंदौर नाम न तो मुगलों ने रखा था और न ही ऐसा कोई नाम है, जो नाम बदलने वालों को पसंद नहीं आ रहा हो। फिर भी हवा है, हवा का क्या, चल गई सो चल गई। अब भला इंदौरियों को ये पसंद आता? सोशल मीडिया पर विरोध शुरू हो गया और नाम बदलने की हवा जहां से चली थीं, वहीं लौट गई। एक पल तो यह भी समझ नहीं आया कि ये हवा कहां से चली थी और कहां निकल गई? खैर शहर के सबसे बड़े जनप्रतिनिधि यानी सांसद शंकर लालवानी ने कह दिया कि शहर का नाम नहीं बदला जाएगा। उन्होंने मुख्यमंत्री से बात कर ली है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल पड़ी कि शंकर है तो उस्ताद। नाम बदलने की हवा भले ही कहीं से भी चली हो, लेकिन शंकर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे ही हैं, जो शहर की चिंता कर रहे हैं और नाम परिवर्तन टलवा दिया है। बाकी ने तो इस मुद्दे पर कुछ बोला ही नहीं।
कार्यकर्ताओं की भीड़ में दब गए बच्चे
कमलनाथ कांग्रेस नेता टंटू शर्मा के यहां आए थे। पूरी जमावट संजय शुक्ला ने की थी, लेकिन टंटू एक कदम आगे निकले और अपनी ताकत बता डाली। कांग्रेस के झंडों और पटाखों से स्वागत किया गया। टंटू के घर में जब कमलनाथ पहुंचे तो वहां कार्यकर्ताओं की भीड़ घुस गई। घर के बच्चे भीड़ में दब गए। उन्हें दूसरे कमरे में भेजना पड़ा। बाद में बच्चे कहते रहे कि हमारे घर में इतने लोग घुस गए कि हम ही कमलनाथ अंकल से मिल नहीं पाए। अब बच्चे क्या जाने राजनीति क्या होती है?
फिर चकाचक होने लगा दीनदयाल भवन
दीनदयाल भवन में जो भी अध्यक्ष बनकर आ रहा है, वह अपने हिसाब से यहां का कायाकल्प कर रहा है। शंकर लालवानी थे तो उन्होंने पुताई करवाई। कैलाश शर्मा ने मांडणे बनवाए। गोपी नेमा ने एक हॉल बनवाया और फिर गौरव रणदिवे ने कार्यालय को एक नया रूप दे डाला। इससे आगे निकल गए राजेश सोनकर। उन्होंने भी कार्यालय सजाने-संवारने में कसर नहीं छोड़ी। अब गौरव फिर हॉल का रंगरोगन करवा रहे हैं, जिससे लोग कहने लगे हैं कि पहले से यहां की चमक बढ़ गई है।
भाजपा में शुरू हो गई श्रेय की राजनीति
जिस दिन शहर में नागपुर की तर्ज पर मेट्रो प्रोजेक्ट पर सांसद शंकर लालवानी इंदौर में अधिकारियों से चर्चा कर रहे थे, उसी दिन भोपाल में मंत्री तुलसी सिलावट प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा से शहर की यातायात समस्या को दूर करने की बात कर रहे थे कि इसके लिए क्या प्लान बनाया जाएं? दोनों का उद्देश्य एक था, लेकिन दोनों एकसाथ होने की बजाय अलग-अलग प्लान बना रहे थे। सफाई के मामले में लालवानी के अवार्ड लेने पहुंचने के बाद अब दूसरे जनप्रतिनिधि भी कुछ न कुछ कर अपना नाम शहर की चिंता करने वालों में शमिल करना चाहते हैं। वैसे ये अलग बात है कि इंदौर के ट्रैफिक को सूत-सावल में चलाने के लिए पहले भी कई बार पहल हो चुकी है, लेकिन सुधार के नाम पर कुछ नहीं हो पाया है। चूंकि अब जनप्रतिनिधियों ने कमान हाथ में ली है तो कुछ हो जाए, वरना अधिकारी तो यातायात सुधार के प्रयोग के नाम पर अच्छी-भली व्यवस्था का कबाड़ा कर देते हैं।
कांग्रेस के बाकी प्रवक्ता क्या करेंगे?
शहर कांग्रेस ने 6 प्रवक्ताओं की सूची जारी की है। इसके साथ ही कांग्रेस में अब पदाधिकारियों के नाम पर 6 लोग हैं। इनके अलावा एक अध्यक्ष और एक कोषाध्यक्ष भी हैं। प्रवक्ताओं की बात करें तो शहर अध्यक्ष विनय बाकलीवाल ने संजय बाकलीवाल और जौहर मानपुरवाला को मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत किया है। अब बाकी दूसरे प्रवक्ता सोच रहे हैं कि क्या घर के आगे नाम की नेमप्लेट लगाने के लिए ही हमें प्रवक्ता बनाया है। हम क्या करें। वैसे कुछ प्रवक्ता अपने-अपने नेताओं के लिए मीडिया मैनेजमेंट करने में लग गए हैं।
68 साल के बूढ़े या 68 साल के जवान
पांच नंबरी विधायक महेन्द्र हार्डिया यानी बाबा उम्र के उस पड़ाव पर है, जब लोग आरामपसंद हो जाते हैं। हाालांकि बाबा की सुबह की कसरत और साइकिलिंग युवाओं को बहुत प्रभावित करती है। पिछले सप्ताह उन्होंने वाल्मीकि वल्लभ व्यायाम शाला में कसरत का सामान बांटा और खुद ने ही डम्बल्स और वेट लिफ्टिंग की। तभी वहां मौजूद पूर्व पार्षद नंदू पहाडिय़ा बोल उठे कि हमारे बाबा है ही ऐसे। वे 68 साल के जवान हैं, इस पर कार्यकर्ताओं ने ताली बजा दी। बाबा ने युवाओं को सीख दी कि कसरत करोगे तो इस उम्र में भी मेरे जैसे एक्टिव रहोगे।
शादी में आए कांग्रेस के बड़े नेता और चुपचाप चले गए
पिछले दिनों कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी चन्द्रप्रभाष शेखर की नातिन की शादी थी। शादी तो वैसे 20 नवम्बर को हो गई थी, लेकिन गुरुवार को वीवीआईपी भोज रखा गया था। इसमें कमलनाथ के साथ-साथ वे सभी आए थे, जो कांग्रेस सरकार में कमलनाथ के आगे-पीछे रहे हैं। इनमें मीडिया में आए दिन छाए रहने वाले पीसी शर्मा भी थे तो कई पूर्व मंत्रियों का जमावड़ा भी था। सीएम के साले संजय मसानी क्रीम सफारी में सबसे अलग दिख रहे थे। इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस के पूर्व मंत्री और बड़े नेता शादी में शामिल होने आए और चुपचाप चले भी गए, पर मीडिया के सामने किसी ने कुछ नहीं बोला। हालांकि मीडिया को भी इस आयोजन से दूर ही रखा गया था। मीडिया जगत से जुड़े कुछ खास लोग जरूर यहां थे।
कोरोना दबे पैर आहट दे रहा है और जिस तरह से सरकारी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, उससे उन लोगों की चिंता बढऩे लगी है, जो चुनाव लडऩे की तैयारी में लगे थे। भले ही वो कांग्रेस हो या भाजपा के दावेदार, दीवाली पर जो जेब ढीली की जा रही थी, वह अब बंद हो गई है।
-संजीव मालवीय
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