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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • August 20, 2024


    देखते ही देखते ठंडा हो गया तिरंगा अभियान
    जिस तरह से भाजपा ने पिछले साल हर घर तिरंगा अभियान चलाया था, वैसा इस बार नजर नहीं आया। केवल विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में तिरंगा यात्रा निकालकर औपचारिकता पूरी कर ली, लेकिन हर घर तिरंगा फहराने का अभियान फिसड्डी साबित हो गया। न तो घरों पर तिरंगे लग पाए और न अधिकांश मतदान केंद्रों पर झंडा फहराया गया। और तो और जिन मोर्चा-प्रकोष्ठ को जवाबदारी दी गई थी वे भी ठंडे साबित हुए। कुल मिलाकर इंदौर में तो अभियान की औपचारिकता ही निभाई गई, इसलिए शहर में माहौल नहीं बन पाया। वहीं इस बार झंडों की बिक्री के चलते कई दुकानदारों ने एक्स्ट्रा झंडे ऑर्डर कर दिए थे, लेकिन उनकी भी बिक्री नहीं हो पाई। अधिकांश लोग तो झंडावंदन के बाद पिकनिक मनाने निकल पड़े और मन गया स्वतंत्रता दिवस।


    वो नहीं तो ये सही
    इन दिनों नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे की गाड़ी में एक पुराने छात्र नेता नजर आ रहे हैं। जहां भी वे जाते हैं, नेताजी गाड़ी में दिख ही जाते हैं। आपको बता दें कि ये नेताजी पहले एक विधायक के खास हुआ करते थे और उनके साथ उनकी गाड़ी में देखे जाते थे, लेकिन सत्ता बदली और विधायक जिलाबदर हो गए हैं। अब नेताजी को तो इंदौर में ही राजनीति करना है, इसलिए अब उन्होंने अपना मुकाम बदल लिया है। खैर, यही तो राजनीति है। वो नहीं तो ये ही सही।
    जोश में आ गए टंडन
    मौका था गांधी भवन पर झंडावंदन का। कांग्रेस के सभी नेता मौजूद थे और फिर प्रमोद टंडन को नहीं बुलाएं तो कैसे चलेगा? टंडन के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कांग्रेस को लेकर खूब भाषण दिए। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह से कांग्रेस यहां तक पहुंची है और भाजपा से किस तरह से अलग है। भीड़ में से फुसफुसाहट हुई कि ये वही टंडन हैं, जो भाजपा में जाने के बाद वहां के नेताओं के गुणगान गाते नहीं थकते थे, इसलिए तो इन्हें आगे की कुर्सी मिलती थी।

    पटवारी के सामने पूर्व अध्यक्ष की विडंबना
    पिछले दिनों इंदौर आए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के सामने कांग्रेस के एक पूर्व अध्यक्ष की विडंबना सामने आ गई। घर पर ही कुछ खास लोगों से मुलाकात कर रहे पटवारी से बात करते-करते दिल की बात जुबां पर आ ही गई। बताया जा रहा है कि उन्होंने शहर कांग्रेस में तवज्जो नहीं मिलने को लेकर अपनी विडंबना बताई और कहा कि उन्हें कार्यक्रमों में बराबर सम्मान नहीं मिल रहा है। हालांकि कुछ लोगों ने बताया कि अध्यक्ष रहते इन्होंने कौन सा सबको साथ लेकर सम्मान दिया, जो अब इनको सम्मान मिले। उक्त अध्यक्ष के कार्यकाल में शहर में केवल एक ही गुट का बोलबाला था। अध्यक्षजी के साथ रहने वाले अपने आपको ही गांधी भवन का कर्ताधर्ता मान बैठे थे। इस चक्कर में कई कांग्रेसियों ने गांधी भवन से दूरी बना ली थी। हालांकि अब बाजी पलटने से कुछ कांगे्रसी बेचैन हैं, क्योंकि उन्हें अब तवज्जो नहीं मिल रही।

    आखिर क्यों दूर हो गए विधायक से?
    कभी कांग्रेस विधायक के खास रहने वाले नेताजी इन दिनों उनसे दूर हो गए हैं। समाज की राजनीति करने वाले नेताजी अभी समाज के चुनाव में हार गए हैं। अब वे उन्हीं लोगों को भला-बुरा कहने में लगे हैं, जिनकी तारीफों के किस्से वे कभी जोर-जोर से सुनाया करते थे। हालांकि नेताजी गैरराजनीतिक होने का दावा करते हैं, लेकिन राजनीति कहां किसे छोड़ती है। थोड़ा-बहुत तो खुमार आ ही जाता है। वह भी तब, जब वे शहर के एक बड़े राजनीतिक परिवार से जुड़े हों।

    जयपाल को जिलाबदर करवाने की कोशिश
    जयपालसिंह चावड़ा इंदौर में संभागीय संगठन मंत्री के पद से इंदौर विकास प्राधिकरण की बिल्डिंग में पहुंच गए। बात वही आई कि अंपायर ही बैट्समैन बन बैठा। इसको लेकर कुछ नेताओं ने भोपाल तक विरोध जताया, लेकिन बात नहीं बनी और संगठन के फैसले के सामने सबने चुप रहना ही उचित समझा। अब जब चावड़ा पर उनके कार्यकाल में अहिल्यापथ के मामले में आरोप लगे हैं तो उन लोगों ने पूरी जानकारी के साथ अखबार की कतरनें भोपाल और दिल्ली तक भिजवा दी हैं, ताकि भाईसाब को इंदौर से जिलाबदर करवाया जा सके।


    मजबूरी बनी सांसद समर्थकों के बीच की दूरी
    सांसद के नाम से संस्था चलाने वाले दो दोस्तों की दोस्ती के किस्से आम हो गए थे, लेकिन अचानक दोनों के बीच लंबी दूरी हो गई है। दोनों ही सांसद शंकर लालवानी के खास होने का दावा करते हैं, लेकिन दोनों के बीच की दूरी का कारण पिछले दिनों एक मामले में आरोपी को छुड़वाने के रूप में सामने आया है। इसी क्षेत्र के रहने वालों का कहना है कि इनमें से एक की महत्वाकांक्षा और लगातार पुलिस विभाग में बढ़ता हस्तक्षेप दोस्ती को बदनाम करने में लगा था। पिछले दिनों एक आरोपी को थाने से छुड़ाने के मामले में भी दोनों का नाम उछला था। हालांकि इनमें से एक का कहना है कि मैं तो समाजसेवा कर रहा हूं, लेकिन दूसरा ऐसा कर रहा था, जिससे नाम खराब हो रहा था, इसलिए अब संस्था से उसकी दूरी है।

    भाजपा कार्यालय पर अचानक से बढ़ी भीड़ का कारण निगम-मंडलों और एल्डरमैन की नियुक्ति की घोषणा को माना जा रहा है। अभी हाल ही में हुए दो-तीन कार्यक्रमों में कई पुराने नेता भी वरिष्ठ नेताओं के आगे-पीछे देखे गए। सबकी आस है कि कुछ न कुछ तो लाभ का पद मिल जाए। इसके लिए अब नगर अध्यक्ष के साथ-साथ उन्होंने संगठन के बड़े नेताओं के यहां लगातार हाजिरी देना भी शुरू कर दी है। अब देखते हैं किसके हिस्से में क्या आता है? -संजीव मालवीय

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