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    ये पॉलिटिक्स है प्यारे

  • August 12, 2024

    भोपाल में कुछ तो गड़बड़ है भिया
    जीतू पटवारी जो कहते हैं उस पर पानी फिर जाता है। भोपाल की इस गड़बड़ का असर प्रदेश में भी पड़ रहा है। इंदौर में जो कुछ हुआ, उसमें भी भोपाल की गड़बड़ सामने आई। नाराज भंवर जितेंद्रसिंह ने इंदौर के आंदोलन से दूरी बना ली और अब दोनों अध्यक्षों के मामले में भी वे चुप्पी साध चुके हैं। नोटिस देने, जवाब लेने और इस दौरान निलंबन के मामले में जीतू पटवारी द्वारा सॉफ्ट कॉर्नर अपनाए जाने के मामले में भी दोनों नेताओं में अनबन की खबरें आ रही हैं। अभी प्रदेश पदाधिकारियों की सूची जारी होना थी, लेकिन वह भी अटक गई। युवक कांग्रेस में दिखावे के लिए कुछ पदाधिकारियों को हटाया गया, उसके बाद जिलाध्यक्षों को हटाने का मामला भी अटक गया। भोपाल में चल रही इस खींचतान से कांग्रेस मजबूत नहीं, बल्कि खंडित हो रही है। मतलब कुछ न कुछ तो गड़बड़ है भिया।

    कांगे्रस से भाजपा में आए नेता की चंदा यात्रा
    कहा जा रहा है कि कांग्रेस से भाजपा में आए एक नेता द्वारा चंदा कर एक धार्मिक स्थल की यात्रा कराई गई। हालांकि उनका कहना है कि यह नाममात्र का शुल्क था, लेकिन यह शुल्क कुछ लोगों को ज्यादा लगा। कहने वाले कहने लगे कि इसके पहले भी उन्हीं की पार्टी के एक नेताजी फ्री में यात्राएं करवाते थे। जितना शुल्क लिया था, उतने में तो व्यक्तिगत यात्रा तक की जा सकती थी। अब क्या कहें, नेताजी तो अपनी आदत से बाज नहीं आएंगे।


    भाजपा कार्यालय पर बढ़ रही सरगर्मी
    भोपाल में निगम-मंडलों और एल्डरमैन के खाली पड़े पदों को भरने की चर्चा क्या हुई, घर बैठे कई भाजपा नेता दीनदयाल भवन की ओर निकल पड़े। तिरंगा अभियान की बैठक में इसका नजारा भी दिखा, जबकि दिवंगत झा की श्रद्धांजलि सभा में कम लोग पहुंचे। इसे कहते हैं राजनीति। पद की चाह रखने वाले नेता आगे होकर संगठन के कर्ताधर्ताओं के सामने हाजिरी भरा रहे हैं, ताकि बताया जा सके कि वे भी सक्रिय हैं।

    एक-दूसरे को निपटाने में लगे हैं अल्पसंख्यक नेता
    इंदौर में भाजपा की राजनीति करने वाले अल्पसंख्यक नेताओं की कमी नहीं है। कुछ सत्ता के साथ बैठे हैं तो कुछ सत्ता के बाहर। भाजपा पर विश्वास नहीं करने वालों की संख्या भी इनमें कम नहीं है। खैर, अभी तो भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा में शह और मात का खेल ज्यादा खेला जा रहा है। ये खेल अब सामने भी आने लगा है, जिसमें कुछ पुराने नेता हैं और कुछ नए युवा नेता। पुराने नेताओं ने जो कारगुजारियां की हैं, उनको लेकर युवा नेता लगातार उन पर हावी हो रहे हैं। जब से प्रदेश में भी अल्पसंख्यक मोर्चा, वक्फ बोर्ड का नेतृत्व बदला है, तब से यह कुश्ती ज्यादा देखने को मिल रही है। कोई भी मौका हो युवा नेता अपनी ओर से शिकायत का मौका नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि इस पर भाजपा ने चुप्पी साध रखी है और उसके कर्ताधर्ता इस मामले से अपने को बचाए हुए हैं।


    तुलसी की चुटकी
    भाजपा नेताओं की तारीफ का मंत्री तुलसी सिलावट कोई मौका नहीं छोड़ते। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में विधायक मधु वर्मा और गोलू शुक्ला के साथ वे भी पहुंचे। तुलसी के बोलने की बारी आई तो उन्होंने दोनों विधायकों की तारीफों के पुल बांध दिए और कह दिया कि दोनों विधायक आने वाले समय में मंत्री भी बन सकते हंै और हमें इनसे मार्गदर्शन लेने जाना पड़े तो आश्चर्य मत करना। दोनों नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन मन ही मन मुस्कराते रहे।

    हल्ले में गुम हो गया मुस्लिम पार्षदों का रोना
    कांग्रेस ने नगर निगम पर प्रदर्शन किया। बड़े दिनों बाद इतना बड़ा हल्ला हुआ। कुछ मुस्लिम पार्षदों को मंच पर बोलने के लिए भी बुलाया गया, लेकिन हल्ले में उनकी आवाज दब गई। बेचारे कहते रहे कि उनके क्षेत्र में गंदगी इतनी है कि लोग परेशान हैं। पानी ठीक से आता नहीं है। और तो और कोई काम भी नहीं होता है। वहीं एक महिला मुस्लिम पार्षद को तो नेता प्रतिपक्ष चौकसे तक को चुप कराना पड़ा, लेकिन उनकी भी आवाज दब गई। वैसे पॉलिटिक्स में जिसका मजमा होता है उसी की वाहवाही होती है। ऐसे में दूसरे का नाम कैसे चल जाता?

    शिवराज की नजरें इनायत हो जाएं तो….
    इंदौर के एक ग्रामीण भाजपा नेता इन दिनों अपने गृहक्षेत्र में ज्यादा नजर आ रहे हैं। कारण बुधनी में उपचुनाव होना है, जहां से शिवराजसिंह चौहान अब सांसद बन गए हैं। नेताजी ने संगठन के लिए सरकारी नौकरी तक छोड़ दी थी और कभी मध्यप्रदेश के प्रदेश संगठन मंत्री के खास हुआ करते थे। बाद में ग्रामीण भाजपा के पदाधिकारी भी बन गए। नेताजी का दांव तो राऊ विधानसभा में भी था, लेकिन इंदौर में उनकी दाल नहीं गल सकी। अब नेताजी बुधनी में सक्रिय हैं, जहां उनका लंबा-चौड़ा कारोबार भी है। अब चाहिए तो यही कि शिवराज की उन पर नजरें इनायत हो जाएं। वैसे उनके भाई भी संगठन से जुड़े हैं और शिवराज के करीबी भी हैं। इसी को लेकर वे अपना नाम वजनी मान रहे हैं।

    दीनदयाल भवन में दो पदाधिकारियों की आपस में पटरी नहीं बैठ रही है। दोनों ही नगर अध्यक्ष के करीबी हैं, लेकिन वाहवाही लूटने के चक्कर में एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इनके चक्कर में फायदा तीसरे नगर पदाधिकारी का हो रहा है, जो पहले भी नगर अध्यक्ष के करीब रहे हैं और आज भी हैं। कार्यालय में अब उन्हीं के नाम की आवाज गूंजती है और जी, भाईसाब करने में उन्हें लंबे समय से महारत भी हासिल है।
    -संजीव मालवीय

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