ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

मोह भंग नहीं हुआ है शिव के राज से
भाजपा की राजनीति में शिव के गणों की संख्या अभी कम नहीं हुई है। शिवराज केन्द्र की राजनीति में अब बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। इंदौर के कई ऐसे विधायक हैं, जो अभी भी उनकी सरपरस्ती में रहना चाहते हैं। भोपाल में आयोजित सम्मान कार्यक्रम निरस्त होने के बाद भी उनके ऐसे ही शिवगण वहां पहुंच गए थे। इसके पीछे उनका निशाना वे नेता थे, जो समझ रहे थे कि अब इनकी वकालात करने वाला कोई नहीं रहा। इनमें से कई नेता ऐसे हैं, जिन्हें इंदौर की राजनीति में अपना वजूद बनाकर रखना है और अभी जो हालात हैं, उसमें वे कैलाश पर्वत के नीचे नहीं बैठना चाहते, क्योंकि इसमें उनकी राजनीति को खतरा है। उन्हें डर है कि कहीं वे एक ही जगह बंधकर नहीं रह जाए। खैर उन्होंने बता दिया है कि उनका अभी भी शिव-राज से मोहभंग नहीं हुआ है और वे उनके सहारे ही हैं…यहीं तो पॉलिटिक्स है प्यारे।


लो फिर आ गया राजनीति का सावन
भाजपा की नई कार्यकारिणी बनना है और दीनदयाल भवन पर नई-नई पौध जन्म लेने लगी है। राजनीति के इस हरे-भरे सावन में कोई भी मौका नहीं छोडऩा चाहता है। किसी ने दीनदयाल भवन पर नेताओं के आगे-पीछे घूमना शुरू कर दिया है तो कोई अपने आका के यहां हाजरी लगा रहा है। वैसे भी नगर निगम चुनाव के पहले तीन साल अब कोई चुनाव नहीं होना है। इसलिए सोचा जा रहा है कि जब तक संगठन में अपनी दुकान सेट हो जाए तो अच्छा।

क्यों डोल रहा है सुरजीत का मन?
सुरजीतसिंह चड्ढा को जब से शहर कांग्रेस की कमान दी है, तब से कोई बड़ी उपलब्धि तो उनके नाम पर दर्ज नहीं हुई है। अब चड्ढा के नजदीकी ही खबर उड़ा रहे हैं कि भिया का मन कांग्रेस में नहीं लग रहा है और किसी भी दिन वे कोई चौंकाने वाला डिसिजन ले सकते हैं। वैसे भिया को जानने वाले कह रहे हैं कि जब तक अध्यक्ष पद हैं, तब तक तो वे गांधी भवन छोडक़र नहीं जाने वाले। उसके बाद अगर कहीं उनका मन डोल जाए तो हम कुछ कह नहीं सकते।

गायब है पटेल… हाजरी लगा रहे हैं शुक्ला
कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेता भाजपा में तो आ गए, लेकिन इनमें से न तो किसी के पास कुछ काम है और न ही भाजपा संगठन ने इन्हें काम दिया है। इनको लेकर प्रदेश संगठन से भी कोई निर्देश जारी नहीं हुए हैं। इनमें से एक-दो ऐसे हैं, जो लगातार भाजपा में अपनी सक्रियता बता रहे हैं। इनमें एक है पूर्व विधायक संजय शुक्ला। वे जरूर भाजपा के आयोजनों में जा रहे हैं और उन्हें मंच पर कुर्सी भी मिल रही है। इसके उलट विशाल पटेल, पंकज संघवी, स्वप्निल कोठारी जैसे नेताओं ने तो अभी एक तरह से दूरी ही बनाकर रख रखी है। वे केवल पार्टी के बुलावे पर ही भाजपा कार्यालय जाते हैं, जबकि शुक्ला पौधारोपण अभियान में आगे होकर अपनी भूमिका निभा रहे हैं।


अपनी दुकान तो सेट हो गई, बाकी जाए भाड़ में
शहर कांग्रेस की राजनीति के एक बड़े चेहरे का कांग्रेस से मोहभंग होता दिख रहा है। विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस की सरकार बनने की अफवाह पर दलबदल करने वाले नेताजी वापस अपने दल में तो आ गए हैं, लेकिन अब वह बात नहीं रही जो कभी होती थी। विधानसभा और लोकसभा में नेताजी अपनी पार्टी के लिए कुछ कर नहीं पाए। वे अब घर के रहे हैं न घाट के। अपनी ही पार्टी में उन्हें तवज्जो मिलती न देख उन्होंने अपने पुराने धंधे में ही लौटने की ठानी और उसका आगाज भी कर दिया, साथ ही उन्होंने यह बताने में कसर नहीं छोड़ी कि पुरानी पार्टी में मेरी कितनी पूछपरख है।

इसका कुर्ता मेरे कुर्ते से सफेद कैसे?
कांग्रेस नगर निगम के खिलाफ मैदान पकड़े हुए है, लेकिन यहां भी दूसरे नेता किसी एक का कद बढ़ते देखना नहीं चाहते। आंदोलनों में वे आम कार्यकर्ताओं को जोड़ नहीं पा रहे हैं। कुछ नेता तो अकेले ही ऐसे आंदोलन में पहुंच जाते हंै और फोटोबाजी में अव्वल रहते हैं। अब आंदोलन करने वाले नेताजी उन्हें कुछ बोल नहीं पाते, क्योंकि वे सीनियर हैं और यहां कुछ बोलना, मतलब अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना। जो भी हो, लेकिन कांग्रेस ने अभी जिस तरह से कांग्रेस के एक नेता ने मैदान पकड़ रखा है, उससे उनका भविष्य तो चमकता दिख रहा है, लेकिन कुछ नेता इस चमक को कम करने में लगे हैं।


विधायकजी, जरा अपने पट्ठों को समझाओ
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में चार नंबर भाजपा के पार्षद द्वारा सरेआम भाजपा के ही विधायक के सामने शिकायत कर डाली कि विधायकजी, जरा अपने पट्ठों को समझाओ। पार्षद का इशारा, विधायकजी के खास की तरफ था। उन्होंने तो सार्वजनिक तौर पर नाम लेकर कह दिया कि उन्होंने उनके क्षेत्र में आकर एक दुकानदार को परेशान किया। सरेआम इस तरह की शिकायत सुनकर विधायकजी के चेहरे पर बल आ गए। उन्होंने उस समय तो ज्यादा कुछ नहीं किया और अपनी आदत के अनुसार वे मुस्कुराते हुए पार्षद के कंधे पर हाथ धरकर आगे बढ़ गईं। कहा जा रहा है कि जिस खास की बात हो रही थी, वे अपने कामों से चर्चित होते जा रहे हंै।

भोपाल में चल रही कांग्रेस के मंथन का क्या निचोड़ निकलेगा, यह तो खुद कांग्रेस के बड़े नेता ही बता सकते हैं, लेकिन जिस तरह से दिग्विजयसिंह और कमलनाथ ने इससे दूरी बना रखी है, उससे लग रहा है, इन नेताओं को परिणाम का अंदाजा है। कहने वाले कह रहे हैं कि मठाधीश जब तक सूत-सावल में नहीं आएंगे, तब तक कांग्रेस का भला नहीं होने वाला। -संजीव मालवीय

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